चुनौतियों के अनुरूप नहीं मिला बजटीय आवंटन, पाकिस्तान-चीन को देखते हुए बेहद कम
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार बजट में रक्षा के लिए उम्मीद से कम आवंटन किया गया है। वैश्विक चुनौतियों के बीच पाकिस्तान-चीन को देखते हुए यह काफी कम धनराशि है।
नई दिल्ली (आरएनआई) आम बजट में इस बार रक्षा क्षेत्र के बजटीय आवंटन में 4.79 फीसदी (करीब 28000 करोड़ रुपये) की बढ़ोत्तरी की गई है। हालांकि, इस क्षेत्र के विशेषज्ञ इस बढ़ोतरी को देश की बाह्य सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए बेहद कम मान रहे हैं। उनका कहना है चीन की ओर से लगातार बढ़ती चुनौती और पाकिस्तान में खतरनाक ढंग से बदल रहे हालात के बीच मोदी सरकार रक्षा क्षेत्र की जरूरतों और भविष्य की चुनौतियों के अनुरूप फैसला नहीं ले पाई।
आजादी के बाद करगिल युद्ध को छोड़ सभी युद्ध में मोर्चा संभालने वाले मेजर जनरल अशोक मेहता का मानना है कि अपने दस साल के कार्यकाल में मोदी सरकार ने सुरक्षा के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया। हालांकि बजटीय आवंटन बताता है कि सरकार भावी खतरों और चुनौतियों को अलग नजरिये से देखती है। मतलब सरकार को लगता है कि भले ही चीन एलएसी पर आक्रामक है, मगर युद्ध की स्थिति नहीं आएगी।
मेजर जनरल जीडी बक्शी मानते हैं कि वैश्विक हालात व पाकिस्तान-चीन की चुनौतियों को देखते हुए रक्षा क्षेत्र में बजटीय आवंटन बेहद कम है। वह कहते हैं...रक्षा क्षेत्र के बजटीय आवंटन का 52 फीसदी हिस्सा पूर्व सैनिकों के पेंशन और वर्तमान सेना के वेतन पर खर्च हो जाता है। शेष 48 फीसदी रकम इतनी छोटी है कि इसमें आधुनिकीकरण की न्यूनतम जरूरतें भी पूरी नहीं हो सकती।
भारत अपने प्रतिद्वंद्वी चीन से बहुत पीछे है। चीन ने इस साल रक्षा क्षेत्र के लिए 231 अरब डॉलर का बजट तय किया है। वह हर वित्त वर्ष में अपनी जीडीपी का कम से कम दो फीसदी रक्षा क्षेत्र पर खर्च करता है। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि चीन आधिकारिक तौर पर जो बजट बताता है, उससे कई गुना ज्यादा इस क्षेत्र में खर्च करता है। वॉशिंगटन बेस्ड थिंक टैंक अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन का वर्तमान वर्ष का वास्तविक रक्षा बजट 231 अरब डॉलर नहीं बल्कि 710 अरब डॉलर है।
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