चुनाव में सोशल मीडिया ऐसे दे रहा बैनर, पोस्टर और प्रिंटिंग प्रेस को मात, ऑर्डर के पड़े लाले!
लोकसभा चुनाव के एलान के बाद अब पार्टियों ने अपना ध्यान प्रचार अभियान पर है। घर घर दस्तक देने के साथ ही राजनीतिक दल अब सोशल मीडिया से लेकर पोस्टर, बैनर के जरिए प्रचार में जुट गए हैं। लेकिन 1985 से चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के लिए बैनर-पोस्टर तैयार करने वाले अनुपम आर्ट्स को अब तक कोई बड़ा ऑर्डर नहीं मिला है। चुनाव में बढ़ते आर्टिफिश्यल इंटेलिजेंस और डिजिटल टेक्नोलॉजी ने प्रिंटिंग कारोबारियों की चिंता बढ़ा दी है। कई प्रिंटिंग प्रेस को अब तक कोई बड़ा ऑर्डर नहीं मिला है।
नई दिल्ली (आरएनआई) लोकसभा चुनाव के एलान के बाद अब पार्टियों ने अपना ध्यान प्रचार अभियान पर है। घर घर दस्तक देने के साथ ही राजनीतिक दल अब सोशल मीडिया से लेकर पोस्टर, बैनर के जरिए प्रचार में जुट गए हैं। लेकिन 1985 से चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के लिए बैनर-पोस्टर तैयार करने वाले अनुपम आर्ट्स को अब तक कोई बड़ा ऑर्डर नहीं मिला है। चुनाव में बढ़ते आर्टिफिश्यल इंटेलिजेंस और डिजिटल टेक्नोलॉजी ने प्रिंटिंग कारोबारियों की चिंता बढ़ा दी है। कई प्रिंटिंग प्रेस को अब तक कोई बड़ा ऑर्डर नहीं मिला है।
करीब 34 वर्षों से इसी कारोबार से जुड़े गुवाहाटी के अनिर्बाण प्रिंटर्स के प्रसन्नजीत दास कहते हैं कि हमें अभी तक 35 हजार पोस्टर प्रिंट करने के लिए मिले हैं। जबकि हमें 2019 में हमने 25 लाख पोस्टर और पैम्फलेट छापे थे। बॉम्बे मास्टर प्रिंटर्स एसोसिएशन का कहना है कि पिछले तीन से चार वर्षों में सोशल मीडिया और एआई एल्गोरिदम के साथ दलों का प्रिंटिंग से फोकस हटा है। इसी तरह प्रिंटिंग में काम करने वाले अनुपम आर्ट्स का कहना है कि फिलहाल अभी तक पार्टियों से ऑर्डर मिलने का काम शुरू नहीं हुआ है। 2019 के लोकसभा चुनाव में हमारे पास राजनीतिक दलों के बैनर, टी-शर्ट और पैम्फलेट के बेतहाशा ऑर्डर थे, लेकिन इस स्थिति थोड़ी अलग नजर आ रही है।
एमपी के इंदौर में चुनाव प्रचार सामग्रियों के प्रमुख विक्रेता संतोष जैन का कहना है कि पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार प्रचार सामग्रियों की खरीद-बिक्री काफी कम है। आयोग की सख्ती के कारण प्रत्याशी बड़े पैमाने पर प्रचार सामग्री नहीं खरीद रहे हैं। सूचना क्रांति योजना, सस्ते मोबाइल फोन और सस्ता डाटा होने के कारण अधिकांश हाथों में मोबाइल फोन हैं। यह ऐसा माध्यम है, जिससे सीधे सूचनाओं को पहुंचाया जा सकता है। किस वर्ग को, किस समय और कौन सा संदेश भेजना है, यह भी आसान है। इसलिए परंपरागत माध्यमों की बजाय डिजिटल कैंपेनिंग की मांग बढ़ रही है।
झंडे, बैनर-पोस्टर व अन्य पारंपरिक प्रचार सामग्रियों के विक्रेताओं का कहना है कि चुनाव आयोग की सख्ती लगातार बढ़ती जा रही है। पूरे दस्तावेज बिल-रसीद पास हों, तब भी जांच की सख्ती कम नहीं होती। इस वजह से प्रत्याशी बड़े पैमाने पर प्रचार सामग्री नहीं खरीद रहे। निर्वाचन खर्च बचाने के लिए अपने नाम के बजाय पार्टी के रंग से द्वार तोरण आदि बनवा रहे हैं, जिससे प्रचार भी हो जाए और प्रत्याशी के खाते में प्रचार का व्यय न जुड़ सके।
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