'चुनाव में मुफ्त सुविधाओं का वादा रिश्वत देने जैसा', सुप्रीम कोर्ट जल्द करेगा याचिका पर सुनवाई
कील अश्विनी उपाध्याय ने चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुफ्त सुविधाएं देने के वादे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। यह याचिका लिस्टेड है, लेकिन अन्य मामले की सुनवाई की वजह से आज इस याचिका पर सुनवाई की उम्मीद कम ही है।
नई दिल्ली (आरएनआई) चुनाव के दौरान मुफ्त रेवड़ी बांटने के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट ने अहम माना है और इस पर रोक की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि याचिका सुनवाई के लिए लिस्टेड है और वे इसे सुनवाई से नहीं हटाएंगे। दरअसल वकील अश्विनी उपाध्याय ने चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुफ्त सुविधाएं देने के वादे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। यह याचिका लिस्टेड है, लेकिन अन्य मामले की सुनवाई की वजह से आज इस याचिका पर सुनवाई की उम्मीद कम ही है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की सदस्यता वाली पीठ के समक्ष यह याचिका सूचीबद्ध है। याचिका दायर करने वाले वकील ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में मांग की कि याचिका को सूचीबद्ध रखा जाए ताकि कल इस मामले पर सुनवाई हो सके। इस पर पीठ ने कहा कि यह मामला बेहद अहम है और वे याचिका को सूची से नहीं हटाएंगे।
याचिका में मांग की गई है कि राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्र में लोकलुभावन वादों पर रोक लगनी चाहिए क्योंकि ये वादे राजनीतिक फायदे के लिए किए जाते हैं। याचिका के अनुसार, ऐसे वादे संविधान का उल्लंघन करते हैं और चुनाव आयोग को इनकी रोक के लिए कदम उठाने चाहिए। याचिका में अश्विनी उपाध्याय ने चुनाव आयोग को ऐसी राजनीतिक पार्टियों के चुनाव चिह्नों को फ्रीज करने और राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग की है, जो लोगों को चुनाव के दौरान मुफ्त सुविधाएं देने का वादा करते हैं। याचिका में कहा गया है कि चुनाव से पहले सार्वजनिक धन से तर्कहीन मुफ्त सुविधाएं देने का वादा मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करता है, इससे चुनाव प्रक्रिया की पवित्रता भी दूषित होती है।
'चुनाव को ध्यान में रखते हुए मुफ्त उपहारों की पेशकश करके मतदाताओं को प्रभावित करने की राजनीतिक दलों की हालिया प्रवृत्ति न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है, बल्कि संविधान की भावना को भी चोट पहुँचाती है। यह अनैतिक व्यवहार सत्ता में बने रहने के लिए राजकोष की कीमत पर मतदाताओं को रिश्वत देने जैसा है और लोकतांत्रिक सिद्धांतों और प्रथाओं को बनाए रखने के लिए इससे बचना चाहिए।' अभी देश में आठ मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दल और 56 राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त दल हैं। देश में पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों की कुल संख्या लगभग 2,800 है।
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