चुनाव आयोग ने खारिज किए राहुल के आरोप, कहा- सुधार के आए सिर्फ 89 आवेदन

आयोग के अधिकारियों ने सोमवार को मीडिया को मतदाता सूची से जुड़े आंकड़े जारी किए। इसमें आयोग ने कांग्रेस  की शिकायतों और अपने बिंदुवार जवाब को भी शामिल किया है। आयोग ने कांग्रेस को भेजे जवाब में कहा है, 6-7 जनवरी 2025 को प्रकाशित विशेष पुनरीक्षण सूची में जनप्रतिनिधित्व कानून (आरपी अधिनियम) के तहत कोई पहली या दूसरी अपील नहीं की गई। न ही मतदाता सूची या समावेशन की किसी प्रविष्टि में सुधार किया गया।

Apr 22, 2025 - 05:00
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चुनाव आयोग ने खारिज किए राहुल के आरोप, कहा- सुधार के आए सिर्फ 89 आवेदन

नई दिल्ली (आरएनआई) कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भले ही महाराष्ट्र चुनाव को लेकर निर्वाचन आयोग पर सवाल उठा रहे हों पर हकीकत यह है कि राज्य में मतदाता सूची पुनरीक्षण के बाद संशोधन के बहुत कम आवेदन मिले थे। यही कारण है कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची पर नेता प्रतिपक्ष की ओर से उठाए गए सवालों को खारिज करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में मतदाता सूची में पुनरीक्षण के बाद संशोधन के लिए सिर्फ 89 अपीलें दाखिल की गई हैं। यदि सूची में गड़बड़ होती, तो बड़ी संख्या में संशोधन के आवेदन मिलते लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

आयोग के अधिकारियों ने सोमवार को मीडिया को मतदाता सूची से जुड़े आंकड़े जारी किए। इसमें आयोग ने कांग्रेस  की शिकायतों और अपने बिंदुवार जवाब को भी शामिल किया है। आयोग ने कांग्रेस को भेजे जवाब में कहा है, 6-7 जनवरी 2025 को प्रकाशित विशेष पुनरीक्षण सूची में जनप्रतिनिधित्व कानून (आरपी अधिनियम) के तहत कोई पहली या दूसरी अपील नहीं की गई। न ही मतदाता सूची या समावेशन की किसी प्रविष्टि में सुधार किया गया। विशेष पुनरीक्षण में मतदाता सूची की समीक्षा  और  उसका मसौदा जारी करना शामिल होता है।  इसका मकसद नए मतदाता जोड़कर  पारदर्शी मतदान प्रक्रिया  बनाए रखना है। इसमें 18 साल के हो चुके लोग या अपना निर्वाचन क्षेत्र बदलने वाले शामिल हैं। विशेष पुनरीक्षण के दौरान डुप्लिकेट और मृत मतदाताओं को हटाया भी जाता है। आयोग ने कहा, देश भर में मतदाता सूची का काम देखने वाले 13,857,359 बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) थे और महाराष्ट्र में इनकी संख्या 97,325 थी। इसके बावजूद मतदाता सूची में बदलाव के लिए   महाराष्ट से सिर्फ 89 अपील आई। ऐसे में जनवरी, 2025 में विशेष पुनरीक्षण पूरा होने के बाद जो मतदाता सूची प्रकाशित की गई वहीं अंतिम मानी जाएगी। इसे मानने के सिवा राजनीतिक दलों के पास कोई विकल्प नहीं है।

चुनाव आयोग ने कहा, आरपी अधिनियम 1950 की धारा 24 को 20 सितंबर, 1961 को जोड़ा गया था, जो वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त के जन्म से बहुत पहले की बात है। अगर कोई कहता है कि जिस मतदाता सूची के आधार पर मतदान हुआ है वह सही नहीं है, तो इसका अर्थ है कि उन्हें 1961 में सरकार की ओर से प्रस्तावित और 1961 में संसद से पारित कानून की कोई परवाह नहीं है।

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ महीनों में बिहार और अन्य राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, इसलिए विपक्षी दल इस मुद्दे को हवा दे रहे हैं। राहुल गांधी ने जानबूझकर अमेरिका में यह मुद्दा उछाला ताकि इसे मीडिया में जगह मिल सके। आने वाले दिनों में यह मुद्दा चर्चा में बना रहेगा। आयोग ने पिछले दिनों कई बार कहा है कि ईपीआईसी नंबरों के दोहराव का मतलब डुप्लीकेट या फर्जी मतदाता नहीं है। वह अपने तर्क पर कायम है और अपनी बात को साबित करने के लिए लगातार डेटा जारी कर रहा है।

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