चार महीने की यात्रा में क्या-क्या करेगा आदित्य-एल1

आदित्य एल-1 को लैंग्रेंजियन बिन्दु 1 (एल1) तक पहुंचने में करीब चार महीने का समय लगेगा। इस दौरान यह 15 लाख किलोमीटर का सफर तय करेगा। चंद्रयान-3 की तरह यह भी अलग-अलग कक्षा से गुजरकर अपने गंतव्य तक पहुंचेगा।  

Sep 2, 2023 - 12:00
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चार महीने की यात्रा में क्या-क्या करेगा आदित्य-एल1
आदित्य-एल1 मिशन

नई दिल्ली। (आरएनआई) चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक उतारने के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक और इतिहास रच दिया। उत्साह से लबरेज राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी ने आज आदित्य-एल1 मिशन की सफल लॉन्चिंग की। इस मिशन का उद्देश्य सूर्य का अध्ययन करना है।
चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक सफलता के बाद दुनिया की नजर आदित्य-एल1 मिशन पर है। आदित्य-एल1 क्या है? लॉन्चिंग के बाद मिशन अपने गंतव्य पर कब पहुंचेगा? इस दौरान प्रक्रियाएं क्या-क्या होंगी? पहुंचने के बाद मिशन क्या-क्या करेगा? आइए समझते हैं। 


आदित्य एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला मिशन है। इसके साथ ही इसरो ने इसे पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन कहा है। आदित्य-L1 का प्रक्षेपण आज सुबह 11:50 बजे किया गया। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आदित्य एल1 का प्रक्षेपण किया गया। भारत का आदित्य एल1 अभियान सूर्य की अदृश्य किरणों और सौर विस्फोट से निकली ऊर्जा के रहस्य सुलझाएगा।
अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना है जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किमी दूर है। दरअसल, लैग्रेंजियन बिंदु वे बिंदु हैं जहां दो वस्तुओं के बीच कार्य करने वाले सभी गुरुत्वाकर्षण बल एक-दूसरे को निष्प्रभावी कर देते हैं। इस वजह से एल1 बिंदु का उपयोग अंतरिक्ष यान के उड़ने के लिए किया जा सकता है।
आदित्य एल-1 को लैंग्रेंजियन बिन्दु 1 (एल1) तक पहुंचने में करीब चार महीने का समय लगेगा। इस दौरान यह 15 लाख किलोमीटर का सफर तय करेगा। चंद्रयान-3 की तरह यह भी अलग-अलग कक्षा से गुजरकर अपने गंतव्य तक पहुंचेगा। यानी, आदित्य एल-1 को भी सीधे नहीं भेजा गया है। 
अंतरिक्ष यान को प्रारंभ में पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाएगा।
फिर कक्षा को अधिक अण्डाकार बनाने वाली प्रक्रिया की जाएगी।
अंतरिक्ष यान को प्रणोदन का उपयोग करके L1 बिंदु की ओर बढ़ाया जाएगा। जैसे ही अंतरिक्ष यान लैग्रेंज बिंदु की ओर बढ़ेगा, यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव से बाहर निकल जाएगा।
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव को छोड़ने के बाद, मिशन का क्रूज चरण शुरू होगा। इस चरण में अंतरिक्ष यान को उतारने की प्रक्रिया की जाती है।
मिशन के अंतिम चरण में अंतरिक्ष यान को लैग्रेंज बिंदु (एल1) के चारों ओर एक बड़ी हेलो कक्षा में स्थापित किया जाएगा। इस तरह से लॉन्चिंग और एल1 बिंदु के पास हेलो कक्षा में अंतरिक्ष यान की स्थापना में करीब चार महीने का वक्त गुजरेगा।
भारत का महत्वाकांक्षी सौर मिशन आदित्य एल-1 सौर कोरोना (सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी भाग) की बनावट और इसके तपने की प्रक्रिया, इसके तापमान, सौर विस्फोट और सौर तूफान के कारण और उत्पत्ति, कोरोना और कोरोनल लूप प्लाज्मा की बनावट, वेग और घनत्व, कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की माप, कोरोनल मास इजेक्शन (सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोट जो सीधे पृथ्वी की ओर आते हैं) की उत्पत्ति, विकास और गति, सौर हवाएं और अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करेगा।

आदित्य-एल1 मिशन सूर्य का व्यवस्थित अध्ययन करने के लिए सात वैज्ञानिक पेलोड का एक सेट ले गया है। विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (वीईएलसी) सूर्य के वायुमंडल के सबसे बाहरी भाग यानी सौर कोरोना और सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोटों यानी कोरोनल मास इजेक्शन की गतिशीलता का अध्ययन करेगा।


सोलर अल्ट्रा-वायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (एसयूआईटी) नामक पेलोड अल्ट्रा-वायलेट (यूवी) के निकट सौर प्रकाशमंडल और क्रोमोस्फीयर की तस्वीरें लेगा। इसके साथ ही SUIT यूवी के नजदीक सौर विकिरण में होने वाले बदलावों को भी मापेगा।
आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (एएसपीईएक्स) और प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (पीएपीए) पेलोड सौर पवन और शक्तिशाली आयनों के साथ-साथ उनके ऊर्जा वितरण का अध्ययन करेंगे।
सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SoLEXS) और हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS) विस्तृत एक्स-रे ऊर्जा रेंज में सूर्य से आने वाली एक्स-रे किरणों का अध्ययन करेंगे। वहीं, मैग्नेटोमीटर पेलोड को L1 बिंदु पर दो ग्रहों के बीच के चुंबकीय क्षेत्र को मापने के लिए बनाया गया है।
आदित्य-एल1 के सातों विज्ञान पेलोड की खास बात है कि ये देश में विभिन्न प्रयोगशालाओं द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किए गए हैं। ये सभी पेलोड इसरो के विभिन्न केंद्रों के सहयोग से विकसित किए गए हैं।

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