चार दशक में नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन 40 फीसदी बढ़ा
बोस्टन कॉलेज के प्रोफेसर हानकिन तियान का कहना है कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए मानवीय गतिविधियों से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी लानी होगी।
नई दिल्ली (आरएनआई) पृथ्वी को गर्म करने वाले नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) उत्सर्जन में 1980 से 2020 के बीच 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इस उत्सर्जन में चीन का सबसे अधिक योगदान रहा। इसके बाद दूसरे नंबर पर भारत और तीसरे नंबर पर अमेरिका रहा।
जलवायु वैज्ञानिकों के नेटवर्क ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है। जर्नल अर्थ सिस्टम साइंस डेटा में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि बीते दशक में एन2ओ का 74 प्रतिशत उत्सर्जन कृषि में नाइट्रोजन उर्वरकों और पशु खाद के इस्तेमाल की वजह से हुआ था। वैज्ञानिकों ने यह भी कहा है कि कार्बन डाइऑक्साइड से लगभग 300 गुना अधिक ग्लोबल वार्मिंग क्षमता वाली ग्रीनहाउस गैस एन2ओ में लगातार बढ़ोतरी से पृथ्वी के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। एन2ओ के 10 उत्सर्जक देशों में चीन, भारत, अमेरिका, ब्राजील, रूस, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, तुर्की और कनाडा शामिल हैं।
बोस्टन कॉलेज के प्रोफेसर हानकिन तियान का कहना है कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए मानवीय गतिविधियों से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी लानी होगी। नाइट्रस ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन के बाद तीसरी सबसे महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस है। यह 100 साल में कार्बन डाइऑक्साइड के मुकाबले 273 गुना अधिक शक्तिशाली हो गई है। ग्लोबल वार्मिंग में नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन लगभग 0.1 डिग्री का योगदान देता है।
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