गोवर्धन पूजा के दिन गाय गोहरी पर्व आदिवासी पटेलिया समाज
गुना (आरएनआई) जिले से 50 किलोमीटर दूर ग्राम बरखेड़ा नागदा पर एक अनूठी परंपरा जमीन पर लेटे मन्नत धारियों के ऊपर से दौड़ कर निकलती है।
गाय बेल आदिवासी अंचल में दीपावली के अगले दिन मनाए जाने वाला गाय गोहरी पर्व के दौरान लोगो ने मन्नत पूरी की।
आदिवासी पटेलिया समाज अपनी पारंपरिक संस्कृति से ही वर्षों से यहां अनेक पूर्व पूरी परंपरा के साथ मनाया जा रहा है। पिछले कुछ वर्ष संक्रमण के कारण गाय गोरी का परवाह नहीं मना रहे थे। इस वर्ष नियमों का पालन करते हुए पर्व को मनाया गया। आदिवासी अंचल में इस पर्व का ऐतिहासिक महत्व है।
यह पर्व गाय और ग्वालो के आत्मीय रिश्ते की कहानी कहता है।गाय यानी जगत के पालनहार और गौहरी का अर्थ होता है ग्वाला। कई वर्षों से चली आ रही है परंपरा।
इसमें ग्रामीणों अपनी गायों को सजाकर पहुंचते हैं और हिडी गीत गाया जाता है यह गीत ऐसा है। जो दीपावली के 8 दिन पहले से गाया जाता है और गाय गोहरी के दिन सुबह भी इसे ग्रामीण गाते हैं।
इसके बाद मन्नतधारी जमीन पर लेट जाते हैं और गाय के ऊपर से गुजरती है लेकिन किसी को कभी चोट नहीं आती। गाय सजी-धजी गाय जमीन पर लेटे मन्नत धारियों के ऊपर से गुजरती तो है लेकिन उनके मुंह से उप की आवाज तक नहीं आती। सालर माता का जयकारा चलता है यह परंपरा वर्षों पूर्व से चली आ रही है।
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