'गेहूं और चावल की पैदावार में आ सकती है गिरावट', जलवायु परिवर्तन को लेकर मौसम विभाग की चेतावनी
मौसम विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में चावल और गेहूं की पैदावार में 6 से 10 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। जलवायु परिवर्तन के चलते समुद्र का पानी गर्म हो रहा है। इसके चलते मछलियां गहरे समुद्र में ठंडे पानी में जा रही हैं। इसका असर मछुआरा समुदाय पर भी पड़ रहा है।
नई दिल्ली (आरएनआई) जलवायु परिवर्तन देश की कृषि पर बड़ा असर डाल सकता है। जलवायु परिवर्तन को लेकर मौसम विभाग के अधिकारियों ने चेतावनी जारी की है। मौसम विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में चावल और गेहूं की पैदावार में 6 से 10 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। वहीं जलवायु परिवर्तन के चलते समुद्र का पानी गर्म हो रहा है। इसके चलते मछलियां गहरे समुद्र में ठंडे पानी में जा रही हैं। इसका असर मछुआरा समुदाय पर भी पड़ रहा है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने बताया कि जलवायु परिवर्तन से गेहूं और चावल दोनों की पैदावार में 6 से 10 प्रतिशत तक की कमी आएगी। इसका देश के किसानों और खाद्य सुरक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पश्चिमी विक्षोभ की आवृत्ति और तीव्रता कम हो रही है। इससे भी मौसम प्रणाली में बदलाव आ रहा है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम रविचंद्रन ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग से भविष्य में हिमालय और उसके नीचे के मैदानी इलाकों में रहने वाले अरबों लोगों के लिए गंभीर जल संकट पैदा हो सकता है। उन्होंने कहा कि जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (एनआईसीआरए) के अनुसार भारत में गेहूं की पैदावार में साल 2100 तक 6 से 25 प्रतिशत तक की गिरावट आने का अनुमान है। वहीं चावल की पैदावार में साल 2050 तक सात प्रतिशत और 2080 तक 10 प्रतिशत की कमी आने की उम्मीद है।
उन्होंने यह भी कि समुद्र का तापमान बढ़ने से तट के पास मछली पकड़ने की मात्रा भी कम हो रही है। सचिव ने कहा कि इंसानों की तरह मछलियां भी ठंडा पानी पसंद करती हैं। जैसे-जैसे समुद्र का तापमान बढ़ता है, मछलियां तट से दूर ठंडे पानी की ओर जा रही हैं। इससे मछुआरा समुदाय के लिए बड़ी समस्याएं पैदा हो रही हैं और उनकी आजीविका पर असर पड़ रहा है।
सचिव रविचंद्रन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण वायुमंडल में अस्थिरता बढ़ने से मौसम का सटीक पूर्वानुमान लगाना भी कठिन होता जा रहा है। कई मौसमी घटनाएं अब छोटे क्षेत्रों में कम समय में एक साथ हो रही हैं। मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक महापात्रा ने कहा कि एक स्टडी में सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन भारी वर्षा की भविष्यवाणी करने के लिए लगने वाले समय को तीन दिन से घटाकर डेढ़ दिन कर सकता है।
रविचंद्रन ने कहा कि उत्तर-पश्चिम भारत को प्रभावित करने वाले पश्चिमी विक्षोभों की संख्या और तीव्रता में कमी होने के कारण हिमालय में बर्फ का जमाव कम हो रहा है। बर्फ पिघलने की दर बढ़ रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि इनपुट कम है और आउटपुट अधिक है। इसका मतलब है कि पानी की उपलब्धता कम हो रही है। भारत और चीन सहित दो अरब से अधिक लोग इस पानी पर निर्भर हैं। यह एक बहुत गंभीर मुद्दा है और हमें भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए। बर्फ से ढकी हिमालय और हिंदुकुश पर्वत शृंखलाओं को तीसरा ध्रुव कहा जाता है, जो ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर सबसे बड़े जल संसाधन रखती हैं। दुनिया की आबादी का सातवां हिस्सा इन पर्वत श्रृंखलाओं से निकलने वाली नदियों के पानी पर निर्भर है।
मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों के अनुसार साल 1901 और 2018 के बीच भारत का औसत तापमान लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ा। वहीं वर्ष 2024 भारत में 1901 के बाद से अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा। इसमें औसत न्यूनतम तापमान 0.90 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।
भारत में 2023-24 फसली वर्ष में 113.29 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। यह वैश्विक उत्पादन का 14 फीसदी था। जबकि इसी फसली वर्ष में 137 मिलियन टन चावल का उत्पादन हुआ। चावल और गेहूं देश के मुख्य आहार हैं और इस पर देश की 1.4 बिलियन निर्भर है। वहीं भारत में लगभग आधी आबादी कृषि पर निर्भर है। देश में 80 प्रतिशत से अधिक किसान छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है।
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