गुना तहसील में नामांतरण घोटाला: जालसाजी, मिलीभगत और 40 लाख की फंसी रकम

Mar 17, 2025 - 16:00
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गुना तहसील में नामांतरण घोटाला: जालसाजी, मिलीभगत और 40 लाख की फंसी रकम

गुना (आरएनआई) जिला मुख्यालय पर राजस्व महकमे की कारगुजारियां जिला प्रषासन को निरंतर चुनौती देती रहती है। हाल ही में जिला मुख्यालय की तहसील की एक ऐसी जालसाजी सामने आई है, जिसमें तहसीलदार ने परोक्ष रूप से जिला कलेक्टर को ही जालसाजी में शामिल कर लिया है। मामला है जिला मुख्यालय के एक भूखंड के नामांतरण का, जिसमें गुना नगर तहसील में नियमों के स्थान पर मनमर्जी से आदेष पारित हुए हैं और इस मनमर्जी के लिए जालसाजी की गई है। इस मामले में एक राष्ट्रीयकृत बैंक के 40 लाख रुपये फंसते दिख रहे हैं। 

विस्तृत जानकारी अनुसार दिनांक 27 जनवरी 2023 को श्रीमती महादेवी रघुवंषी ने विक्रय पत्र क्रमांक एमपी 13342022ए 1612930 पंजीयन दिनांक 10.06.2022 के आधार पर प्रक्रिया शुल्क राषि रुपये 100/- का चालान नम्बर 118954 जमा कर नामांतरण के लिए आवेदन किया, इस ऑनलाईन आवेदन क्रमांक 16432792 की अभिस्वीकृति भाग-दो में प्रक्रिया शुल्क स्पष्ट अंकित है जबकि दिनांक 01.01.1900 अंकित है। करीब तीन माह बाद दिनांक 18.04.2023 को इस आवेदन के प्रकरण क्रमांक 2522 में तहसीलदार गुना नगर श्री जी.एस. बैरवा ने विक्रय पत्र में रकबा अधिक बताकर (विक्रय पत्र में 2312 एवं वर्तमान खसरा में 2260 वर्गमीटर) नामांतरण आवेदन निरस्त कर दिया। इस आवेदन के साथ विक्रय पत्र संपादित कराने वाले विक्रेताओं का शपथ पत्र एवं पटवारी श्री संजीव अहिरवार की रिपोर्ट संलग्न है जिसमें खसरे में रकबा कम बताया है।

अब हो गया नामांतरण - नामांतरण आवेदन के निरस्त होने के आदेष के मात्र दस दिन बाद 29 अपै्रल 2024 को इसी विक्रय पत्र के आधार पर नामांतरण के लिए आवेदन हुआ जिसका आवेदन क्रमांक 17359075 है। यह आवेदन किसने किया, कैसे किया, यह न देखते हुए इसका प्रकरण क्रमांक 0290 तैयार हो गया और इस प्रकरण में तहसीलदार गुना ने 30 मई 2023 को आदेष पारित कर नामांतरण स्वीकृत कर दिया। आष्यर्चजनक यह है कि 10 दिन पूर्व नामांतरण निरस्त करने वाले तहसीलदार श्री जी.एस. बैरवा ने ही अब नामांतरण स्वीकृत किया और दोनों बार ही रिपोर्ट देने वाले पटवारी श्री संजीव अहिरवार रहे। प्रकरण क्रमांक 0290 में नामांतरण स्वीकृत करते समय वर्तमान खसरा 2260 वर्गफीट अंकित नहीं हुआ जो दस दिन पूर्व प्रकरण क्रमांक 2522 में स्पष्ट किया गया था। मात्र 10 दिन में तहसीलदार और पटवारी का नजरिया कैसे से बदला, समझ से परे है।

फिर निरस्त हुआ नामांतरण - एक ही विक्रय पत्र का नामांतरण निरस्त करने के आदेष के बाद नामांतरण करने के आदेष पारित करने वाले तहसीलदार श्री जी.एस. बैरवा ने 15 माह बाद दिनांक 04.09.2024 को आदेष पारित कर प्रकरण क्रमांक 0290 में स्वयं के द्वारा स्वीकृत किये गये नामांतरण को निरस्त कर दिया। नामांतरण निरस्ती का आदेष पारित करने के लिये तहसीलदार गुना द्वारा आदेष पुनर्विलोकन की अनुमति गुना कलेक्टर से ली गई। नामांतरण निरस्ती के इस आदेष में पटवारी के विरुद्ध मात्र अनुषासनात्मक कार्यवाही का प्रतिवेदन भेजने का भी उल्लेख किया गया है। नामांतरण निरस्ती के इस आदेष में आवेदिका द्वारा पुनः आवेदन करने को सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 11 के तहत ‘‘रेसजुडिकाटा’’ की श्रेणी में माना है। तहसीलदार पुराने चालान और नये मोबाईल नम्बर के साथ दिख रहे फर्जी हस्ताक्षर का उल्लेख करते तो ‘‘रेसजुडिकाटा’’ कहां से आता। 

एक पक्षीय और चालीस लाख - नामांतरण निरस्त करने में तहसीलदार श्री जी.एस. बैरवा ने पक्षकारों में कोई विवाद न होते हुए भी विवादित भूमि लिखकर सीधे तौर पर प्रभावित होने वाले पक्षकार, क्रेता श्रीमती महादेवी रघुवंषी को सुनवाई का मात्र एक अवसर देकर एक पक्षीय कार्यवाही की, दिनांक 23.08.2024 को प्रकरण प्रस्तुत होकर सूचना पत्र जारी हुआ और चार दिन बाद दिनांक 28.08.2024 को एक पक्षीय कार्यवाही हो गई। नामांतरण निरस्त करने में विक्रेताओं की अनापत्ति ली गई। विक्रय पत्र संपादित करा नामांतरण कराने के लिये शपथपत्र देने वाले विक्रेताओं की अनापत्ति का औचित्य क्या रहा, तहसीलदार ही जानते होंगे। इस भू-खण्ड का नामांतरण दिनांक 30.05.2023 को हो जाने के बाद यूको बैंक गुना इस भू-खण्ड को बंधक रखकर 40 लाख रुपये का ऋण दे चुका है। अब यदि बैंक ऋण की अदायगी नहीं होती है तो बैंक के 40 लाख रुपये का लफड़े में पड़ना तय है। क्योंकि नामांतरण निरस्त होने के बाद बंधक रखे भू-खण्ड का मालिकाना हक श्रीमती महादेवी रघुवंषी के पास रहा ही नहीं है। बैंक की इस राषि के लिये तहसीलदार, पटवारी जिम्मेदार माने जाएेंगे।

जालसाजी ही जालसाजी - तहसीलदार गुना ने प्रकरण क्रमांक 0290 में मई 2024 को जिस आदेष में नामांतरण स्वीकृत किया है उस प्रकरण में स्पष्ट होता है कि नामांतरण के लिए जो आवेदन है उसमें आवेदिका के हस्ताक्षर पहली नजर में ही पहली रजिस्ट्री के वक्त तैयार नामांतरण आवेदन (प्रकरण क्रमांक 2522 के लिए) के हस्ताक्षर से मिलान ही नहीं खाते हैं। नामांतरण के लिए लगने वाले शुल्क राषि रुपये 100/- का जो चालान नम्बर 118954 दिनांक 27.01.2023 इस प्रकरण क्रमांक 0290 में लगा है वही चालान मूल प्रकरण क्रमांक 2522 में लगा था। आवेदन की ऑनलाईन अभिस्वीकृति भाग-2 में चालान की राषि निरंक है जबकि मूल आवेदन की अभिस्वीकृति भाग-2 में चालान की राषि स्पष्ट रुपये 100/- अंकित है। आवेदिका का मोबाईल नम्बर दूसरे आवेदन में अलग है, नामांतरण प्रकरण में नोटषीट पर अंकित आवेदिका के हस्ताक्षर भी मूल आवेदन से मेल नहीं खाते हैं।

बेचारा आर.सी.एम.एस. - सरकार ने पारदर्षिता लाने और नागरिकों को सुविधाओं की सुलभता के लिए रेवेन्यु केस मेनजमेंट सिस्टम (आर.सी.एम.एस.) लागू किया हुआ है। तहसीलदार गुना श्री बैरवा का कहना रहा है कि आर.सी.एम.एस. में यह सुविधा नहीं है जिससे स्पष्ट हो सके कि प्रकरण पूर्व में स्वीकृत या अस्वीकृत हो चुका है। आर.सी.एम.एस. की बेचारगी पर तरस खाओ या तहसीलदार श्री बैरवा के ज्ञान की तारीफ करो, असलियत तो यह है कि जब प्रकरण नंबर और मोबाईल नम्बर ही बदल जाएगा तो आर.सी.एम.एस. क्या करेगा। इतना ही नहीं आर.सी.एम.एस. की गर्दन तो तहसील ने ही पकड़ रखी है तभी तो आज इस प्रकरण क्रमांक 2522 में पारित आदेष, पटवारी टीप आर.सी.एम.एस. पोर्टल पर दिख ही नहीं रहे हैं।

अवलोकन की फुर्ती - शासन स्तर पर जारी सामान्य आदेष बल्लभ भवन भोपाल से गुना तहसील तक किस फुर्ती से पहुंचे, यह भी यहां हास्यास्पद दिख रहा है क्योंकि सामान्यतः बल्लभ भवन से आदेष मेल पर ही जारी होने के दूसरे दिन पहुंचते हैं। गुना तहसील के अजूबे पर गौर करें तो साफ होता है कि 15 जुलाई 2024 को म.प्र. शासन राजस्व विभाग बल्लभ भवन मंत्रालय क्रमांक 806 जारी हुआ और दूसरे दिन ही 16 जुलाई 2024 को तहसीलदार श्री जी.एस. बैरवा ने इस आदेष के पालन में पुराने प्रकरणों का अवलोकन कर लिया और इस अवलोकन में मात्र एक प्रकरण दिखा, जिसमें जालसाजी से नामांतरण किया गया था और इस प्रकरण की षिकायत हुई थी।

बेचारगी और पुनर्विलोकन - तहसीलदार श्री बैरवा ने इस अवलोकन उपरांत पुनर्विलोकन के लिए नोटषीट बढ़ाई जिसमें लिखा कि नामांतरण निरस्त होने के बाद नामांतरण स्वीकृत करने के लिए पुनर्विलोकन की अनुमति ली जाना था जो आवेदिका के कपट व्यवहार और पटवारी की गलत रिपोर्ट के कारण प्रक्रियात्मक गलती हुई है और आर.सी.एम.एस. में स्वीकृति/अभिस्वीकृति पकड़ने की सुविधा नहीं है। ढेर सारी बेचारगी दिखाकर तहसीलदार श्री बैरवा ने प्रकरण क्रमांक 0290 में दिनांक 30 मई 2023 को पारित आदेष (नामांतरण स्वीकृत) को म.प्र. भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 51(2)ख के तहत पुनर्विलोकन करने की अनुमति मांगने की नोटषीट दिनांक 16.07.2024 को एसडीएम गुना के माध्यम से कलेक्टर गुना को भेज दी। कलेक्टर गुना ने एक माह के अंदर ही 13 अगस्त 2024 को आदेष के पुनर्विलोकन की अनुमति दे दी।

राजस्व संहिता और प्रक्रियात्मक गलती - म.प्र. भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 51 के तहत (नवीन संषोधन 2018 तहसीलदार श्री जी.एस. बैरवा द्वारा अपनी ‘‘प्रक्रियात्मक गलती’’ को सही करने के लिए प्र्रेषित नोटषीट और कलेक्टर गुना द्वारा जारी पुनर्विलोकन की अनुमति में सुनियोजित प्रक्रियात्मक गलती की गई है। राजस्व संहिता की धारा 51(2)(ख) पुनर्विलोकन का आधार भूल या गलती बताती है लेकिन धारा 51 के उपखंड 2 से पहले उपखंड 1 का उल्लेख कतई नहीं। 
कहां गई फुर्ती - शासन स्तर पर जारी आदेष का जारी दिनांक के दूसरे दिन ही पालन करने वाले और आर.सी.एम.एस. की बेचारगी बताने वाले गुना तहसीलदार श्री जी.एस. बैरवा स्वयं अपने आदेष (नामांतरण निरस्ती दिनांक 04.09.2024) का अमल ही नहीं करा पाये हैं। भू अभिलेख के कम्प्यूट्रीकृत रिकॉर्ड के खसरे में पांच माह बाद जनवरी 2025 तक तो नामांतरण निरस्ती आदेष का अमल ही नहीं दिखा, खसरे में प्रकरण क्रमांक 0290 में पारित आदेष का उल्लेख है जो दिनांक 04.09.2024 को निरस्त किया जा चुका है। फुर्ती यहां क्यों नहीं दिखी यह सवाल अनुउत्तरित है और मूल प्रष्न आज भी प्रषासन के मुखिया के सामने खड़े हैं कि छल, कपट, मिलीभगत किसने और किससे की? क्या वेतनवृद्धि रोकना (वो भी मात्र पटवारी की) जालसाजी के लिये पर्याप्त है? भूखण्ड की रजिस्ट्री से ही जब रजिस्ट्री हुई तो रकबा 2312 से घटकर 2260 वर्गफिट कैसे रह गया? आदेष का अमल खसरे में आज तक क्यों नहीं हुआ। जालसाजी के इस प्रकरण में एफ.आई.आर. क्यों नहीं कराई जा रही है?

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