गहलोत पायलट विवाद भले ही थम गया, लेकिन कांग्रेस के सामने चुनाव में है ये चुनौतियां

कांग्रेस को लगातार दूसरी बार सरकार बनाने से पहले कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। सबसे बड़ी और अहम चुनौती सीएम गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट हैं।

Oct 9, 2023 - 11:15
 0  297
गहलोत पायलट विवाद भले ही थम गया, लेकिन कांग्रेस के सामने चुनाव में है ये चुनौतियां
अशोक गहलोत और सचिन पायलट

राजस्थान, (आरएनआई) में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही सत्ता में लौटने के लिए जोर लगा रहे है। कांग्रेय जहां रिवाज पलटने में लगी हुई तो भाजपा सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। प्रदेश के राजनीतिक इतिहास को देखें तो राजस्थान में आज तक जनता ने एक पार्टी की सरकार को लगातार दूसरा मौका नहीं दिया है। अगर इस बार कांग्रेस की जीत होती है तो राजस्थान की पिछले तीस सालों से चली आ रही परंपरा भी बदल जाएगी।

लेकिन कांग्रेस को लगातार दूसरी बार सरकार बनाने से पहले कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। सबसे बड़ी और अहम चुनौती सीएम गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट हैं। 2018 के चुनाव के बाद से ही राजस्थान में कांग्रेस के अंदर दो खेमे हो गए थे। बीते 5 सालों में पार्टी को राजस्थान में कई बार बगावत देखनी पड़ी। एक बार तो मामला अदालत तक पहुंच गया था।

लेकिन कुछ महीने पहले ही कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने राजस्थान के दोनों नेताओं से मुलाकात कर दोनों की सुलह कराई थी। इस मुलाकात के बाद उन्होंने कहा था, ‘अशोक गहलोत और सचिन पायलट एकजुट होकर विधानसभा चुनाव लड़ने पर सहमत हैं.'  इसके साथ ही दोनों नेताओं ने एक दूसरे को लेकर कोई बयानबाजी नहीं की है. जिससे माना जा रहा है कि फिलहाल अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों आपसी गिले शिकवे भुलाकर पार्टी के लिए एकजुटता के साथ मैदान में उतर गए हैं।

बाहरी तौर पर भले ही दोनों नेता एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी नहीं करते हुए नजर आ रहे है। लेकिन चुनाव में जीत हासिल करने के लिए पार्टी की चुनौतियां खत्म नहीं हुई है। अभी भी दोनों नेताओं के गुट अंदर सक्रिय है। लगातार एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे है। इधर, चुनाव से पहले राज्य में होने वाले तमाम सर्वे और उनके परिणाम बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस, दोनों ही पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर हो सकती है।

भारतीय जनता पार्टी ने राज्य की अशोक गहलोत सरकार पर कई आरोप लगाए है। इनमें सीएम गहलोत का हिंदुत्व विरोधी होने का आरोप एक बड़ा मुद्दा बनकर सामने आया है। ये वो मुद्दा है जिससे कांग्रेस परेशान है। पीएम मोदी भी चित्तौड़गढ़ की जनसभा में उदयपुर में हुई (कन्हैया लाल हत्याकांड) का जिक्र कर चुके है। गहलोत सरकार को निशाने पर लेते हुए पीएम मोदी ने कहा, कोई भी तीज-त्योहार राजस्थान में शांति से मना पाना संभव नहीं होता। कब दंगे भड़क जाए, कब कर्फ्यू लग जाए, कोई नहीं जानता। हालांकि कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदलकर इस बार हिंदू तीर्थस्थलों, धार्मिक पर्यटन स्थलों, मंदिरों में जमकर काम किए हैं और कई योजनाएं भी चलाई हैं। खुद सीएम गहलोत पिछले दिनों कई धार्मिक स्थलों के दौरे करते हुए नजर आए।

विधानसभा चुनाव में लाल डायरी चर्चा में है। कुछ दिन पहले ही कांग्रेस में ही मंत्री रहते ही राजस्थान विधानसभा में राजेंद्र गुढ़ा ने अपनी ही सरकार को महिलाओं पर अत्याचार रोकने में विफल बता दिया था। गुढ़ा ने पार्टी का हिस्सा रहते हुए महिलाओं पर अत्याचार जैसे बयान देने के साथ ही लाल डायरी का मुद्दा उछाल दिया था। जो चुनावी साल में गहलोत सरकार के लिए गले की फांस बन गया है। गुढा का दावा किया है कि इस लाल डायरी में अशोक गहलोत के खिलाफ आरोपों की पूरी फेहरिस्त लिखी है। उनका आरोप है कि संकट के वक्त कांग्रेस ने जितने भी विधायकों को खरीदा है उसका पूरा लेखा-जोखा इस डायरी में लिखा हुआ था। इन आरोपों के बाद गहलोत सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। इस प्रकरण के सामने आने के बाद पीएम मोदी और भाजपा लगातार कांग्रेस को भ्रष्टाचार के मामले पर घेरती हुए नजर आ रही है।

राजस्थान में पिछले 30 सालों से सत्ता बदलने का रिवाज चल रहा है। लेकिन कांग्रेस सरकार का इस रिवाज तोड़ना किसी चुनौती से कम नहीं है। प्रदेश के ज्यादातर लोगों को उम्मीद है कि इस बार राज्य में सरकार बदलनी  की परंपरा के अनुसार भारतीय जनता पार्टी की जीत होगी। हालांकि चुनाव प्रचार से लेकर योजनाओं के दम पर गहलोत और कांग्रेस बार बार ज्यादा को विश्वास दिल रही है कि वे सरकार में फिर से वापसी कर रहे है। हालांकि अब कांग्रेसको चुनाव प्रचारों के दौरान जनता को ज्यादा विश्वास दिलाना होगा कि उनकी सरकार भारतीय जनता पार्टी से बेहतर क्यों है।

सीएम अशोक गहलोत ने बड़ा सियासी दांव खेलते हुए राजस्थान में कई जिले बनाने की घोषणा कर दी है। राजस्थान में अब जिलों की संख्या 53 हो जाएगी। आचार संहिता लगने से ऐन पहले हुई इस घोषणा को चुनाव के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस दांव को कांग्रेस सरकार को एक बार फिर सत्ता में लाने की सबसे आक्रामक नीति के तौर पर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि इस कदम का फायदा कांग्रेस सरकार को चुनावों जरूर मिलेगा। इतना ही नहीं अपने साल के कार्यकाल में अशोक गहलोत ने कई ऐसी स्कीमें शुरू की जिसका सीधा लाभ आम जन को पहुंचा है। इन स्कीमों में ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) लागू करने की पहल, चिरंजीवी बीमा योजना, फ्री बिजली, महिलाओं को फ्री स्मार्टफोन, राशन किट शामिल है।

पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो राजस्थान में साल 2018 में 200  विधानसभा सीटों पर चुनाव हुआ था. जिसमें कांग्रेस ने 99 सीटें जीती थी. जो बहुमत की संख्या से सिर्फ दो सीट कम थी. राज्य में किसी भी पार्टी को बहुमत से जीत हासिल करनी है तो कम से कम 101 सीटें अपने नाम करनी होगी.

साल 2018 में 99 सीटें अपने नाम करने के बाद कांग्रेस ने बहुजन समाज पार्टी (BSP) और राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के समर्थन के साथ बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया और सत्ता में आ गई. वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी (BJP) को 73 सीटें मिली थी और कांग्रेस के बाद  भारतीय जनता पार्टी दूसरे नंबर पर रही।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

RNI News Reportage News International (RNI) is India's growing news website which is an digital platform to news, ideas and content based article. Destination where you can catch latest happenings from all over the globe Enhancing the strength of journalism independent and unbiased.