गर्मी से 85 फीसदी मौतें बढ़ीं, गर्मी से मरने वालों का पोस्टमॉर्टम जरूरी नहीं
केंद्र की ओर से सभी मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पतालों के लिए जारी निर्देशों में कहा गया है गर्मी से मरने वालों का पोस्टमॉर्टम जरूरी नहीं है लेकिन इस मौत के प्रमाणपत्र पर अतिताप लिखा जाना चाहिए।
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नई दिल्ली (आरएनआई) जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता तापमान वैश्विक समस्या बनता जा रहा है। गर्मी के कारण हीट स्ट्रोक के साथ ही पुरानी बीमारियां भी प्रभावी होने लगी हैं जिसकी वजह से मौतों में भी इजाफा हो रहा है।
जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनपीसीसीएचएच) के विशेषज्ञों के अनुसार 1991 से 2000 की तुलना में 2013 से 2022 के बीच गर्मी से होने वाली मौतों में 85 फीसदी का इजाफा देखने को मिला है। अगर इसी तरह धरती गर्म होती रही और अधिकतम तापमान बढ़ता रहा तो आगामी 2050 तक दुनिया भर में गर्मी से होने वाली मौतों में करीब 370% की वृद्धि का अनुमान है। देश में पहली बार गर्मी से होने वाली मौतों के शव परीक्षण को लेकर दिशानिर्देश तैयार किया गया है। इसे केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के साथ साझा करते हुए प्रत्येक अस्पताल तक पहुंचाने के लिए कहा है। सभी मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पतालों के लिए जारी निर्देशों में कहा गया है गर्मी से मरने वालों का पोस्टमॉर्टम जरूरी नहीं है लेकिन इस मौत के प्रमाणपत्र पर अतिताप लिखा जाना चाहिए।
पश्चिमी अमेरिका के एक अध्ययन का हवाला देते हुए यह भी कहा है कि गर्मी के मौसम में दैनिक सामान्य तापमान में अगर 4.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होती है तो कार्डियोवास्कुलर यानी हार्ट अटैक के मामलों में करीब 2.6% की वृद्धि हो सकती है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के निदेशक दिलीप मावलंकर का कहना है कि देश में जन्म और मृत्यु से संबंधित प्रणाली पूरी तरह से व्यवस्थित नहीं है जिसकी वजह से गर्मी या सर्दी से मौत के मामलों की सही पहचान नहीं हो पाती। इन्हें अतिरिक्त मृत्यु के मामले में दर्ज किया जाता है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की अतिरिक्त निदेशक रोली सिंह ने उत्तर भारत का पहला हीट स्ट्रोक रूम दिल्ली के डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में शुरू किया है। अस्पताल आने वाले हीट स्ट्रोक के मामलों को इमरजेंसी से सीधे यहां लाया जाएगा और उन्हें ठंडे पानी में कुछ समय के लिए रखा जाएगा क्योंकि शीतलन की शुरुआत में हर मिनट मायने रखता है।
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