गंगा, ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों पर पड़ेगा जलवायु परिवर्तन का खतरनाक प्रभाव
हाईवेटिंग रिवर बेसिन गवर्नेंस एंड कोऑपरेशन इन द एचकेएच रीजन रिपोर्ट में कहा गया है कि गंगा नदी भारतीय उपमहाद्वीप में 60 करोड़ से अधिक व्यक्तियों के लिए पवित्र और आवश्यक मानी जाती है।
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नई दिल्ली (आरएनआई) मानवीय गतिविधियों और क्रिया-कलापों के कारण दुनिया का तापमान बढ़ रहा है और इससे जलवायु में होता जा रहा परिवर्तन अब मानव जीवन के हर पहलू के लिए खतरा बन चुका है। एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन का खतरनाक प्रभाव गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र सहित दक्षिण एशिया की प्रमुख नदी घाटियों पर महसूस किया जाएगा। इसके साथ ही यह भी बताया गया कि मानवजनित गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण करीब एक अरब लोगों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
हाईवेटिंग रिवर बेसिन गवर्नेंस एंड कोऑपरेशन इन द एचकेएच रीजन रिपोर्ट में कहा गया है कि इन तीन नदियों पर नदी बेसिन प्रबंधन के लिए जलवायु लचीला दृष्टिकोण अपनाने की तुरंत जरूरत है। बता दें, हिंदू कुश हिमालय दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों के लिए मीठे पानी का स्रोत हैं। उनकी बर्फ, ग्लेशियरों और वर्षा से उत्पन्न पानी एशिया की 10 सबसे बड़ी नदी प्रणालियों को भरता है।
गंगा भारतीय उपमहाद्वीप में 60 करोड़ से अधिक व्यक्तियों के लिए पवित्र और आवश्यक मानी जाती है। अब यह भी बढ़ते पर्यावरणीय खतरों का सामना कर रही है। तेजी से औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और गहन कृषि प्रथाओं ने नदी के पारिस्थितिक स्वास्थ्य पर एक टोल लगाया है।
सीवेज और औद्योगिक कचरे ने पानी को गंभीर रूप से प्रदूषित कर दिया है, जिससे मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए जोखिम पैदा हो गया है। इन मानवजनित गतिविधियों के साथ-साथ, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव मौजूदा चुनौतियों को बढ़ा रहे हैं, विशेष रूप से बाढ़ और सूखे के रूप में।
मानसून का मौसम, जो जल संसाधनों को फिर से भरने के लिए महत्वपूर्ण होता है वो आज विनाशकारी बाढ़ लाता है। जबकि शुष्क मौसम पानी की कमी सामने खड़ा कर देता है, खासकर बांग्लादेश जैसे निचले इलाकों में। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु संबंधी ये खतरे महिलाओं, विकलांग लोगों और हाशिए के समुदायों सहित कमजोर समूहों को असमान रूप से प्रभावित करते हैं।
इसी तरह, इंडस नदी की बात करें तो यह पाकिस्तान, भारत, अफगानिस्तान और चीन के 26.8 करोड़ लोगों के जीने का सहारा है। अभी जलवायु परिवर्तन के कारण यह सही हालत में नहीं है। बढ़ता तापमान और अनियमित मानसून इसे संकट की ओर धकेल रहा है।
सिंधु बेसिन में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का पैमाना खाद्य सुरक्षा, आजीविका और जल सुरक्षा को कमजोर कर रहा है। मानसूनी बारिश के समय और तीव्रता में भिन्नता का बेसिन के स्वास्थ्य और स्थिरता पर पहले से ही गहरा प्रभाव पड़ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन चुनौतियों को मौजूदा सामाजिक-आर्थिक कमजोरियों ने और बढ़ा दिया है, जो हाशिए पर मौजूद समुदायों की दुर्दशा को और बढ़ा रहे हैं।
ग्लेशियल पिघलने की दर बढ़ने की उम्मीद है, जिससे पूरे क्षेत्र में पानी की उपलब्धता प्रभावित होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में बेसिन में कोई बड़ा जल डायवर्जन नहीं है, लेकिन अपस्ट्रीम बांध निर्माण और जलवायु परिवर्तन अनुमानों से डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में शुष्क मौसम के प्रवाह में कमी आने की संभावना है, जिससे लाखों लोगों की जान प्रभावित होगी।
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