'खराब शिक्षा बच्चों के लिए जहर.'; नोबेल विजेता सेन बोले- हिंदू-मुस्लिम एकजुटता भारत की परंपरा
अमर्त्य सेन ने कहा, बच्चों में सहिष्णुता के मूल्यों को विकसित करना जरूरी नहीं, क्योंकि वे प्राकृतिक रूप से किसी भी 'विभाजनकारी जहर' से ग्रस्त नहीं होते। अगर बच्चों को 'बुरी शिक्षा' से बचाया जाए तो वे मित्र के रूप में बड़े होते हैं। बुरी शिक्षा उनके दिमाग में जहर घोल सकती है।
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कोलकाता (आरएनआई) नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने कहा कि भारत में हिंदू और मुसलमानों के एक साथ मिलकर काम करने और रहने की परंपरा है। उन्होंने कहा, हमारे देश का इतिहास रहा है कि हिंदू और मुस्लिम सदियों से पूर्ण समन्वय और तालमेल के साथ मिलकर काम करते रहे हैं। क्षितिमोहन सेन ने अपनी पुस्तक में इसे 'जुक्तोसाधना' के रूप में रेखांकित किया है। हमें वर्तमान समय में 'जुक्तोसाधना' के इस विचार पर जोर देने की जरूरत है।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री सेन शनिवार को वंचित युवाओं में किताब पढ़ने की आदत को बढ़ावा देने के लिए अलीपुर जेल संग्रहालय में एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता पर कहा कि केवल इसी पर जोर नहीं दिया जाना चाहिए। यह केवल दूसरे समुदाय को रहने देने और किसी को पीटने जैसा नहीं है। शायद मौजूदा स्थिति में यह एक आवश्यकता बन गई है, क्योंकि लोगों को पीटा जा रहा है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है कि हमें मिलकर काम करना है।
अपने उदार विचारों के लिए जाने जाने वाले सेन ने कहा, बच्चों में सहिष्णुता के मूल्यों को विकसित करना जरूरी नहीं, क्योंकि वे प्राकृतिक रूप से किसी भी 'विभाजनकारी जहर' से ग्रस्त नहीं होते। अगर बच्चों को 'बुरी शिक्षा' से बचाया जाए तो वे मित्र के रूप में बड़े होते हैं। बुरी शिक्षा उनके दिमाग में जहर घोल सकती है।
अमर्त्य सेन ने भारत के बहुलवादी चरित्र को नष्ट करने के किसी भी प्रयास के प्रति आगाह किया। उन्होंने कहा कि मुमताज के बेटे दारा शिकोह उन कुछ लोगों में से एक थे, जिन्होंने उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किया था। इससे पता चलता है कि वह हिंदू धर्मग्रंथों और संस्कृत भाषा में पारंगत थे।
उन्होंने कहा कि अब दो विचारधाराएं हैं, जो हमारे गौरव और खजाने ताज महल के खिलाफ कुछ टिप्पणियां कर रही हैं। जहां एक विचारधारा ताज महल के सुंदर दिखने और इसकी भव्यता के खिलाफ है। वहीं, दूसरी विचारधारा ताज महल का नाम बदलना चाहती है, ताकि इसका संबंध किसी मुस्लिम शासक से न रहे। जबकि, इसकी शानदार संरचना मुमताज बेगम की याद में बनाई गई है।
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