क्या शिव ही जल है जानते है वास्तु शास्त्री सुमित्रा से 'शिवपुराण' में क्या है
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल, कोलकाता, यूट्यूब वास्तु सुमित्रा
इस बार खास होगा सावन, ३० की बजाय ५८ दिन का होगा ।
हिंदू धर्म में सावन के महीने का बहुत बड़ा महत्व है। इस मास में भगवान शिव की सबसे ज्यादा पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि सावन का महीना भोलेनाथ को सबसे प्रिय है। शिव पुराण के अनुसार शंकर भगवान सावन माह में सोमवार का व्रत करने वाले भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। सावन के महीने का शिव भक्तों को हमेशा इंतजार रहता है, लेकिन इस बार का सावन बेहद खास रहने वाला है। दरअसल, इस बार सावन का महीना 2 महीने का होने वाला है। यह सावन ४ जुलाई २०२३ , मंगलवार से शुरू होगा और ३१ अगस्त २०२३ , गुरुवार को समाप्त होगा।
सावन पर बनने जा रहा है ये दुर्लभ संयोग
इस बार सावन की शुरुआत ४ जुलाई से होने जा रही है। सावन ४ जुलाई से ३१ अगस्त तक रहेंगे। यानी कि सावन का महीना इस बार ५८ दिनों का रहेगा। यह संयोग लगभग १९ वर्षों बाद बना है। इस बार अधिकमास के कारण सावन २ महीने का पड़ रहा है। अधिकमास की शुरुआत १८ जुलाई से होगी और १६ अगस्त इसका समापन होगा। इस बार साल २०२३, १२ महीने के बजाय १३ महीने का होगा। दरअसल इस बार अधिकमास के चलते ही ऐसा होगा। अधिकमास को मलमास और पुरुषोत्त मास भी कह सकते हैं। वैदिक कैलेंडर के अनुसार हर माह सूर्य का राशि परिवर्तन होता है, जिसे सूर्य संक्रांति के नाम से जाना जाता है। लेकिन तीन साल के अंतराल पर एक माह संक्रांति नहीं होती है तब इस माह को अधिकमास के नाम से जाना जाता है।
अधिक मास में काशी विश्वनाथ के दर्शन से लाभ
सावन इस बार दो हिस्सों में बंटा है। चार जुलाई से १८ जुलाई तक सामान्य सावन है। इसके बाद १ 8 जुलाई से १ 6 अगस्त तक अधिक मास है। अधिक मास में यानी 18 जुलाई से 16 अगस्त तक काशी विश्वनाथ में पांच कोसी परिक्रमा विशेष लाभ प्रदान करेगी। इसी दौरान राजगीर-गयाजी नहान भी किया जा सकता है।
सावन महीने की पूजन
सावन व्रत और शिव पूजा की विधि सूर्योदय से पहले जागें और स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को स्वच्छ कर वेदी स्थापित करें। शिवलिंग पर दूध चढ़ाकर महादेव के व्रत का संकल्प लें। सुबह-शाम भगवान शिव की प्रार्थना करें। पूजा के लिए तिल के तेल का दीया जलाए और भगवान शिव को पुष्प अर्पण करें। मंत्रोच्चार करने के बाद शिव को सुपारी, पंच अमृत, नारियल और बेल की पत्तियां चढ़ाएं। व्रत के दौरान सावन व्रत कथा का पाठ जरूर करें।
यह ५ पौराणिक तथ्य बताते हैं कि क्यों सावन है सबसे खास-
१ . मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।
२ . भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
३ . पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की; लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम 'नीलकंठ महादेव' पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का ख़ास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
४ . 'शिवपुराण' में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।
५ . शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे 'चौमासा' भी कहा जाता है; तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।
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