क्या भारत जनसांख्यिकीय लाभ हासिल कर सकता है?
यदि भारत को अपने बढ़ते युवा कार्यबल का लाभ उठाना है, तो उसे आर्थिक और औद्योगिक नीतियों को रणनीतिक रूप से लागू करने की आवश्यकता है।
नयी दिल्ली, 16 नवंबर 2022, (आरएनआई)। यदि भारत को अपने बढ़ते युवा कार्यबल का लाभ उठाना है, तो उसे आर्थिक और औद्योगिक नीतियों को रणनीतिक रूप से लागू करने की आवश्यकता है।
अगले दो दशक में देश के कार्यबल में शामिल होने को तैयार युवाओं की तेजी से बढ़ती संख्या के लिए रोजगार सृजित करना भारत की नयी अनिवार्यता है।
वर्ष 2020 से दो दशकों की अवधि के भीतर दुनिया भर में कामकाजी आबादी में 20 प्रतिशत की वृद्धि भारत से होगी। विश्व बैंक के अनुमानों से पता चलता है कि 2020 और 2040 के बीच 15 से 59 वर्ष की आयु की भारत की जनसंख्या में 13.46 करोड़ की वृद्धि होने की उम्मीद है, जबकि इसी अवधि के दौरान चीन में लगभग इतनी ही संख्या में गिरावट दर्ज की जा सकती है।
क्षमतावान श्रमिकों की बड़ी संख्या भारत के आर्थिक विकास के लिए एक बड़ा वरदान है, लेकिन युवाओं की बढ़ती संख्या के लिए नये और अच्छे रोजगार के अवसर पैदा करना नीति निर्माताओं के लिए एक चुनौती भी है।
भारत की अर्थव्यवस्था और श्रम शक्ति एक संरचनात्मक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, जो नयी नौकरियों के सृजन की तात्कालिकता को बढ़ावा दे रही है। हाल ही में 2017-18 तक, कृषि से संबंधित नौकरियां भारत के 41.8 प्रतिशत कामगारों की आजीविका का स्रोत थीं। कामगारों की यह संख्या 45.76 करोड़ थी।
वर्ष 2000 वाले दशक के मध्य से कृषि क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है और आने वाले वर्षों में इस प्रक्रिया में तेजी आने की संभावना है। इसका परिणाम यह होगा कि लाखों श्रमिक गांव-देहात के अपने घरों को छोड़कर कस्बों और शहरों में गैर-कृषि नौकरियों की तलाश करेंगे।
वर्ष 2018 में भारत में विद्यार्थियों की संख्या 35.04 करोड़ थी, जो देश की कुल आबादी (131.63 करोड़) का एक चौथाई थी और यह इसके मौजूदा कामगारों की संख्या से 75 प्रतिशत से अधिक थी।
छात्रों की यह विशाल संख्या आने वाले वर्षों में श्रम बाजार में प्रवेश करेगी और उनकी नौकरी की आकांक्षा उनके माता-पिता की तुलना में बहुत अधिक होगी।
भारत की रोजगार चुनौती का एक विशिष्ट क्षेत्रीय आयाम है।
भारत 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों का एक संघ है। उत्तर प्रदेश और बिहार दो सबसे अधिक आबादी वाले राज्य हैं तथा इनमें काफी युवा आबादी है।
वर्ष 2021 और 2036 के बीच भारत में कामकाजी उम्र की आबादी में कुल वृद्धि में 41.9 प्रतिशत की हिस्सेदारी इन दोनों राज्यों की होगी। इतना ही नहीं, ये दो सबसे गरीब भारतीय राज्य भी हैं।
कुछ दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों, विशेष रूप से केरल और तमिलनाडु में जनसांख्यिकीय संरचनाएं काफी भिन्न हैं। प्रजनन क्षमता में गिरावट एवं अन्य उपलब्धियों में ये दोनों राज्य देश के बाकी हिस्सों से काफी आगे हैं, लेकिन अब तेजी से बढ़ती आबादी के कारण इन राज्यों को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य सामाजिक क्षेत्रों पर सरकारी खर्च बढ़ाना भारत की युवा जनसांख्यिकी से व्यापक लाभांश को साकार करने के लिए महत्वपूर्ण होगा। कोविड-19 महामारी के बाद यह और भी महत्वपूर्ण है।
वर्ष 2018 में, जीडीपी के अनुपात के रूप में भारत का स्वास्थ्य पर खर्च केवल 0.95 प्रतिशत था, जबकि चीन में यह तीन प्रतिशत और अमेरिका में 8.5 प्रतिशत था।
विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के लिए निवेश मददगार साबित होगा, क्योंकि यहां युवा आबादी बढ़ तो रही है, लेकिन मानव विकास के मामले में ये राज्य पीछे हैं।
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