'कोर्ट आने से न तो डरें, न ही इसे अंतिम चारा समझें' : चीफ जस्टिस चंद्रचूड़
कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के भाषण से हुई। कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजीव किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना मौजूद रहे। इसके अलावा कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और कई बड़े नाम भी इस दौरान उपस्थित रहे।
नई दिल्ली, (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने रविवार को संविधान दिवस के मौके पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अब तक 'लोगों की अदालत' के तौर पर काम किया है और नागरिकों को न तो कोर्ट आने से डरना चाहिए और न ही उन्हें इसे अंतिम चारे (उपाय) के तौर पर देखना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट में संविधान दिवस से जुड़े कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए सीजेआई चंद्रचूड ने कहा कि जिस तरह संविधान लोकतांत्रिक संस्थानों और प्रक्रियाओं के जरिए हमें राजनीतिक मतभेदों को खत्म करने में मदद करता है। उसी तरह कोर्ट की प्रणाली हमें स्थापित सिद्धांतों और प्रक्रियाओं के जरिए कई तरह की असहमतियों को सुलझाने में मदद करती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि कोर्ट में हर केस संवैधानिक शासन का विस्तार है।
कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के भाषण से हुई। कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजीव किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना मौजूद रहे। इसके अलावा कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और कई बड़े नाम भी इस दौरान उपस्थित रहे।
चीफ जस्टिस ने अपने संबोधन में कहा, "पिछले सात दशकों में सुप्रीम कोर्ट ने लोगों की अदालत के तौर पर काम किया है। हजारों लोग इस संस्थान में न्याय पाने के भरोसे के साथ इसके दरवाजे तक आए हैं।" उन्होंने कहा कि नागरिक कोर्ट में अपनी निजी आजादी, जवाबदेही, गैरकानूनी गिरफ्तारी, बंधुआ मजदूरों के अधिकारों की रक्षा, आदिवासी अपनी जमीन की सुरक्षा के लिए, मैला ढोने जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए और यहां तक कि साफ हवा हासिल करने के लिए दखल देने की उम्मीद के साथ तक आते हैं।
सीजेआई ने कहा कि यह केस सिर्फ कोर्ट के लिए आंकड़े नहीं हैं। यह मामले बताते हैं कि लोग सुप्रीम कोर्ट से क्या उम्मीद करते हैं और खुद कोर्ट की नागरिकों को न्याय देने की प्रतिबद्धता दिखाते हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट शायद दुनिया की एकमात्र कोर्ट है, जहां नागरिक सिर्फ मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखकर संवैधानिक मशीनरी को चालू करा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि कानूनों को सरल, सुलभ, अधिक मानवीय और युवा पीढ़ी से संबंधित बनाने की सख्त जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाला एक जीवंत दस्तावेज है। उन्होंने सभी से मजबूत संकल्प, एकता और आशावाद के साथ आगे बढ़ने का अनुरोध किया।
जैसाकि हम 74वें संविधान दिवस का जश्न मना रहे हैं, हम अपने देश की यात्रा में एक महत्वपूर्ण खुद को एक महत्वपूर्ण क्षण में पाते हैं। भारतीय संविधान को बार-बार एक जीवंत दस्तावेज के रूप में वर्णित किया गया है, क्योंकि यह हमारे दैनिक जीवन का एक हिस्सा है। इसने 1950 में 35 करोड़ लोगों के जीवन को बदल दिया था और आज भी एक अरब चालीस करोड़ लोगों के जीवन पर इसकी अमिट छाप है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुझाव दिया कि प्रतिभाशाली युवाओं का चयन करने और न्यायपालिका में निचले से लेकर उच्च स्तर तक उनकी प्रतिभा को निखारने के लिए एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का गठन किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने इस बात प्रकाश डाला कि न्याय पाने वाले लोगों के लिए पैसा और भाषा बाधाओं के रूप में कार्य करती हैं। उन्होंने कहा कि न्याय तक पहुंच में सुधार के लिए समग्र प्रणाली को नागरिक केंद्रित बनाने की जरूरत है।
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