केंद्र-राज्य सरकार को अनुसूचित जातियों की सूची से छेड़छाड़ का हक नहीं; अनुच्छेद 341 पर SC सख्त
शीर्ष अदालत ने सोमवार को बिहार सरकार की ओर से 1 जुलाई, 2015 को पारित उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि अत्यंत पिछड़ी जाति तांती-तंतवा को अनुसूचित जातियों की सूची में पान/सवासी जाति के साथ शामिल किया जाए।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद के बनाए कानून के अलावा राज्यों या केंद्र सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जातियों की सूची में छेड़छाड़ करने की कोई क्षमता, अधिकार या शक्ति नहीं है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सोमवार को बिहार सरकार की ओर से 1 जुलाई, 2015 को पारित उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि अत्यंत पिछड़ी जाति तांती-तंतवा को अनुसूचित जातियों की सूची में पान/सवासी जाति के साथ शामिल किया जाए। पीठ ने कहा है कि यह स्पष्ट रूप से अवैध और गलत है।
पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, वर्तमान मामले में राज्य की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण और सांविधानिक प्रावधानों के विरुद्ध पाई गई है। राज्य को इस शरारत के लिए माफ नहीं किया जा सकता। संविधान के अनुच्छेद 341 के अंतर्गत सूची में शामिल अनुसूचित जातियों के सदस्यों को वंचित करना एक गंभीर मुद्दा है। अनुच्छेद 341 का हवाला देते हुए पीठ ने कहा, अनुच्छेद और विशेष रूप से उप-खंड 2 को सरलता से पढ़ने से दो बातें स्पष्ट हैं। पहली, खंड-1 के अंतर्गत अधिसूचना के अंतर्गत निर्दिष्ट सूची को केवल संसद से बनाए गए कानून के जरिये ही संशोधित या परिवर्तित किया जा सकता है। दूसरी बात, यह इस पर रोक लगाता है कि संसद से बने कानून के अलावा उप-खंड-1 के अंतर्गत जारी अधिसूचना को किसी भी बाद की अधिसूचना के जरिये बदला नहीं जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, साफ है कि न तो केंद्र सरकार और न ही राष्ट्रपति, राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों के संबंध में जातियों को निर्दिष्ट करने वाली खंड-1 के अंतर्गत जारी अधिसूचना में कोई संशोधन या परिवर्तन कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा, यह अनुच्छेद केवल जातियों, नस्लों या जनजातियों से संबंधित नहीं है, बल्कि जातियों, नस्लों या जनजातियों के हिस्से या समूहों से भी संबंधित है।
पीठ ने कहा, किसी जाति, नस्ल या जनजाति को शामिल करने या बाहर करने के लिए संसद से बनाए गए कानून के तहत ही काम करना होगा। अदालत ने पटना हाईकोर्ट के 3 अप्रैल, 2017 के उस आदेश के खिलाफ डॉ. भीम राव अंबेडकर विचार मंच बिहार और आशीष रजक की ओर से दायर अपील को स्वीकार कर लिया जिसमें 2015 की अधिसूचना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था।
अदालत ने कहा, कोई भी व्यक्ति जो इस सूची के अंतर्गत नहीं आता है और इसके योग्य नहीं है, अगर राज्य द्वारा जानबूझकर और शरारती कारणों से उसे इस तरह का लाभ दिया जाता है, तो वह अनुसूचित जातियों के सदस्यों के लाभ को नहीं छीन सकता है। इस आधार पर हुई नियुक्तियां कानून के तहत रद्द की जा सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को निर्देश दिया कि वह एससी कोटे के उन पदों को वापस करे, जिन पर तांती-तांतवा समुदाय की नियुक्तियां की गई हैं और उन्हें अत्यंत पिछड़ा वर्ग में वापस किया जाना चाहिए।
बिहार सरकार ने अपने कदम को उचित ठहराने का प्रयास करते हुए तर्क दिया था कि राज्य ने अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए 2 फरवरी, 2015 के राज्य आयोग की अनुशंसा पर ही कार्य किया है। लेकिन कोर्ट ने इस तर्क को मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा है कि राज्य भली-भांति जानता था कि उसके पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है।
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