कुत्ते ने काटा तो खुद को कुत्ता समझ भौंकने लगा किशोर
प्रयागराज में एक किशोर को कुत्ते ने काट लिया। इसलिए किशोर खुद को कुत्ता समझ भौंकने लगा। डरे-सहमे परिजन उसे कॉल्विन अस्पताल ले गए। जांच में किशोर लाइकेंथ्रोपी से पीड़ित मिला। कोरांव के छात्र ने भी हॉरर फिल्म देख कर भेड़िये की तरह बकरियां मार डाली थीं।
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प्रयागराज (आरएनआई) 11 साल के एक बालक को कुत्ते ने काट लिया। माता-पिता ने एंटी रेबीज इंजेक्शन भी लगवा दिया। लेकिन, बेटा उन्हें देखने ही भौंकने लगता। उसके लेटने-बैठने का अंदाज तक बदल गया। वह माता-पिता को कुत्ते की तरह चाटता, खाना-पानी देने पर दुम हिलाने की कोशिश करता।
परेशान पिता उसे कॉल्विन हॉस्पिटल ले गए तो पता चला कि वह लाइकेंथ्रोपी नाम की बीमारी से पीड़ित है। मन कक्ष में उसका इलाज चल रहा है। मेजा तहसील के कोहड़ार निवासी इस 11 वर्षीय बच्चे को पिछले साल गांव के ही एक कुत्ते ने काट लिया।
परिजनों ने तुरंत ही एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवा दिया। सभी डोज लगने के कुछ हफ्ते बाद बेटे ने रात में परिजनों और बाहरी लोगों को देखकर भौंकना शुरू कर दिया। परिजनों के मुताबिक, कुत्ते की तरह व्यवहार देखकर शुरू में तो डांट-फटकार कर समझाने की कोशिश की।
व्यवहार में कोई सुधार न होने पर उसे मोती लाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय (कॉल्विन) में दिखाने पहुंचे। डॉक्टरों ने जांच में पाया कि बालक पूरी तरह से स्वस्थ है। ऐसे में उसे यहां के मन कक्ष भेज दिया गया।
यहां मनोचिकित्सक की जांच में पता चला कि वह लाइकेंथ्रोपी या लाइकोमेनिया का शिकार हो गया है। यह बीमारी लाखों में किसी एक को होती है। इसमें व्यक्ति जैसा सोचता है, वैसा ही व्यवहार करने लगता है।
डॉक्टरों की काउंसलिंग के दौरान बालक ने बताया कि वह खुद को कुत्ता समझता है। उसे लगता है कि जब से कुत्ते ने काटा है, वह इंसान नहीं रहा। चिकित्सकों ने उसका इलाज शुरू कर दिया है।
कॉल्विन हॉस्पिटल के मन कक्ष में इस प्रकार का यह दूसरा मामला आया है। एक साल पहले यहां कोरांव तहसील का एक 16 वर्षीय छात्र उसके माता-पिता लेकर आए थे। वह हॉरर फिल्में देखते-देखते खुद को भेड़िया समझने लगा था। रात में वह भेड़िये की तरह आवाज भी निकालने लगा। इस दौरान उसने गांव की कुछ बकरियाें को भेड़िये की तरह हमला करके काट भी डाला। सात महीने चले इलाज के बाद अब वह स्वस्थ है।
तेल-मसाला वाली चीजें खाने पर रही रोक।
नींद पूरी लेने की डॉक्टरों ने दी थी सलाह।
सुबह उठकर योग और ध्यान लगाया।
हॉरर मूवी की काल्पनिक दुनिया से दूर रखा।
यह एक दुर्लभ सिंड्रोम है, जो विश्वास दिलाता है कि जो वह सोच रहा है, वही असल में हो रहा है। ज्यादा सोचने के कारण पीड़ित उसी तरह हरकतें करने लगता है। इसे क्लीनिकल लाइकेंथ्रोपी या लाइकोमेनिया कहा जाता है।
मेरे सामने इस प्रकार के अब तक दो मामले आए हैं, जिनमें दोनों बच्चे पूरी तरह से जानवर की तरह बर्ताव कर रहे थे। इस प्रकार की बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के ठीक होने में थोड़ा समय लगता है।
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