किसी ने जी14 बनाने की बात की तो कोई जी8 चाहता था
1999 वह समय था जब एशिया में गहरा वित्तीय संकट छाया हुआ था। सितंबर 1999 में जी-8 देशों के वित्त मंत्रियों ने जी-20 का गठन एक अंतरराष्ट्रीय मंच के तौर पर किया। जी-20 की शुरुआत वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के गवर्नरों की बैठक के तौर पर हुई।
नई दिल्ली। (आरएनआई) जी20 शिखर सम्मेलन की आज से नई दिल्ली में शुरुआत हो रही है। यह भारत के लिए बहुत बड़ा मौका है। देश की राष्ट्रीय राजधानी में ये जमावड़ा उन देशों का होने जा रहा है जो दुनिया की 80 फीसदी से अधिक की अर्थव्यवस्था को संभालते हैं। जी20 समूह की शुरुआत तो 1999 में हो चुकी थी लेकिन जैसी वैश्विक नेताओं की बैठक होने वाली है उसकी शुरुआत 2009 में हुई थी। कम ही लोगों को पता होगा कि कभी जी20 के कई विकल्पों की भी बात हुई थी लेकिन वो विचार ही बनकर रह गए। आइये जानते हैं जी20 समूह के इतिहास के बारे में।
दुनिया के प्रभावशाली जी20 समूह के पीछे की कहानी 1970 के दशक से शुरू होती है। यह वक्त ऐसा था जब दुनिया तेल संकट से गुजर रही थी। इसी संकट से निपटने के लिए 1970 के दशक में दुनिया के सात सबसे बड़े औद्योगिक देशों अमेरिका, जापान, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन और इटली ने जी7 नाम से एक समूह बनाया। आगामी दशकों के समूह ने कई क्षेत्रों में काम तो किया लेकिन आर्थिक मोर्चे पर इसके द्वारा निर्णायक पहल नहीं की गई। इसके अलावा जी7 के कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठने लगे। 1990 के दशक में समूह के विस्तार की चर्चा प्रबल हो चली थी लेकिन इसके सदस्य देशों से समर्थन नहीं मिला। इस वक्त रूस को एक प्रबल उम्मीदवार माना जा रहा था लेकिन पर्यवेक्षकों ने भारत, चीन और ब्राजील की बढ़ती उम्मीदवारी को भी सामने रखा। 1998 में बर्मिंघम सम्मेलन में रूस को आधिकारिक रूप से समूह में शामिल कर लिया गया। इसके साथ ही जी7 समूह जी8 में बदल गया।
1999 वह समय था जब एशिया में गहरा वित्तीय संकट छाया हुआ था। इसी दौरान 19 देशों के वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के गवर्नरों की बैठक हुई। इसमें जी8 के साथ भारत, चीन, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और मैक्सिको, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, सऊदी अरब, दक्षिण कोरिया, तुर्किये और यूरोपीय संघ शामिल किए गए। सितंबर 1999 में जी-8 देशों के वित्त मंत्रियों ने जी-20 का गठन एक अंतरराष्ट्रीय मंच के तौर पर किया। जी-20 की शुरुआत वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के गवर्नरों की बैठक के तौर पर हुई।
जी20 की बैठकें साल दर साल होती रहीं कई क्षेत्रों से जुड़ी पहल भी मंच ने की लेकिन 2008 में पूरी दुनिया आर्थिक संकट में जकड़ गई। इसी दौरान यूरोपीय संघ और अमेरिका ने जी8 ने समूह को अपग्रेड करने की बात की। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने शिखर सम्मेलनों की संख्या में कमी के साथ-साथ जी8 और संयुक्त राष्ट्र और पुराने संस्थानों में सुधार के पक्ष में घोषणा की।
ब्राजील या चीन जैसे देशों को शामिल करने के लिए जी8 के विस्तार के पक्ष में थे। ओबामा ने इस बात पर जोर दिया कि उनकी अनुपस्थिति में प्रमुख अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का समाधान संभव नहीं है। वहीं, इटली G8 बदलने को कह रहा था। इसने G8 के साथ G5 देश चीन, भारत, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और मैक्सिको और एक अतिथि देश मिस्र को जोड़ने की वकालत की।
14 सदस्यीय प्रारूप फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी की भी प्राथमिकता रही। सरकोजी ने घोषणा की कि प्रमुख चुनौतियों का जवाब देने के लिए जी8 की प्रतिनिधित्वशीलता पर्याप्त नहीं है। और सदस्य जोड़ने के लिए एक G8, एक G5, एक G6 हैं। ब्राजील के साथ फ्रांस ने प्रस्ताव दिया कि जितनी जल्दी हो सके दोनों समूहों को एक साथ G14 में लाएं।
यह समीकरण अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, एशिया और अरब दुनिया के कई आर्थिक दिग्गजों को बाहर कर दे रहा था। इसलिए ग्रुप ऑफ 20 (जी20) के सदस्यों की संख्या में भारी वृद्धि हुई। आर्थिक संकट की शुरुआत के बाद से यह G20 ही है जिसने दुनिया का नेतृत्व किया है।
इस तरह से वर्ष 2008 में जी-20 के नेताओं का पहला शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया। इसने वैश्विक वित्तीय संकट से निटपने में अहम भूमिका निभाई। आज यह मंच अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने के साथ देशों के बीच अनौपचारिक बातचीत एवं सहयोग को बढ़ावा देता है। यह समूह (जी-20) अपने सदस्यों के अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग और कुछ मुद्दों पर निर्णय करने के लिए प्रमुख मंच बनकर उभरा है।
जी-20 ने आगामी बैठकों में अपने साथ कई संगठन जोड़े। आज यह वित्तीय स्थिरता बोर्ड, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन, संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन के साथ मिलकर काम करता है। जी-20 के नेता वर्ष में एक बार साथ मिलते हैं और बैठक करते हैं। कई अन्य संगठनों को भी जी-20 की प्रमुख बैठकों में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है। जी-20 के सदस्य वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का करीब 85 फीसदी, वैश्विक व्यापार के 75 फीसदी और विश्व की आबादी के दो-तिहाई से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं।
अब तक कुल 17 जी20 बैठकों का आयोजन हो चुका है। नई दिल्ली में यह 18वां जी20 शिखर सम्मेलन होने जा रहा है। इस समूह के सदस्य देशों में भारत के साथ ही अमेरिका, चीन, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश शामिल हैं। इसके साथ ही जर्मनी, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्किये, इंडोनेशिया के साथ यूरोपीय संघ भी इस समूह का हिस्सा हैं। 19 देशों और यूरोपीय संघ को मिलाकर बने इस समूह की बैठक में इस बार नौ देशों के प्रमुख, बतौर अतिथि देश, जी20 की बैठक में हिस्सा लेंगे। इसके साथ ही कई अंतरराष्ट्रीय संगठन भी इसमें आमंत्रित हैं। इनमें यूएन, आईएमएफ, डब्ल्यूबी, डब्ल्यूएचओ, डब्ल्यूटीओ, आईएलओ, एफएसबी और ओईसीडी जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन से लेकरएयू, एयूडीए-एनईपीएडी और आसियान जैसे क्षेत्रीय संगठन शामिल हैं। इसके अतिरिक्त G20 के अध्यक्ष के रूप में भारत की ओर से आमंत्रित आईएसए, सीडीआरआई और एडीबी भी इसमें हिस्सा ले रहे हैं।
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