'कानूनों की समय-समय पर होनी चाहिए समीक्षा, खामियों की पहचान होगी', सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को टिप्पणी की जब भी कोई नया कानून बनाया जाए, तो उसकी समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए। यह समीक्षा सिर्फ न्यायिक समीक्षा तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि विधायिका में भी इसकी समीक्षा होनी चाहिए।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि कानूनों की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए, ताकि उनके प्रभावी क्रियान्वयन और खामियों का पता चल सके। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटेश्वर सिंह की बेंच ने यह टिप्पणी उस समय की जब वे पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। याचिका में चुनाव याचिका दाखिल करने के लिए 45 दिनों की समयसीमा को चुनौती दी गई थी।
शीर्ष कोर्ट ने कहा, जब भी कोई नया कानून बनाया जाए, तो उसकी समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए। यह समीक्षा सिर्फ न्यायिक समीक्षा तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि विधायिका द्वारा भी इसकी समीक्षा होनी चाहिए। इसे हर 20, 25 या 50 साल में किया जा सकता है। इससे खामियों और सुधारों की पहचान हो सकेगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि एक ऐसा विशेषज्ञ संगठन होना चाहिए, जो कानूनों की समीक्षा कर सकते और उनकी खामियों व अस्पष्ट पहलुओं को उजागर कर सके।
मेनका गांधी की याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह कानूनों को बदलने का काम नहीं कर सकता, क्योंकि यह न्यायालय का काम नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर विधायिका को कोई बदलाव करना है, तो वह खुद ही कर सकती है। लेकिन कोर्ट के पास कानून बनाने का अधिकार नहीं है।
वहीं, मेनका गांधी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कोर्ट की इस बात पर सहमति जताई और कहा कि कानूनी की पूरी समीक्षा की जानी चाहिए, ताकि उनके प्रभाव और सुधार की जरूरत को पहचाना जा सके। उन्होंने कहा, हमें ऐसा कानून नहीं चाहिए, जो अपरिवर्तनीय हो, क्योंकि बदलाव तब ही होते हैं, जब कोर्ट या किसी और संस्था से दबाव आता है।
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