कपड़ों से पैदा हो रहा दो करोड़ टन प्लास्टिक कचरा, जल-जमीन से लेकर पहाड़ों तक को प्रदूषित कर रहा
नार्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अध्ययन के मुताबिक, पर्यावरण में हर साल लीक होने वाले इस कचरे की मात्रा करीब 83 लाख टन है। प्लास्टिक प्रदूषण का यह अनदेखा स्रोत पर्यावरण के लिए गंभीर समस्या बन चुका है। इसकी वजह से न केवल जलीय जीवन, बल्कि इन्सानी सेहत और पारिस्थितिकी तंत्र पर भी गहरा असर पड़ रहा है।
नई दिल्ली (आरएनआई) वैश्विक कपड़ा उद्योग सालाना दो करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा कर रहा है। इसमें से करीब 40 फीसदी कचरा उचित प्रबंधन न किए जाने से जल, जमीन, हवा, समुद्र, पहाड़ों को प्रदूषित कर रहा है। इसे प्लास्टिक रिसाव के रूप में भी जाना जाता है।
नार्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अध्ययन के मुताबिक, पर्यावरण में हर साल लीक होने वाले इस कचरे की मात्रा करीब 83 लाख टन है। प्लास्टिक प्रदूषण का यह अनदेखा स्रोत पर्यावरण के लिए गंभीर समस्या बन चुका है। इसकी वजह से न केवल जलीय जीवन, बल्कि इन्सानी सेहत और पारिस्थितिकी तंत्र पर भी गहरा असर पड़ रहा है। भारत में सिंथेटिक कपड़ों की वजह से सालाना 24 लाख टन, चीन में 32, ब्राजील में 6.5 और अमेरिका में 28 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है। इस अध्ययन के नतीजे अंतरराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं। शोधकर्ताओं ने समय रहते इस कचरे के उचित प्रबंधन के लिए कदम उठाने की सलाह दी है।
अध्ययन में सामने आया कि कपड़े मूल रूप से जहां बेचे जाते हैं यह जरूरी नहीं कि पर्यावरण में प्लास्टिक का रिसाव वहीं हो। उदाहरण के लिए अमेरिका, जापान जैसे समृद्ध देशों में बेचे जाने वाले कपड़े अक्सर कमजोर देशों में प्रदूषण का कारण बनते हैं, जहां उन्हें सेकेंड हैंड बेचा जाता है।
भारत सहित दुनियाभर में तेजी से फास्ट फैशन का चलन बढ़ रहा है। कपड़ों को फैशन के साथ बहुत जल्द रिटायर कर दिया जाता है। ये कपड़े या तो बिकने को कमजोर देशों को भेज दिए जाते हैं या फिर उन्हें कचरे में फेंक दिया जाता है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, कपड़ा उद्योग से निकलने वाला कचरा दो प्रमुख स्रोतों से आता है। इसमें पहले वे कपड़े शामिल हैं, जिनमें पॉलिएस्टर, नायलॉन और ऐक्रेलिक जैसे सिंथेटिक पदार्थों का उपयोग किया जाता है। दूसरे वे हैं जिन्हें कपास जैसे प्राकृतिक रेशों से बनाया जाता है।
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