औघड़ साधको का तीर्थ अघोरपीठ बाबा सत्यनाथ मठ
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सुलतानपुर (आरएनआई) आध्यात्मिक, राजनैतिक, साहित्य के क्षेत्र में जनपद में ही नहीं वरन पूरे देश में अपनी अलग पहचान रखने वाला स्थान कादीपुर जो अपने गर्भ में विभिन्न सांस्कृतिक आध्यात्मिक धरोहरों को छिपाए रखा है! इसी क्रम में आध्यात्मिक,पुरातात्विक महत्त्व का शैव तंत्र साधना का महत्वपूर्ण स्थान है अघोर पीठ बाबा सत्यनाथ मठ।
अघोर पीठ बाबा सत्यनाथ मठ जो सुलतानपुर जनपद के कादीपुर तहसील मुख्यालय के प्रमुख पटेल चौराहे से चांदा मार्ग पर अल्देमऊ नूरपुर गांव में आदि गंगा गोमती के तट पर महाश्मशान मे स्थित है।
शैव परम्परा के साधको, अघोरियों का यह प्रमुख साधना केंद्र अब भी बहुत से रहस्य अपने आप मे समेटे हुए है। वर्षों पहले वीरान पड़े इस शैव साधना स्थल पर हरिश्चंद्र घाट काशी श्मशान पीठ के पीठाधीश्वर अवधूत उग्र चंडेश्वर कपाली बाबा ने आकर पुरातात्विक महत्व के इस स्थान को पुनः पुराने गौरव को वापस लाने का सतत प्रयास कर रहे हैं!अवधूत उग्र चंडेश्वर कपाली बाबा ने इस स्थान का रहस्योघाटन करते हुए बताया की यह स्थान शैव साधना का अति प्राचीनतम स्थान है ! मैंने अपने साधना व् तप के माध्यम से जो जानकारी प्राप्त किया है वो यह स्थान त्रेतायुग के रामयण कालीन होने के साथ अघोर परंपरा के नव नाथो में प्रथम नाथ भगवान ब्रम्हा के अवतार बाबा सत्यनाथ की साधना व समाधि स्थल है।
साधना क्रम के इतिहास मे लगभग ५२०० वर्ष पुराना स्थल शैव साधको अघोरियों के साधना का यह प्रमुख पवित्र स्थल आज भी अपनी आभा बिखेर रहा है। शैव साधक व अन्य जनसामान्य के लिए यह स्थान किसी भी तीर्थ से कम नहीं है। कादीपुर नामक स्थान भी बाबा सत्यनाथ के द्वारा बसाया गया है क्योकि अघोर परंपरा में साधना की ५ धाराएँ हादि, कादि, वागादि, प्रणवादि,क्रोधादि के माध्यम से अघोर साधक अपने उपासना क्रम के स्तर से साधनाएँ करता है। बाबा सत्यनाथ कादिधारा के प्रवर्तक थे, बाबा के द्वारा बसाये गए गाँव या नगर कादीपुर कहलाये। इस स्थान पर अभी भी कादिधारा यन्त्र विद्यमान है जो आम जन के दर्शनार्थ मंदिर में शिवलिंग व अर्घा के रूप में रखा गया है।अब कादेश्वर महादेव के नाम से प्रचलित है। इस क्षेत्र में अघोर परम्परा के नव नाथो में प्रथम नाथ ब्रम्हा के अवतार जिनका स्वरुप जल है ऐसे अघोराचार्य बाबा सत्यनाथ के बारे में अनेक चमत्कारिक किंवदन्तिया, कहानियां आदि अभी भी गावों में प्रचलित है।किंवदंती है कि एक मंगाराय नाम के राजा जो बाबा सत्यनाथ के परम शिष्य थे हमेशा बाबा की सेवा करते थे एक रात बाबा गोमती नदी के तट पर स्थित श्मशान मे शव साधना कर रहे थे मध्यरात्रि के बाद के प्रहर मे मंगाराय को भोर का एहसास हुआ और वो अपने घर से बाबा के दर्शन करने मठ पर पहुंच श्मशान घाट पर मौजूद बाबा सत्यनाथ के पास पहुंच गये।बाबा को साधना मे देख मंगाराय पीछे चुपचाप बैठ गये।साधना के उपरांत बाबा ने शव से मांस नोचकर मंगाराय को प्रसाद देकर उसे खाने के लिये कहा लेकिन मंगाराय औघड़ सन्त रूप मे विराजमान बाबा की साधना क्रिया से प्राप्त प्रसाद न खाकर अपनी पगड़ी मे छुपा लिया।पगड़ी मे रखा प्रसाद मंगाराय के सिर से चिपककर एक गूमड़ के रूप मे स्थापित हो गया।त्रिकालदर्शी बाबा सत्यनाथ ने स्थिति समझकर मंगाराय को अमरत्व का वरदान देते हुये कहा कि मंगाराय जबतक सिर मे बने गूमड़ के बारे मे किसी को बताओगे नही तबतक मृत्यु और बुढ़ापा तुम्हारे पास फटकेगा नही लेकिन जैसे ही मेरे द्वारा दिये गये प्रसाद के बारे मे किसी को भी बताया उसी क्षण तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी।लोग बताते है कि मंगाराय सालो साल तक जवानी बरकरार रख जीवित रहे। अपनी सातवी रानी की जिद पर मंगाराय ने काशी के हरीशचन्द्र घाट पर गूमड़ के रहस्यों का खुलासा रानी से किया तो मंगाराय वही तत्काल मृत्यु को प्राप्त हो गये।मृत्यु के दुख को रानी भी सहन न कर सकी और वह भी वही पति के साथ सती हो गयी।हरीशचंद्र घाट पर आज भी सत्तीमाई का स्थान मौजूद है।आज भी शैवतन्त्र का यह सिद्ध साधना स्थल अघोरपीठ बाबा सत्यनाथ मठ पर आने वाले श्रद्धालु निराश होकर नही जाते है।यहा आये हुये श्रद्धालु बाबा सत्यनाथ के दरबार मे आस्था और श्रद्धा से जो भी मनौती मानते है वो मनोकामना बाबा अवश्य पूर्ण करते है।मठ के पीठाधीश्वर अवधूत उग्रचण्डेश्वर कपालीबाबा कहते है कि यहा की गयी सम्यक साधना व पूजा अवश्य ही पूर्णरूपेण फलदायी होती है।
इस साधनास्थल पर अनेक सिद्ध सन्यासियों, अघोरियों ने साधना करके पराशक्तियों को अर्जित कर अपने जीवन को सुगम व सरल बनाया है। पुरातात्विक महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह स्थान प्राचीनकाल का युध्स्थल है यह स्थान अल्देमऊ भरो के शासनकाल में प्रतापी राजा अल्दे की राजधानी हुआ करती थी। इसका प्रमाण यहां खंडहर में परिवर्तित किला व किले की दीवारें आदि आज भी दिखाई दे रही है। ९०° के कोण पर मुड़ी आदि गंगा गोमती व इस मठ के इर्द गिर्द बड़े बड़े टीले शांत वातावरण के कारण यहा का परिदृश्य पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।कालांतर मे उपेक्षित होकर यह मठ अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा था। अब इसे विकसित किया जा रहा है। सुल्तानपुर जनपद का यह शैव साधना केंद्र जनपद में ही नहीं पूरे देश में अपना एक पहचान बनता जा रहा है।आज भी अनेक विदेशी शैव साधकों सहित देश के शैव साधक/अघोरी अघोरपीठ बाबा सत्यनाथ मठ के पीठाधीश्वर अवधूत कपाली बाबा के निर्देशन आये दिन इस स्थान पर साधना रत देखे जाते हैं।पुरातात्विक एवं अध्यात्मिक तथा पर्यटन की असीम संभावना वाला यह क्षेत्र अब विकास की राह पर अग्रसर है ! मठ के पीठाधीश्वर अवधूत कपाली बाबा ने यहां साधकों के लिए मां श्मशान काली,अष्टभैरव व तंत्र की देवी माता हिंगलाज भवानी के मन्दिर दिव्यता भव्यता से ब्यवस्थित कर सनातन धर्म ध्वजा फहरा रहे हैं।
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