एमपॉक्स के तेज फैलाव ने बढ़ाई चिंता, WHO ने घोषित की स्वास्थ्य आपदा, जारी की एडवाइजरी

एमपॉक्स 1958 में सामने आया। जब प्रयोगशाला के कई बंदरों में इस वायरस के होने की पुष्टि हुई। यह एक जूनोटिक वायरल रोग है। यह जानवरों से मनुष्यों में फैल सकता है और इंसान से इंसान में भी इसका प्रसार हो सकता है।

Aug 21, 2024 - 14:18
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एमपॉक्स के तेज फैलाव ने बढ़ाई चिंता, WHO ने घोषित की स्वास्थ्य आपदा, जारी की एडवाइजरी

अफ्रीका  (आरएनआई) अफ्रीका में एमपॉक्स वायरस के तेज फैलाव को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसे अंतरराष्ट्रीय चिंता वाली सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा घोषित किया है। मगर एमपॉक्स क्या है, यह मूल रूप से कहां से फैली और दुनिया इस खतरे का मुक़ाबला किस तरह कर सकती है? इसे लेकर एडवाइजरी जारी की गई है। एमपॉक्स के फैलाव ने कोविड-19 और एचआईवी संक्रमण के शुरुआती दिनों जैसा डर भी उत्पन्न कर दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के यूरोप में क्षेत्रीय निदेशक डॉक्टर हैंस क्लूगे ने मंगलवार को इन चिन्ताओं को खारिज कर दिया। उन्होंने इसके बारे में अहम जानकारी दी। 

एमपॉक्स 1958 में सामने आया। जब प्रयोगशाला के कई बंदरों में इस वायरस के होने की पुष्टि हुई। यह एक जूनोटिक वायरल रोग है। यह जानवरों से मनुष्यों में फैल सकता है और इंसान से इंसान में भी इसका प्रसार हो सकता है। मानव एमपॉक्स की पहचान पहली बार 1970 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) में एक नौ महीने के लड़के में हुई थी। एमपॉक्स कुछ साल पहले मध्य और पश्चिम अफ्रीका में एक स्थानीय बीमारी थी, मगर वर्ष 2022 में इसने एक वैश्विक संक्रमण फैलाव किया। इसके बाद WHO को एमपॉक्स को जुलाई में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा घोषित करना पड़ा। एमपॉक्स के रोगियों में पहले देखे गए लक्षण चेचक के समान होते हैं। लेकिन यह चिकित्सकीय रूप से कम गंभीर है। 2003 में अफ्रीका के बाहर एमपॉक्स का पहला मामला अमेरिका में दर्ज किया गया था और इसे संक्रमित पालतू प्रैरी कुत्तों संपर्क से जोड़ा गया था। इसका नाम एमपॉक्स है, लेकिन कृंतक जैसे गैम्बियन विशाल चूहे या पेड़ों की गिलहरी जैसे अधिकांश जानवर इससे संक्रमित हो सकते हैं और फिर आगे लोगों को संक्रमित कर सकते हैं। 

एमपॉक्स सबसे अधिक मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के वर्षा वनों में पाया जाता है और वह जानवर जिनमें ये वायरस हो सकता है, वे वहां के मूल निवासी हैं। इन देशों में यह बीमारी तेजी से शहरी क्षेत्रों में देखी जा रही है। कभी-कभी यह उन लोगों में भी पाया जा सकता है, जो इन देशों का दौरा करने के बाद संक्रमित हुए हों। इसके लक्षणों में आमतौर पर बुखार, तेज सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, पीठ दर्द, शरीर में ऊर्जा की कमी, सूजी हुई गांठें और त्वचा पर चकत्ते या घाव शामिल हैं। त्वचा पर ये दाने और चकत्ते, आमतौर पर बुखार की शुरुआत के पहले या तीसरे दिन होते हैं। ये घाव चपटे या थोड़े उभरे हुए हो सकते हैं, जिनमें साफ या पीले रंग का तरल पदार्थ भरा होता है, फिर सूखकर इनकी पपड़ी बनकर गिर जाती है।

ज्यादातर मामलों में एमपॉक्स के लक्षण कुछ सप्ताहों के भीतर अपने आप दूर हो जाते हैं, लेकिन जिन देशों में यह बीमारी स्थानिक है, वहां सामने आए तीन से छह प्रतिशत मामलों में, यह चिकित्सीय जटिलताओं और यहां तक कि मृत्यु का कारण बन सकती है। नवजात शिशुओं, बच्चों और प्रतिरोधक क्षमता की कमी वाले लोगों को इस बीमारी से अधिक गंभीर लक्षणों और मृत्यु का खतरा हो सकता है। गंभीर मामलों में लक्षणों में त्वचा में संक्रमण, निमोनिया, भ्रम और आंखों में संक्रमण शामिल हैं। 

कृंतक और नर वानर (प्राइममेट) जैसे संक्रमित जानवरों के साथ शारीरिक संपर्क में आने पर यह वायरस लोगों में फैल सकता है। जंगली जानवरों विशेष रूप से बीमार या मृत के साथ असुरक्षित संपर्क से बचकर इसे जानवरों से मनुष्य में फैलने का जोखिम कम किया जा सकता है। यह वायरस किसी ऐसे व्यक्ति के साथ शारीरिक संपर्क में आने से फैलता है, जिसमें इस बीमारी के लक्षण होते हैं। चकत्ते, शरीर के तरल पदार्थ (जैसे तरल पदार्थ, मवाद, या त्वचा के घावों से रक्त), और पपड़ी विशेष रूप से संक्रामक हैं। अल्सर या त्वचा पर घाव भी संक्रामक हो सकते हैं क्योंकि इसमें थूक के माध्यम से वायरस फैल सकता है। संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाली वस्तुओं के संपर्क में आने से- जैसे कपड़े, बिस्तर, तौलिये - या खाने के बर्तन जैसी वस्तुएं भी संक्रमण का कारण बन सकती हैं। जिन लोगों को यह बीमारी है वे तब अधिक संक्रामक होते हैं जब उनमें लक्षण दिखते हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि जो लोग लक्षणहीन होते हैं वे बीमारी को फैला सकते हैं या नहीं। 

किसी भी व्यक्ति के, लक्षण वाले व्यक्ति या संक्रमित जानवर के साथ शारीरिक संपर्क में आने पर, उसे संक्रमण का ख़तरा बढ़ जाता है। जो लोग संक्रमित लोगों के साथ रहते हैं उनमें संक्रमण का खतरा अधिक होता है। स्वास्थ्य कर्मचारी, अपने कामकाज की प्रवृत्ति के कारण ज्यादा जोखिम में हैं। किशोरों और युवाओं की तुलना में बच्चों में अक्सर गंभीर लक्षण होने की अधिक आशंका होती है। यह वायरस गर्भवती महिला के गर्भ में प्लेसेंटा के माध्यम से उसके अजन्मे बच्चे में,  या बच्चे के संक्रमित माता-पिता के संपर्क में आने से प्रसव के दौरान या बाद में और त्वचा से त्वचा के संपर्क के जरिये भी फैल सकता है। उन लोगों के साथ सम्पर्क सीमित करके संक्रमण के जोखिम को कम किया जा सकता है, जिन्हें यह बीमारी होने का सन्देह हो, या रोग की पुष्टि हो चुकी हो। संक्रमित व्यक्ति को अलग-थलग रहने व सामाजिक दूरी बनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और यदि सम्भव हो तो, छिली हुई  त्वचा को ढक कर रखना चाहिए। 

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