एमआरपी बनी मनमानी रिटेल प्राइस
गुना (आरएनआई) एमआरपी मैक्सिमम रिटेल प्राइस न होकर मनमानी रिटेल प्राइस हो गयी है और ग्राहकों का शोषण रोकने के बजाय लूट का जरिया बन गयी है। उक्त बात ग्राहक पञ्चायत के मध्यक्षेत्र संगठन मंत्री अलंकार वशिष्ठ ने ग्राहक जागरण पखवाड़े के दौरान एक कोचिंग संस्थान पर विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि एमआरपी लिखने का कोई नियम न होने से निर्माता किसी भी वस्तु पर कितनी भी एमआरपी अंकित कर देता है और इस एमआरपी के आधार पर ग्राहकों को लूटा जाता है। उन्होंने कहा कि ग्राहक से एमआरपी से अधिक मूल्य नहीं लिया जा सकता है ये कानून तो सरकार ने बना दिया लेकिन एमआरपी कितनी अधिक लिखी जा सकती है ऐसा कानून नहीं बनाया, इसी कारण लागत ₹१०/- आने पर भी एमआरपी ₹१०००/- अंकित की जा सकती है जिसके कारण आज बाजार में वस्तुओं पर ८०% तक की भी छूट देने के पश्चात् भी ग्राहक स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहा है और ठगा भी जा रहा है। उन्होंने कहा कि किसी वस्तु को ग्रामीण क्षेत्र में भी अर्थात अन्तिम छोर पर ८०% छूट पर विक्रय करने के पश्चात् भी निर्माता से लेकर अन्तिम विक्रेता तक सभी को लाभ मिलता है फिर उस वस्तु पर इतनी अधिक एमआरपी लिखने का क्या औचित्य है।
उन्होंने कहा कि ग्राहक पञ्चायत व्यवस्था में सुधार के लिए विगत ५० वर्षों से देशभर में समाज के बीच जाकर जागरुकता के कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। इस अवसर पर उन्होंने सायबर फ्रॉड से बचने और सिंगल यूज प्लास्टिक से पर्यावरण को होने वाली क्षति के बारे में बताते हुए उसके उपयोग से बचने पर जोर दिया। इस अवसर पर विद्यार्थियों को ग्राहक जागरुकता से सम्बन्धित पत्रक का भी वितरण किया गया, कार्यक्रम में ग्राहक पञ्चायत के जिला सहसचिव राजीव सोनी, नगर अध्यक्ष राहुल जैन और कोचिंग संस्थान संचालक भी उपस्थित थे।
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