एक पेड़ लगाना सौ गायों का दान देने के समान है
शाहजहांपुर। (आरएनआई) श्री शिव महापुराण कथा एवं रुद्राभिषेक में आज आचार्य विवेकानंद शास्त्री ने व्यास पीठ का पूजन मुख्य आयोजक हरि शरण बाजपेई एवं उनकी धर्मपत्नी सीमा बाजपेई से कराकर कथा का शुभारंभ कराया व्यास पीठ पर उपस्थित संत शिरोमणि परम पूज्य संत श्री गौर दास जी महाराज के श्री मुख से भक्तों ने कथा का श्रवण किया। महाराज जी ने कथा में प्रसंग सुनाते हुए भगवान शिव के अवतारों की मार्मिक व्याख्या के साथ साथ यह भी बताया कि सनातन धर्म से चला आ रहा है। कि मनुष्य जीवन में हरें भरें पौधो का होना कितना अनिवार्य है। उन्होने शिव भक्तों को यह बताया कि एक पेड़ लगाना, सौ गायों का दान देने के समान है।
महाराज जी ने बताया कि प्रकृति समस्त जीवों के जीवन का मूल आधार है। प्रकृति का संरक्षण एवं संवर्धन जीव जगत के लिए बेहद ही अनिवार्य है। प्रकृति पर ही पर्यावरण निर्भर करता है। गर्मी, सर्दी, वर्षा आदि सब प्रकृति के सन्तुलन पर निर्भर करते हैं। यदि प्रकृति समृद्ध एवं सन्तुलित होगी तो पर्यावरण भी अच्छा होगा और सभी मौसम भी समयानुकूल सन्तुलित रहेंगे। यदि प्रकृति असन्तुलित होगी तो पर्यावरण भी असन्तुलित होगा और अकाल, बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प आदि अनेक प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं कहर ढाने लगेंगी। प्राकृतिक आपदाओं से बचने और पर्यावरण को शुद्ध बनाने के लिए पेड़ों का होना बहुत जरूरी है। पेड़ प्रकृति का आधार हैं। पेड़ों के बिना प्रकृति के संरक्षण एवं संवर्धन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इसीलिए हमारे पूर्वजों ने पेड़ों को पूरा महत्व दिया। वेदों-पुराणों और शास्त्रों में भी पेड़ों के महत्व को समझाने के लिए विशेष जोर दिया गया है। पुराणों में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि एक पेड़ लगाने से उतना ही पुण्य मिलता है, जितना कि दस गुणवान पुत्रों से यश की प्राप्ति होती है। इसलिए, जिस प्रकार हम अपने बच्चों को पैदा करने के बाद उनकी परवरिश बड़ी तन्मयता से करते हैं, उसी तन्मयता से हमें जीवन में एक पेड़ तो जरूर लगाना चाहिए और पेड़ लगाने के बाद उसकी सेवा व सुरक्षा करनी चाहिए। तभी हमें पेड़ लगाने का परम पुण्य हासिल होता है। भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि जिसकी संतान नहीं है, उसके लिए वृक्ष ही संतान है। वृक्ष एक तरह से संतान की तरह ही मानव की उम्र भर सेवा करते हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को एक पेड़ अवश्य लगाना चाहिए।
इसके साथ ही महाराज जी ने भगवान शिव के रहस्यों को बताते हुए कहा कि भगवान शिव को रसेश्वर कहा जाता है, क्योंकि यह जीवन में रस को प्रदान करने वाले है, और जिस व्यक्ति के जीवन में रस नही है उस व्यक्ति का जीवन मृत तुल्य है। प्रतीक रूप में भगवान शंकर ने गंगा के तेज प्रवाह को अपनी जटाओं में धारण किया था और उनके शरीर से प्रवाहित होती हुई निरन्तर प्रवाहित हो रही है, सारी नदियाॅ सूख सकती है लेकिन गंगा की मूल धारा कभी भी सूख नही सकती इसका स्पष्ट तात्पर्य है कि भगवान शिव पर अभिषेक किया हुआ जल पूरे जीवन को आप्लावित करता है। यही गंगा कही नर्मदा बन जाती है, कहीं ब्रहापुत्र तो कही हुगली, क्षिप्रा इस प्रकार विभिन्न धाराओं में बहती हुई समुद्र में विलीन हो जाती है, ठीक इसी प्रकार मनुष्य का जीवन निरन्तर प्रवाहवान, गतिशील होतेे हुए अपने जीवन में दूसरों को सुख प्रदान करने में समर्थ होता हुआ जीवन की पूर्णता रूपी समुद्र जिसमें भगवान नारायण बिराजमान है उस पूर्णत्व मोक्ष को प्राप्त करें यही तो जीवन की वास्तविक गति है आज मुख्य रूप से आयोजन के अध्यक्ष दीपक शर्मा प्रदेश सचिव नीरज बाजपेई काट ब्लॉक प्रमुख श्री दत्त शुक्ला सिधौली ब्लाक प्रमुख मुनेश्वर सिंह अशोक गुप्ता उद्योगपति पुवाया ओम बाबू सर्राफ सतीश वर्मा कृष्ण मोहन आदि ने आरती की।
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