एक थी कायस्थों की अपनी लिपि कैथी जो आज गुम होने के कगार पर है

अपनों ने ही छला कैथी लिपि को जिस कारण वह आज विलुप्तप्राय है

Mar 19, 2024 - 10:04
Mar 19, 2024 - 10:04
 0  9.7k
एक थी कायस्थों की अपनी लिपि कैथी जो आज गुम होने के कगार पर है

लखनऊ (आरएनआई) पौराणिक युग में जन्मी गुप्त वंश में पली-बढ़ी तथा मुगल व ब्रिटिश काल में स्वर्णिम दौर देख चुकी कायस्थों की अपनी भाषा, अपनी लिपि कैथी अपनों की ही उपेक्षा का शिकार होकर दम तोड़ चुकी है। क्या यह अफ़सोस जनक नहीं है कि जिस भाषा शैली को सभी राजवंशों ने सराहा उसे अपनों ने ही मार दिया। 
क्या कभी गुप्त काल के लोगों ने सोचा होगा कि ज़मीन पैमाईशी की जिस विधि को वह पुष्पित-पल्लवित कर रहें हैं वह अपनों के द्वारा ही मारी जाएगी?
क्या कभी अकबर के कायस्थ वित्त मंत्री टोडरमल ने सोचा होगा कि जिस लिपि में वह राज सत्ता की इबारतें लिख रहे हैं, उस लिपि को उनके अपने ही दर किनार कर देंगे। 
किंग क्रिस्टोफर आर ने अपनी पुस्तक "वन लैंग्वेज, टू स्क्रिप्ट' (1995) में कैथी लिपि के सम्बन्ध में लिखा है कि "उत्तर-पश्चिम प्रांत बिहार सहित अवध (आज का उत्तर प्रदेश) में दूसरी लिपि के तौर पर इसका उपयोग प्रशासनिक, निजी और कानूनी बातें लिखने के लिए किया जाता था। "डा. ग्रियर्सन ने कैथी लिपि को बिहारी लिपि की संज्ञा देते हुए 1881 ई. में 'ए हैंडबुक टु कैथी करेक्टर' नामक पुस्तक का प्रकाशन अंग्रेजी भाषा में किया। यह कैथी लिपि पर किसी भी भाषा में लिखित प्रथम पुस्तक थी। उसमें ग्रियर्सन लिखते हैं कि "कैथी को अपना नाम कायस्थ शब्द से मिला है, जो उत्तर भारत का एक समाजिक संगठन है, जिसमें "हॉर्नले, (1880:1-) ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि *"कैथी नाम की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द "कायस्थ' से हुई है।
मुगलकाल के पूर्व 'शेरशाह' से लेकर ब्रिटिशकाल तक संपूर्ण उत्तरी भारत में बोली जानेवाली चाहे जो भी भाषा रही हो, लिपि उसकी कैथी ही रही है। 1880 ई. में बंगाल के लेफ्रिटनेंट गर्वनर सर अस्ले इडेन ने, एक आदेश द्वारा कैथी लिपि को सरकारी काम-काज की लिपि का दर्जा दिया। फिर कचहरी लिपि के रूप में 1-1-1881 ई० को कैथी को हटा कर नागरी लिपि को सरकारी लिपि स्वीकृत किया गया। लेकिन पुनः नागरी लिपि को अपदस्थ कर कैथी लिपि को सरकार ने 1882 ई. में सिंहासनस्थ कर दिया। 
अपनों ने ही छला कैथी लिपि को जिस कारण वह आज विलुप्तप्राय है। तृतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के कलकत्ता के वार्षिक अधिवेशन में डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी ने 21 दिसंबर 1912 ई. को एक प्रस्ताव उपस्थित किया था, जिसमें सरकार से प्रार्थना की गई थी कि जो सरकारी कागजात, सूचनाएँ अथवा पुस्तकें वहाँ कैथी लिपि में छपती हैं, वे सब देवनागरी लिपि में ही छपा करें, क्योंकि देवनागरी लिपि ही सर्वव्यापिनी है। यह प्रस्ताव अधिवेशन में सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ। गहन विचार विर्मश के पश्चात 1913 ई० में सरकार ने यह आदेश दिया कि हिंदी भाषा में प्रकाशित विद्यालयों की हिंदी पाठ्य-पुस्तकों की एकमात्र लिपि देवनागरी होगी और कैथी लिपि में पाठय- पुस्तकें नहीं छपेंगी। सरकार का यह निर्णय 1914 ई० से प्रभावी हुआ। किंतु कैथी लिपि की लोकप्रियता का आलम यह था कि इस आदेश का प्रभाव कचहरियों में कैथी लिपि-लेखन पर नही पड़ा। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित कर, जन आन्दोलन चला कर देवनागरी लिपि को स्थापित किया गया और धीरे-धीरे काल की गर्त में समा गयी कैथी लिपि। यह अदूरदर्शिता थी उस काल के जननायकों की।
यद्यपि आज फिर कुछ संगठन व लेखक कैथी लिपि को संरक्षण देने की मांग कर रहे हैं, जिस पर विहार सरकार द्वारा आश्वासन दिया गया है कि इसे संरक्षित करेंगे, परंतु अब इस लिपि को पढ़ने वाले सिर्फ 02 लोंगों के ही जीवित रहने के कारण इसका भविष्य अनिश्चितता लिए हुए ही प्रतीत होता है।

Follow the RNI News channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaBPp7rK5cD6XB2Xp81Z

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow