इस वैज्ञानिक महिला की वजह से अग्नि-5 को मिली सफलता

भारत ने 'मिशन दिव्यास्त्र' के तहत मल्टीपल इंडिपेंडेंट टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल टेक्नोलॉजी के साथ देश में विकसित अग्नि-5 मिसाइल का सोमवार को सफल परीक्षण किया। अब इस मिशन का नेतृत्व करने वाली महिला वैज्ञानिक की जमकर बात हो रही है।  

Mar 13, 2024 - 10:32
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इस वैज्ञानिक महिला की वजह से अग्नि-5 को मिली सफलता

हैदराबाद (आरएनआई) भारत ने सोमवार को पांच हजार किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाली न्यूक्लियर बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि-5 का सफल परीक्षण किया। इस मिसाइल के सफल परीक्षण के साथ ही पूरा पाकिस्तान और चीन भी अब भारतीय मिसाइलों के जद में आ गया है। इस खास उपलब्धि की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे 'मिशन दिव्यास्त्र' का नाम दिया। इस परियोजना का नेतृत्व महिला वैज्ञानिक शीना रानी ने किया था, जो 1999 से अग्नि मिसाइल प्रणाली पर काम कर रही हैं। जिस प्रकार पीएम मोदी ने पूरे मिशन को 'मिशन दिव्यास्त्र' का नाम दिया ठीक वैसे ही वैज्ञानिक शीना रानी की चर्चा अब 'दिव्य पुत्री' के रूप में हो रही है।

57 वर्षीय शीना रानी हैदराबाद में रक्षा अनुसंधान विकास संगठन की हाईटेक लैब में कार्यरत एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक हैं। अपने साथियों के बीच वह एक खास नाम से जानी जाती हैं। काम के प्रति लगन और गजब के उत्साह के कारण उनके सहकर्मी 'पावरहाउस ऑफ एनर्जी' के नाम से भी बुलाते हैं। शीना रानी 'अग्नि पुत्री' के नाम से प्रसिद्ध, मशहूर मिसाइल वुमेन टेसी थॉमस के नक्शेकदम पर चलती हैं। टेसी थॉमस ने अग्नि सीरीज की मिसाइलों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था और शीना रानी उसी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं।

डीआरडीओ में 25 साल बिताने वाली शीना रानी के कार्यकाल की यह सर्वोच्च उपलब्धि है। वह गर्व से कहती हैं मैं भारत की रक्षा करने में सहायता करने वाले डीआरडीओ परिवार की सदस्य हूं। अगर उनके शुरुआती जीवन पर गौर करें तो उन्होंने तिरुवनंतपुरम के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से पढ़ाई की है। इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन के साथ ही कंप्यूटर साइंस में भी शीना रानी को महारत हासिल है।

भारत के सबसे प्रमुख अंतरिक्ष रॉकेट केंद्र, विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में उन्होंने आठ साल तक काम किया। सन् 1998 में भारत के पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद वह सीधे तौर पर डीआरडीओ में शामिल हो गईं। 1999 से ही शीना रानी अग्नि सीरीज की सभी मिसाइलों के लॉन्च कंट्रोल सिस्टम पर काम कर रही हैं।

उन्हें भारत के 'मिसाइल मैन' और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरणा मिलती है, जो डीआरडीओ के प्रमुख भी रह चुके हैं। डॉ. कलाम ने भी अपना करियर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र से शुरू किया था और फिर इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम का नेतृत्व करने के लिए डीआरडीओ में शामिल हुए थे। वहीं, उन्होंने बताया कि उन्हें एक और व्यक्ति से काफी प्रेरणा मिली, जिसकी मदद से वह आगे बढ़ सकीं। वो हैं डॉ. अविनाश चंदर। चंदर ने कुछ कठिन वर्षों में डीआरडीओ का नेतृत्व किया है। 

ऐसा नहीं है कि शीना रानी एकमात्र अपने परिवार से रक्षा अनुसंधान विकास संगठन के लिए काम कर रही हैं। बल्कि उनके पति पीएसआरएस शास्त्री ने भी मिसाइलों पर डीआरडीओ के साथ काम किया है। साल 2019 में इसरो द्वारा लॉन्च किए गए कौटिल्य उपग्रह के प्रभारी भी थे।

लंबी दूरी की मिसाइल अग्नि-5 को डीआरडीओ द्वारा विकसित किया गया है। यह मिसाइल मल्टीपल इंडीपेंडेंटली टारगेटेबल रि-एंट्री व्हीकल तकनीक पर आधारित है। एमआईआरवी तकनीक एक ही मिसाइल से कई टारगेट को निशाना बना सकती है। साथ ही अग्नि मिसाइल परमाणु हथियारल ले जाने में भी सक्षम है। अभी तक एमआईआरवी तकनीक सिर्फ अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन के पास ही है और इस मिसाइल को जमीन से या समुद्र से और पनडुब्बी से भी लॉन्च किया जा सकता है। ऐसी खबरें हैं कि पाकिस्तान और इस्राइल भी ऐसे मिसाइल सिस्टम को विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं।

MIRV तकनीक की खास बात ये है कि इसकी मदद से कई हथियार ले जाए जा सकते हैं और अलग-अलग स्पीड और अलग-अलग दिशाओं में इन हथियारों से टारगेट को निशाना बनाया जा सकता है। यह काफी मुश्किल तकनीक है और यही वजह है कि सिर्फ कुछ ही देशों के पास यह तकनीक मौजूद है। अमेरिका ने साल 1970 में ही एमआईआरवी तकनीक विकसित कर ली थी और अब भारत भी उस ग्रुप का हिस्सा बन गया है, जिन देशों के पास एमआईआरवी तकनीक है।

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