आरजी कर मामले में अब एक अक्तूबर को होगी सुनवाई

अस्पताल के सेमिनार कक्ष में नौ अगस्त को प्रशिक्षु डॉक्टर का शव मिलने के बाद से घटना के विरोध में देशव्यापी प्रदर्शन हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट मामले पर लगातार नजर रख रहा है। 

Sep 23, 2024 - 12:31
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आरजी कर मामले में अब एक अक्तूबर को होगी सुनवाई

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता हत्याकांड को लेकर सोमवार को कहा कि वह इस मामले में एक अक्तूबर को सुनवाई करेगा। शीर्ष अदालत ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में परास्नातक प्रशिक्षु चिकित्सक से दुष्कर्म और उसकी हत्या के मामले से जुड़ी याचिका पर स्वत: संज्ञान लिया था। प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ मामले पर सुनवाई कर रही है। 

इस मामले को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन जारी हैं। डॉक्टरों में लगातार गुस्सा बना हुआ है। सभी लोग पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए लगातार सरकार पर दवाब डाल रहे हैं। राज्य सरकार पर लगातार सवाल खड़े होने पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लिया था।

सोमवार को कार्यवाही शुरू होते ही मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ से एक पक्ष की ओर से पेश वकील ने अनुरोध किया कि कुछ कारणों की वजह से इस मामले की सुनवाई अगले हफ्ते की जाए। इस पर सीजेआई ने कहा, 'हम अगले मंगलवार यानी एक अक्तूबर को इस मामले में सुनवाई करेंगे।

इससे पहले अदालत ने 17 सितंबर को कहा था कि सीबीआई जो जांच कर रही है, उसका आज खुलासा करने से प्रक्रिया प्रभावित होगी, सीबीआई ने जो रास्ता अपनाया है, वह सच्चाई को उजागर करना है। एसएचओ को खुद गिरफ्तार किया गया है। हमने स्थिति रिपोर्ट देखी है और सीबीआई ने हमारे द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों पर जवाब दिया है, जिसमें शामिल है कि क्या चालान दिया गया था, पीएमआर की प्रक्रिया क्या थी, क्या सबूत नष्ट किए गए थे, क्या किसी अन्य व्यक्ति की मिलीभगत थी आदि।

अस्पताल के सेमिनार कक्ष में नौ अगस्त को प्रशिक्षु डॉक्टर का शव मिलने के बाद से घटना के विरोध में देशव्यापी प्रदर्शन हो रहे हैं। पुलिस ने इस सिलसिले में कोलकाता पुलिस के नागरिक स्वयंसेवक संजय रॉय को गिरफ्तार किया था। टीएमसी सरकार और पश्चिम बंगाल पुलिस कठघरे में है। सुप्रीम कोर्ट से लगातार फटकार लग रही है। तनाव बढ़ता देख कलकत्ता हाईकोर्ट ने 13 अगस्त को जांच सीबीआई को सौंप दी थी। इससे पहले कोलकाता पुलिस मामले की जांच कर रही थी।

अगर कोई व्यक्ति अपनी बालिग पत्नी को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है तो क्या ऐसे में पति को दुष्कर्म के अपराध के लिए मुकदमे से छूट मिलनी चाहिए? इन्हीं सब सवालों की याचिका पर अब सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को सुनवाई करेगा।
 
देश के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कियाचिकाएं पहले ही कल सूचीबद्ध हो चुकी हैं और कुछ मामलों की आंशिक सुनवाई के बाद इन पर सुनवाई होगी।  पीठ में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। मामले में वादी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी ने मामले को शीघ्र सूचीबद्ध करने की याचिकाओं का उल्लेख किया।

शीर्ष अदालत ने 16 जुलाई को इस मामले से जुड़ी याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की थी। उस समय सीजेआई ने संकेत दिया था कि मामलों की सुनवाई 18 जुलाई को हो सकती है।

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375, जिसे अब निरस्त कर दिया गया है और भारतीय न्याय संहित द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है, दुष्कर्म (रेप) को परिभाषित करती है। इस धारा में वर्णित शर्तों में एक अपवाद भी दर्ज है जिसकी संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। इस अपवाद में पति को अपनी बालिग पत्नी के साथ गैर-सहमति से यौन संबंध बनाने के लिए दुष्कर्म के तहत मुकदमा चलाने से छूट देता है। इसमें कहा गया है, 'पति अगर अपनी पत्नी के साथ, जिसकी उम्र 15 वर्ष से कम नहीं है, तो वह दुष्कर्म नहीं है।

नए कानून के तहत भी धारा 63 (रेप) का अपवाद 2 कहता है कि किसी शख्स द्वारा अपनी पत्नी के साथ गैर-सहमति से यौन संबंध बनाया जाता है, जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम नहीं है, तो वह दुष्कर्म नहीं है।

शीर्ष अदालत ने 16 जनवरी 2023 को वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध के दायरे में लाने का अनुरोध करने वाली और आईपीसी के उस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था, जो पति को बालिग पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध को दुष्कर्म नहीं ठहराता है। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि इस मुद्दे के कानूनी तथा सामाजिक निहितार्थ हैं और सरकार इन याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करेगी।

17 मई को पीठ ने इसी तरह की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया, जिसमें इस मुद्दे पर बीएनएस प्रावधान को चुनौती दी गई थी। आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम की जगह एक जुलाई से भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय सक्षम अधिनियम लागू किए गए हैं।

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