आधे से अधिक युवाओं को चुनावी वादों पर ऐतबार नहीं
जानें राजनीतिक को लेकर क्या सोचते युवा
लखनऊ (आरएनआई) जिस ओर जवानी चलती है, उस ओर जमाना चलता है। विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ की राजनीति में ये नारा खूब चलता था। बहरहाल सियासत की वो प्रयोगशालाएं बंद हो चुकी हैं। राजनीति की दुनिया में भले ही चकाचौंध बढ़ी हो, पर आज भी करीब 70 फीसदी युवा इसमें कॅरिअर नहीं बनाना चाहते। यही नहीं 54 फीसदी युवा तो चुनावी वादों पर ऐतबार ही नहीं करते।
ये तथ्य सामने आए एक ऑनलाइन सर्वे में। युवाओं के मन को पढ़ने के लिए, उनकी उम्मीदों, आकांक्षाओं को जानने के लिए राजधानी के युवाओं के बीच यह सर्वे किया गया। सर्वे में विभिन्न वर्ग के युवाओं ने भाग लिया और अपनी बेबाक राय रखी। उनकी परिवक्वता इसी से उजागर होती है कि युवाओं ने कहीं से दुविधाजनक या असमंजस वाले जवाब नहीं दिए।
यूपी की राजधानी प्रदेश का पावर सेंटर है। यह भी कहा जाता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता वाया लखनऊ ही जाता है। यहां न केवल पूरा यूपी बसता है बल्कि यहां के युवा ज्यादा जागरूक माने जाते हैं। लखनऊ में युवा मतदाताओं की संख्या सात लाख से अधिक है। यानी चुनावी बिसात पर अकेले युवा किसी भी राजनीतिक दल के समीकरण को बना और बिगाड़ सकते हैं। घिसे-पिटे जाति-धर्म के समीकरणों को ध्वस्त कर सकते हैं।
सर्वे में सड़क, बिजली, पानी, औद्योगिक विकास, राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र, वर्तमान चुनावी व राजनीतिक व्यवस्था पर युवाओं की राय ली गई। नोटा, एक देश एक चुनाव, राजनीति में कॅरिअर बनाने की उनकी इच्छा को लेकर सवाल किए गए।
सियासी दलों के घोषणा पत्र को लेकर किए गए सवाल के जवाब में 54 फीसदी ने कहा, राजनीतिक दल लोक लुभावन घोषणा पत्र तो बना देते हैं, लेकिन वे कभी पूरे नहीं किए जाते। बहुसंख्यक युवा सियासी दलों के वादों पर ऐतबार नहीं करते। यानी युवाओं का भरोसा जीतना राजनीतिक दलों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। महज 30 फीसदी की ही रुचि राजनीतिक ग्लैमर में युवाओं के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न कॅरिअर का है। राजनीति में कितने लोग कॅरिअर बनाना चाहते हैं, इस सवाल पर 70 फीसदी एकदम से मुकर गए। महज 30 फीसदी ने राजनीतिक ग्लैमर में रुचि दिखाई। इनका कहना था कि उनमें पॉलिटिकल पावर सेंटर बनने की चाह है।
युवा किस आधार पर वोट देंगे? इस संबंध में किए गए सवाल के जवाब में 79 फीसदी युवाओं ने कहा कि वे प्रत्याशी कैसा है या फिर उसके काम को देखकर ही वोट करेंगे। हालांकि जातीयता व क्षेत्रीयता अभी भी 21 फीसदी युवाओं के मन पर हावी है। 61 फीसदी युवाओं ने माना कि जाति और संप्रदाय के आधार पर की गई वोटिंग के घातक नतीजे होते हैं।
नोटा को लेकर युवा दो भागों में बंटे हैं। 47 फीसदी इसे जरूरी मानते हैं, तो 53 फीसदी बोले-नोटा वोट की बर्बादी है, इसकी कोई आवश्यकता ही नहीं है।
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