आदिवासी महिला की जान बचाने जनसेवा टीम आई आगे
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आरोंन-गुना (आरएनआई) रक्तदान को विश्व में सबसे बड़ा दान माना गया है, क्योंकि रक्तदान ही है, जो न केवल किसी जरूरतमंद का जीवन बचाता है, बल्कि जिंदगी बचाकर उस परिवार के जीवन में खुशियों के ढ़ेरों रंग भी भरता है। कल्पना कीजिए कि कोई व्यक्ति रक्त के अभाव में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा है। आप एकाएक उम्मीद की किरण बनकर सामने रक्तदान को विश्व में सबसे बड़ा दान माना गया है, क्योंकि रक्तदान ही है, जो न केवल किसी जरूरतमंद का जीवन बचाता है, बल्कि जिंदगी बचाकर उस परिवार के जीवन में खुशियों के ढ़ेरों रंग भी भरता है। कल्पना कीजिए कि कोई व्यक्ति रक्त के अभाव में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा है। आप एकाएक उम्मीद की किरण बनकर सामने आते हैं और आपके द्वारा किए गए रक्तदान से उसकी जिंदगी बच जाती है तो आपको कितनी खुशी होगी।
यह बात रविवार को जनसेवा टीम के सदस्य मिथुन शर्मा ने जिला अस्पताल में कही। मिथुन ने बताया कि जिला अस्पताल में भर्ती आरोंन के ढीमरयाई बिलापुरा निवासी वंदना आदिवासी को रक्त बी पॉज़िटिव की जरूरत थी। चूंकि महिला में मात्र चार यूनिट ब्लड बचा था और महिला के साथ कोई अटेंडर भी नहीं था महिला अकेली थी महिला से कोई संपर्क भी नहीं हो पा रहा था लेकिन जनसेवा टीम ने अस्पताल में तलास कर महिला की मदद की,इसकी जानकारी आरोंन सिविल अस्पताल बीएमओ डॉ महेश राजपूत द्वारा जनसेवा ग्रुप पर जानकारी डाली तो गुना जनसेवा टीम के रामसिंह रजक आगे आए और ज़िला ब्लड बैंक अधिकारी अशोक शर्मा के सहयोग से रक्त की व्यवस्था कर महिला की जान बचाई। वही मिथुन ने कहा कि आज भी कई लोग रक्तदान करने से बचते हैं। इसलिए हम इस तरह की भ्रांतियों को लेकर लोगों को जागरूक करने के प्रयास कर रहे हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार रक्तदान करने से शरीर को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होता बल्कि रक्तदान से तो शरीर को कई फायदे ही होते हैं। साथ ही कहा कि जब चिकित्सा विज्ञान इतना विकसित नहीं था। किसी को पता ही नहीं था कि किसी दूसरे व्यक्ति का रक्त चढ़ाकर किसी मरीज का जीवन बचाया जा सकता है। उस समय रक्त के अभाव में असमय होने वाली मौतों का आंकड़ा बहुत ज्यादा था, किन्तु अब स्थिति बिल्कुल अलग है, लेकिन फिर भी यह विड़म्बना ही कही जाएगी कि रक्तदान के महत्व को जानते-समझते हुए भी रक्त के अभाव में आज भी दुनियाभर में हर साल करोड़ों लोग असमय ही काल के ग्रास बन जाते हैं, जिनमें अकेले भारत में ही रक्त की कमी के चलते होने वाली ऐसी मौतों की संख्या करीब बीस लाख होती है। इस महिला को ज़िला अस्पताल में पहुँचाने में सीएचओ जूली लोढ़ा,एएनएम ममता राय,आशा कार्यकर्ता सुनीता अहिरवार आदि की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
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