आज दूल्हा बने हैं सांवरिया, श्रीकृष्ण-रुकमणी विवाह के प्रसंग पर झूमे श्रद्धालु, सुमधुर भजनों के बीच सुनी श्रीमद् भागवत कथा

Jan 26, 2024 - 21:25
Jan 26, 2024 - 21:26
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आज दूल्हा बने हैं सांवरिया, श्रीकृष्ण-रुकमणी विवाह के प्रसंग पर झूमे श्रद्धालु, सुमधुर भजनों के बीच सुनी श्रीमद् भागवत कथा

गुना (आरएनआई) सामरसिंगा परिवार द्वारा एक निजी होटल में आयोजित की जा रही श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन कथा वाचक पं. इंद्रेशजी उपाध्याय ने भगवान श्रीकृष्ण-रुकमणी विवाह का सुंदर प्रसंग का वर्णन किया। भगवान श्रीकृष्ण जब अपनी बारात लेकर रुकमणीजी से विवाह करने पहुंचे तो पूरा नगर उन्हें निहारने लगा। इस दौरान इंद्रेशजी महाराज ने आज दूल्हा बने हैं सांवरिया... भजन गाना शुरु किया तो पाण्डाल में बैठा प्रत्येक श्रोता अपनी सुध-बुध खोकर नृत्य और उत्साह में रम गया।

इंद्रेशजी महाराज ने शुक्रवार को कथा के दौरान रास विहार, मथुरा गमन, कंस वध और रुकमणी विवाह के कई रोचक प्रसंगों का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि भगवान द्वारा मथुरा पहुंचकर कंस का वध किया और मथुरावासियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। इसके बाद कारागार में बंद वसुदेव और माता देवकी को मुक्त कराया। श्रीकृष्ण ने भगवान विश्वकर्मा को आदेश देकर द्वारिका नगरी का निर्माण कराया। भगवान श्रीकृष्ण के भाई बलरामजी का विवाह रेवत राजा की पौत्री रेवती के साथ हुआ, इसलिए वह रेवती-रमण कहलाए। भगवान के बड़े भाई का विवाह होने के बाद उनकी माता छोटी पुत्र श्रीकृष्ण के विवाह के लिए चिंतित हुईं और नारदजी से विवाह का योग्य पूछा। नारदजी ने बताया कि भगवान के एक नहीं अनेक विवाह होंगे। इसी दौरान कोंडियनपुर के राजा शिशुपाल की पुत्री रुकमणी ने एक ब्राह्मण के हाथों भगवान के नाम पत्र लिखा, जिसका प्रथम श्लोक पढ़कर ही भगवान ब्राह्मण के साथ चल दिए। कोंडियनपुर पहुंचने पर उन्होंने रुकमणी जी को रथ में विराजमान किया और द्वारिका ले आए। यहां वसुदेवजी और देवकीजी ने रुकमणी जी के पिता को सूचना दी कि वे भगवान श्रीकृष्ण का विवाह विधि-विधान से करना चाहते हैं। इसके बाद भगवान की बारात कोंडियनपुर पहुंची, जहां उन्हें देखकर हर कोई भाव-विभोर हो गया। जो लोग भगवान को पसंद नहीं करते थे, वे भी उन्हें निहारने लगे। इंद्रेशजी महाराज ने इस प्रसंग के माध्यम से समझाया कि रुकमणी जी की सगाई उनके भाई ने राजा शिशुपाल से तय कर दी थी। लेकिन रुकमणीजी ने तो कथा और संतों से वर्णन सुन श्रीकृष्ण को अपना स्वामी मान चुकी थी। उनकी तपस्या फलीभूत हुई। इस आशय यह है कि ठाकुरजी जिसे चाहते हैं, वह उन्हें अवश्य मिलते हैं। इससे पहले इंद्रेशजी महाराज ने गोवर्धन प्रसंग का वर्णन भी आगे बढ़ाया। उन्होंने बताया कि बृजवासियों की रक्षा के लिए प्रभु ने पर्वत को 7 दिन और 7 रात अपने उंगली पर धारण किया था। इंद्रेशजी ने गिरिराज पर्वत के मथुरा में होने की कहानी भी विस्तार से बताई। इसका संबंध द्वापर युग में भगवान श्रीराम द्वारा निर्माण किए जा रहे संतु से भी उन्होंने विस्तार से समझाया। 

तिलक लगाने से नहीं आती नकारात्मक ऊर्जा
इंद्रेशजी महाराज ने कथा के मध्य में श्रद्धालुओं की जिज्ञासा और प्रश्नों का भी समाधान किया। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि तिलग लगाना आवश्यक है। इसे धारण करने से नकारात्मक ऊर्जा समीप नहीं आती है। तिलक का त्याग कैसे करें, इसका वर्णन भी इंद्रेशजी उपाध्याय ने विस्तार से किया। उन्होंने बताया कि तिलक चंदन का होना चाहिए। जब इसका त्याग करें तो भगवान का ईश्वर कर लें। तिलक लगाकर रात में भी सोना वर्जित नहीं है। 27 जनवरी शनिवार को कथा का समय सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक रखा गया है।

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