आगामी आम चुनाव में अपनी सीट भी नहीं बचा पाएंगे ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक!
बेस्ट फॉर ब्रिटेन ने सर्वे के बाद यह भी कहा है कि पता चला है कि देश में सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी को इस साल के अंत में होने वाले आम चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ सकता है। इतना ही नहीं ब्रिटिश प्रधान मंत्री ऋषि सुनक अपनी उत्तरी यॉर्कशायर सीट भी शायद ही बचा पाएं।
लंदन (आरएनआई) ब्रिटेन में साल के अंतिम छह महीनों में आम चुनाव हो सकते हैं। इसके संकेत खुद प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने दे दिए हैं। हाल के महीनों में ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक ने मई में चुनाव की संभावना से इनकार कर दिया था और संकेत दिया था कि इस साल के आखिरी में चुनाव कराए जा सकते हैं। इस बीच, एक सर्वे में चौंकाने वाला दावा किया गया है। इसमें कहा गया है कि आगामी आम चुनाव में ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक की सीट भी खतरे में है।
एक प्रचार अभियान संगठन बेस्ट फॉर ब्रिटेन ने सर्वे के बाद यह भी कहा है कि पता चला है कि देश में सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी को इस साल के अंत में होने वाले आम चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ सकता है। इतना ही नहीं ब्रिटिश प्रधान मंत्री ऋषि सुनक अपनी उत्तरी यॉर्कशायर सीट भी शायद ही बचा पाएं। बेस्ट फॉर ब्रिटेन ने इस सर्वे से पहले 15,029 लोगों की राय ली थी। जिसके आधार पर तैयार रिपोर्ट में विपक्षी लेबर पार्टी को 45 प्रतिशत वोट शेयर के साथ कंजर्वेटिव की तुलना में 19 अंकों की बढ़त के साथ शीर्ष पर रखा गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि आगामी चुनावों में कंजर्वेटिव पार्टी की संभावनाए अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई हैं। जिसे देखते हुए कहा जा रहा है कि वे इस बार 100 से भी कम सीटें जीत रहे हैं, विपक्षी लेबर पार्टी को इसका खासा फायदा मिलेगा। लेबर पार्टी इस बार 468 सीटें जीत सकती है।
इस बार 28 मौजूदा कैबिनेट सदस्य चुनाव लड़ सकते हैं, उनमें से भी केवल 13 ही दोबारा चुने जाएंगे। इस सर्वे को लेकर पूर्व ब्रेक्सिट सचिव और सुनक के बड़े आलोचक लॉर्ड डेविड फ्रॉस्ट ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि नवीनतम सर्वेक्षण आंकड़ों से पता चलता है कि कंजर्वेटिव पार्टी हताशा का सामना कर रही है। उन्होंने कहा कि मतदान समय के साथ बदतर होता जा रहा है, बेहतर नहीं।
चुनाव से पहले आए अधिकांश सर्वे में कंजर्वेटिवों के मुकाबले लेबर पार्टी को आरामदायक बढ़त मिलती हुई दिखाई दे रही है। मौजूदा समय में पार्टी सियासी उथल-पुथल, रोजमर्रा की वस्तुओं में बढ़ती लागत के संकट और बढ़ते आप्रवासन के बीच सत्ता-विरोधी लहर से जूझ रही है।
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