आईपीएल क्रिकेट का ऑन लाइन सट्टा रोकने में सरकारें विफल हैं तो इसे लाइसेंस दायरे में ले
भोपाल। युवा पीढ़ी सटोरियों की वसूली गैंग के चंगुल में बर्बाद हो रही है, लोग आत्महत्या तक कर रहे हैं। इसे प्रभावी ढंग से रोका जाना चाहिए। लेकिन रोकना नामुमकिन दिखाई देता है। ऐसे में पीड़ा के साथ लिखना पड़ रहा है कि यदि सरकार इसे रोकने में नाकाम हैं तो फिर सरकारी मान्यता देकर इसे अपराधियों से मुक्त कर राजस्व वृद्धि का साधन बना लिया जाए।
अभी भी ये पूरा नेटवर्क पुलिस और सफेदपोश लोगों के संरक्षण और पार्टनरशिप में ही चलता है। जिसमें 20 से 50 फीसदी हिस्सा सटोरिए अपने संरक्षण दाताओं पर खर्च करते हैं। इससे बेहतर होगा कि शराब के ठेके की तरह इनके लाइसेंस भी सरकार ही जारी करे। ऑन लाइन लिंक और पासवर्ड कलेक्टरों के माध्यम से लाइसेंसी को जारी कर दिए जाएं।
तमाम सरकारी सरकारी योजनाओं की तरह इसकी भी एक योजना चलाकर सटोरियों और खिलाड़ियों के बैंक खाते खुलवा लिए जाएं जिससे कम से कम सट्टे के खेल की आड़ में बन रही अपराधियों की वसूली गैंग का तो सभ्य समाज और अन्य व्यक्ति शिकार न बने।
यह विषय अत्यंत गंभीर और संवेदनशील है। लेकिन हैरानी है कि कोई भी विधायक या सांसद इस विषय को प्रभावी ढंग से विधानसभा और संसद में नही उठाता। सट्टे का ये खेल युवाओं को अकर्मण्य बनाकर अपराध की ओर अग्रसर कर रहा है। इस पर समय रहते प्रभावी अंकुश लगाया जाना चाहिए।
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