असम में व्यक्ति को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने विदेशी बताया, SC ने कहा- यूं ही कोई भी आरोप नहीं लगा सकते

असम में एक व्यक्ति को विदेश बताने के गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को गैर जिम्मेदाराना बताते हुए निराशा जताई है।

Jul 13, 2024 - 03:30
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असम में व्यक्ति को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने विदेशी बताया, SC ने कहा- यूं ही कोई भी आरोप नहीं लगा सकते

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई न्यायाधिकरण यूं ही किसी व्यक्ति पर विदेशी होने का आरोप नहीं लगा सकता है। बिना किसी ठोस आधार या संदेह के किसी के खिलाफ राष्ट्रीयता की जांच शुरू नहीं की जा सकती। 19 मार्च 2012 में असम में विदेशी न्यायाधिकरण ने अपीलकर्ता मोहम्मद रहीम अली को विदेशी करार दिया था और गुवाहाटी हाईकोर्ट ने इसकी पुष्टि की थी।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने न्यायाधिकरण के बिना किसी ठोस आधार के केवल संदेह के आधार पर कार्यवाही शुरू करने के गैरजिम्मेदाराना तरीके पर निराशा जताई। कोर्ट ने कहा कि सबसे पहले यह संबंधित न्यायाधिकरण के लिए आवश्यक है कि उसके पास कोई आधार या सूचना हो, जिससे संदेह हो कि कोई व्यक्ति विदेशी है न कि भारतीय। कोर्ट ने निर्देश दिया कि इस निर्णय की एक प्रति विदेशी न्यायाधिकरण आदेश, 1964 के तहत गठित सभी न्यायाधिकरणों को भेजी जाए।

पीठ ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस निर्णय को पलट दिया, जिसमें नलबाड़ी स्थित विदेशी न्यायाधिकरण के फैसले की पुष्टि की गई थी। इसमें मोहम्मद रहीम अली को विदेशी घोषित किया गया था। पीठ ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि सवाल यह है कि क्या विदेशी अधिनियम की धारा 9 कार्यपालिका को किसी व्यक्ति से यह कहने का अधिकार देती है कि हमें संदेह है कि आप विदेशी हैं। विदेशी अधिनियम 1946 की धारा 9 के अनुसार, सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है जिसके खिलाफ कार्यवाही की जाती है।

प्राकृतिक न्याय के स्थापित सिद्धांतों को नजरअंदाज नहीं कर सकता न्यायाधिकरण
जस्टिस अमानुल्लाह के लिखे फैसले में कहा गया है कि अधिनियम की धारा 9 के आधार पर व्यक्ति पर लगाए गए वैधानिक भार का निर्वहन करने के लिए, व्यक्ति को उसके खिलाफ उपलब्ध सूचना और सामग्री की जानकारी दी जानी चाहिए ताकि वह अपने खिलाफ कार्यवाही का विरोध और बचाव कर सके। पीठ ने यह स्पष्ट किया कि इस तरह के आरोप का सबूत आरोपी व्यक्ति को शुरुआती चरण में दिया जाना चाहिए। साथ ही पीठ ने यह भी कहा है कि न्यायाधिकरण प्राकृतिक न्याय के स्थापित सिद्धांतों को नजरअंदाज नहीं कर सकता।

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