अष्ट महालक्ष्मी मंदिर मिटाएगा ग्वालियर का वास्तुदोष:7 मार्च को स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज करेंगे प्राण प्रतिष्ठा, CM समेत कई मंत्री होंगे शामिल

Feb 29, 2024 - 21:55
Feb 29, 2024 - 21:56
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अष्ट महालक्ष्मी मंदिर मिटाएगा ग्वालियर का वास्तुदोष:7 मार्च को स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज करेंगे प्राण प्रतिष्ठा, CM समेत कई मंत्री होंगे शामिल

ग्वालियर (आरएनआई) ग्वालियर का भगवान सूर्य और शनि देव से है पौराणिक नाता वास्तु दोष काटने के लिए डबरा रोड जौरासी पर बनाए गए अष्ट महालक्ष्मी मंदिर के निर्माण में करीब 13 करोड़ की लागत आई है।

वर्ष 2019 से बन रहे इस मंदिर में लगा संगमरमर वियतनाम से मंगाया गया है।

मंदिर में नक्काशी के लिए कारीगर राजस्थान, वृन्दावन से व झूमर के लिए फिरोजाबाद से बुलाये गए थे।

एक समय था जब ग्वालियर औद्योगिक नगरी के नाम से पहचाना जाता था, लेकिन वास्तुदोष के ग्रहण ने यहां चल रहे उद्योगों को धीरे-धीरे अस्त कर दिया। औद्योगिक क्षेत्र में प्रगति की वही पहचान अब ग्वालियर में जल्द लौटने वाली है। 

ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक ग्वालियर में पूर्व से उपस्थित शनि पर्वत के बाद बने सूर्यमंदिर के साथ जो वास्तुदोष बना था, उसे दूर करने के लिए अब जौरासी के श्रीहनुमान मंदिर पर विशाल अष्ट लक्ष्मी देवी का मंदिर बनकर तैयार हो चुका है।

मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में प्रदेश का पहला अष्ट महालक्ष्मी मंदिर का लोकार्पण होने जा रहा है। जूनापीठाधीश्वर आचार्य अवधेशानंद गिरि इसका लोकार्पण करेंगे। वहीं CM डॉ मोहन यादव कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे। 7 मार्च को लोकार्पित होने जा रहे इस मंदिर से ग्वालियर का वर्षों पुराना वास्तुदोष दूर हो जाएगा। शास्त्रों में भी इसकी जानकारी अंकित है, दावा है कि मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा के साथ ही ग्वालियर में विकास की तस्वीर तेजी से बदलती हुई नजर आएगी। शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर जौरासी गांव में प्राचीन हनुमान मंदिर है। मंदिर ट्रस्ट ने ही महालक्षमी मंदिर का निर्माण कराया है। 1 मार्च को कलश यात्रा के साथ महालक्ष्मी मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा से जुड़े हुए कार्यक्रमों की शुरुआत हो जाएगी। वहीं 7 मार्च को जूना अखाड़े के पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरि मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे। CM डॉ मोहन यादव कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे। इसके साथ ही विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर सहित मध्य प्रदेश सरकार के आधा दर्जन मंत्री भी कार्यक्रम में शामिल होंगे। इस मंदिर के बाद ग्वालियर में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा तो मिलेगा।साथ ही ग्वालियर का एक बड़ा वास्तुदोष भी खत्म हो जाएगा।

इस मंदिर में मां महालक्ष्मी अपनी सात बहनों के साथ विराजित की गई हैं। मंदिर में महालक्ष्मी की आठ मूर्तियां होगीं। मुख्य मूर्ति 6 फीट की रहेगी। इसके अलावा मंदिर में धनलक्ष्मी ,धान्य लक्ष्मी ,गज लक्ष्मी, शांतना लक्ष्मी, वीरा लक्ष्मी ,विद्या लक्ष्मी, विजयालक्ष्मी देवियों की मूर्ति दो-दो फीट की रहेगीं। महालक्ष्मी यंत्र भी बनाया गया है। सभी मूर्तियां जयपुर से बनवाकर लाई गई हैं, जिसमें विशेष मार्बल का पत्थर लगाया गया है।

मंदिर को भव्य रूप दिया गया है। तीन बीघा क्षेत्र में बनने वाले इस मंदिर परिसर के भूतल पर सत्संग भवन बनकर तैयार हो गया है। वहीं ऊपरी मंजिल पर प्रतिमाओं की स्थापना होनी है। इसी के साथ संत निवास भी तैयार हो गया है, जिसमें संतों के ठहरने की व्यवस्था रखी गई है।गौरतलब है कि 1 मार्च को कलश यात्रा का आयोजन होना है, जिसमें मंत्री कृष्णा गौर शामिल होगीं। कलश यात्रा के साथ ही महालक्ष्मी प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की शुरुआत हो जाएगी। वही 7 मार्च को अष्ट महालक्ष्मी की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही एक धार्मिक पर्यटन स्थल उभर कर सामने आएगा। मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के आचार्य, विभाग अध्यक्ष वेदमूर्ति पंडित गोपाल प्रसाद शर्मा के साथ ही शासकीय संस्कृत महाविद्यालय गोरखपुर के आचार्य पंडित प्रवीण कुमार पांडे के निर्देशन में होगा।


ग्वालियर का भगवान सूर्य और शनि देव से एक गहरा नाता जुड़ा है, जिसके चलते शहर बड़े वास्तु दोष से लंबे वक्त से गुजर रहा है। ग्वालियर अंचल को शनि का क्षेत्र कहा जाता है, क्योंकि यहां के ऐंती पर्वत पर रामायण कालीन शनि देव का प्राचीन मंदिर है। जहां साक्षात शनि देव का वास बताया जाता है, जबकि शहर में ही 1988 में कोणार्क की तर्ज पर सूर्य मंदिर की स्थापना भी की गई थी। शनि और सूर्य दोनों पिता पुत्र हैं, लेकिन शास्त्रों के अनुसार शनि-सूर्य में कभी बनती नहीं है। यही वजह है कि एक ही क्षेत्र में दोनों के विराजित होने से शहर को लगा वास्तु दोष शहर की विकास में एक बड़ी बाधा बन गया। लेकिन 7 मार्च को महालक्ष्मी मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही यह वास्तु दोष खत्म होने जा रहा है।


ये महज लोगों के बीच अंधविश्वास नहीं है, पुराणों के अनुसार शनि देव को कलयुग में न्याय के देवता के नाम से जाने जाते हैं। शनिदेव सूर्य देवता के पुत्र हैं, लेकिन शनिदेव और सूर्यदेव की आपस में कभी नहीं बनी। स्कंदपुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, शनिदेव के जन्म के बाद जब उनकी मां स्वर्णा शनिदेव को लेकर सूर्यदेव के पास गईं तो शनिदेव के काले रंग को देखकर सूर्यदेव ने स्वर्णा पर संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए कह दिया कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। मां के कठोर तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी और मां का अपमान देखकर शनिदेव को क्रोध आ गया। उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव काले हो गए और पुरी दुनिया में अंधेरा छा गया। सूर्य के घोड़ों की चाल रुक गई। परेशान होकर सूर्यदेव भोलेनाथ की शरण में गए और भोलेनाथ ने उनको उनकी गलती का अहसास कराया। तभी से धार्मिक मान्यता है कि शनि और सूर्य के बीच आपसी विरोधाभास रहता है।

इसी विरोधाभास के चलते ग्वालियर में बड़ा वास्तुदोष माना जाता है। इस दोष को दूर करने मां संपूर्णा अष्ट महालक्ष्मी मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है। इस दोष को दूर करने प्रकाण्ड विद्वानों द्वारा महालक्ष्मी मंदिर बनाने की सलाह मंदिर ट्रस्ट को दी गई थी। यह मंदिर जोरासी मंदिर के समीप बनाया गया है, जो कि लगभग बनकर तैयार हो चुका है। जिसकी लागत करीब 15 करोड़ रुपए है।

1 मार्च को प्रायश्चित एवं कलश यात्रा 2 मार्च को द्वितीय दिवस पंचांग पूजन और मंडप प्रवेश 3 मार्च को तृतीय दिवस मंडप पूजन बेदी पूजा और जलाधिबास 4 मार्च को चतुर्थ दिवस मंडप पूजन, अग्नि स्थापन, अन्नाधिबास, फलाधिबास, वस्त्राधिबास, पुष्पाधिबास वस्त्र, मिष्ठानाधिबास, प्रसाद वास्तु पूजन 5 मार्च को पंचम दिवस मंडप पूजन, मूर्तिस्पन, प्रसाद स्पन, नगर भ्रमण मूर्ति न्यास और सैया धीबास 6 मार्च को मंडप पूजन प्राण प्रतिष्ठा पूर्णआहुति और विसर्जन 7 मार्च को मुख्य कार्यक्रम वेद पाठ लोकार्पण और भंडारा होगा, जिसमें 1 लाख लोगों के प्रसाद वितरण की व्यवस्था रखी गई है। सबसे खास बात यह भी है कि 7 मार्च को भंडारे का जो आयोजन किया गया है उसे जन सहयोग से व्यवस्थित किया गया है। आसपास की अलग-अलग गांव ने भंडारे और कार्यक्रम से जुड़ी व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी ली है।

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