अमरनाथ मंदिर का इतिहास जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल, यूट्यूब वास्तु सुमित्रा
अमरनाथ मंदिर का इतिहास
अमरनाथ मंदिर से जुड़ा हुआ इतिहास या कहता है कि जम्मू-कश्मीर में आर्य राजा भगवान शंकर के शिवलिंग की पूजा आराधना करते थे जो की बर्फ की बनी हुई थी। राज तरंगिणी के पुस्तक में इस शिवलिंग को अमरेश्वर यानी कि अमरनाथ कहा गया है।
अमरनाथ मंदिर की गुफाओं में होने वाली यात्रा की शुरुआत प्रजा भट्ट ने की थी। जो अमरनाथ में आए हुए श्रद्धालुओं के लिए बहुत विशेष महत्व रखती है।
अमरनाथ गुफा का इतिहास
कहा जाता है कि इसी अमरनाथ मंदिर में भगवान शिव माता पार्वती को अमरत्व की कथा यानी की अमर कथा सुना रहे थे तब उन्होंने माता पार्वती को यह कथा सुनाने के लिए एक रुद्र का त्याग किया था जिससे इस गुफा में आग लग गई थी ताकि कोई भी जीवित व्यक्ति या जानवर इस कथा को न सुन सके। कहा जाता है कि जब भगवान शिव माता पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे तब वहां कबूतरों का एक जोड़ा था जो भगवान से उसे अमर कथा सुन रहा था अमर कथा सुनने के बाद वह कबूतर आज भी अमर हो गए हैं और लोग मानते हैं कि वह अमरनाथ मंदिर की गुफा में में अक्सर दिखाई देते हैं हालांकि अभी तक इस बात की कोई पुष्टि नहीं कर सकता कि यह वही कबूतर हैं या कोई दूसरे लेकिन लोगों की अपनी-अपनी अवधारणा बनी हुई है।
अमरनाथ गुफा की खोज से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य
अमरनाथ धाम और अमरनाथ धाम की यात्रा भारत की प्रसिद्ध तीर्थ यात्राओं में से एक है। अमरनाथ धाम और उसकी यात्रा से जुड़े हुए बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं।
अलग-अलग क्षेत्रों में लोग अलग-अलग मान्यताओं को मानते हैं। लेकिन अमरनाथ शिवलिंग की खोज को लेकर एक कथा अत्यंत प्रचलित है और लगभग पीढ़ी दर पीढ़ी लोग इसी कथा को मानते आए हैं। कहा जाता है कि जब एक ही कहानी को बार-बार दोहराया जाता है तो एक ऐसा समय आता है जब झूठी बात भी लोगों को सच लगने लगती है। कुछ ऐसा ही झूठ अमरनाथ शिवलिंग की खोज को लेकर भारत के लोगों को सच के रूप में स्वीकार कराया गया।
दरअसल अमरनाथ धाम में अमरनाथ शिवलिंग की खोज को लेकर एक कथा बहुत ज्यादा प्रचलित है जिसके अनुसार यह कहा जाता है कि अमरनाथ शिवलिंग की खोज किसी मुस्लिम गडरिए ने की थी। कहा जाता है कि बूटा मलिक नाम के मुस्लिम गडरिया ने १८५० में इस शिवलिंग को खोजा था। कहा जाता है कि इसी गडरिया ने हीं, बर्फ से निर्मित भगवान शिव के अमरनाथ शिवलिंग को सबसे पहले देखा था जिसके पश्चात लोगों को इसके बारे में पता चला और लोग अमरनाथ की यात्रा करने लगे। लेकिन फिर भी बहुत से ऐसे भारतीय इतिहासकार पुरातत्वविद थे जो इस मान्यता को सही नहीं मानते थे और इसे लेकर लगातार खोज में जुटे हुए थे। इन्हीं खोजों में इस मान्यता से जुड़ा हुआ सच उभर कर सामने आया है। जिसके ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि कि सदियों से लोग भारतीय हिंदुओं से झूठ बोलते हैं क्योंकि अमरनाथ ज्योतिर्लिंग की खोज किसी मुस्लिम गडरिया ने नहीं की थी बल्कि इसका अस्तित्व पहले से ही लोगों को ज्ञात था। इस बात को प्रमाणित करने के लिए इतिहासकारों ने बहुत सारे मत दिए हैं।
५ वीं शताब्दी से १७ वीं शताब्दी तक कई बार हुआ है इस शिवलिंग का वर्णन
भले ही लोग यह मानते हो कि बाबा बर्फानी के शिवलिंग की खोज मुस्लिम गडरिया ने १९ वीं शताब्दी में की थी लेकिन यह बिल्कुल भी सत्य नहीं है। अमरनाथ शिवलिंग का जिक्र पांचवी शताब्दी से लेकर १७ वीं शताब्दी तक विभिन्न प्रकार की पुस्तकों में साक्ष्य के रूप में संकलित है। पांचवी शताब्दी में पुराणों की रचना में अमरनाथ ज्योतिर्लिंग का वर्णन किया गया है इसके अलावा राज तरंगिणी नाम के ग्रंथ में भी अमरनाथ ज्योतिर्लिंग का वर्णन मिलता है। राज तरंगिणी ग्रंथ कश्मीर के ऊपर १२ वीं शताब्दी में लिखा गया था। पुराणों और राज तरंगिणी ग्रंथ के अलावा आईने अकबरी नाम की पुस्तक में भी इस शिवलिंग का वर्णन किया गया है जो कि १६ वी शताब्दी के दौरान अकबर के शासन काल के बारे में लिखी गई है।
इन सब बातों के अलावा १८४२ में ब्रिटिश यात्री जिसका नाम जी टी वेंगे था उसने भी अपनी पुस्तक में इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन किया है साथ ही साथ १७ वीं शताब्दी के दौरान ही औरंगजेब के फ्रेंच डॉक्टर फ्रैंकोइस बेरनर ने भी अपनी किताब में इस शिवलिंग का जिक्र किया था।
What's Your Reaction?