अपने हक का त्याग करना ही रामायण है और दूसरे का हक छीनना ही महाभारत है : डां. कौशलेंद्र महराज 

Jan 24, 2025 - 18:51
Jan 24, 2025 - 18:51
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अपने हक का त्याग करना ही रामायण है और दूसरे का हक छीनना ही महाभारत है : डां. कौशलेंद्र महराज 

अम्बेडकर नगर( आरएनआई) अम्बेडकर नगर रामबाबा क्षेत्र के ग्राम अतरौरा में चाल रही सात दिवसीय श्रीमद्भगवत कथा के तीसरे दिन बृन्दावन से पधारे भागवताचार्य डां.कौशलेन्द्र महराज ने भक्त घ्रुव, प्रहलाद व भरत चारित्र के प्रसंग की कथा का वर्णन किया। इस दौरान पंडाल में मौजूद श्रोताओं ने कथा का भाव विभोर हो श्रवण किया।
भगवान पर करें विश्वास और आराधना महराज ने कहा कि भक्त प्रह्लाद और ध्रुव ईश्वर के प्रति अटल विश्वास, भक्ति और सत्य की प्रतिमूर्ति हैं। दोनों ने माया-मोह छोड़कर भगवान विष्णु को अपना आराध्य माना। उनकी भक्ति में इतनी शक्ति थी कि उनकी रक्षा के लिए स्वयं श्रीहरि विष्णु ने मृत्युलोक में कदम रखा था। वह हरि के सच्चे भक्त हैं। प्रभु की भक्ति करनी है तो इन दोनों के जीवन चरित्र से प्रेरणा लेनी चाहिए।
बच्चों में अच्छे संस्कार के लिए सुनायें ध्रुव और प्रह्लाद की कथा

डां कौशलेंद्र महराज ने कहा कि प्रह्लाद और ध्रुव ने प्रभु पर अटूट विश्वास करते हुए भक्ति का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया। दोनों ही कठोरतम दंडों और यातनाओं से भी नहीं डरे और ईश्वर की आराधना करते रहे। ठीक उसी प्रकार हमें भी जीवन के संकटों से नहीं डरना चाहिए और भगवान पर विश्वास कर उनकी आराधना में लीन होना चाहिए। भगवान भक्तों की सच्ची पुकार सुनकर निश्चित ही उन पर कृपा बरसाते हैं। वर्तमान में बच्चों में अच्छे संस्कार के लिए उन्हें भक्त ध्रुव व प्रह्लाद की कथा अवश्य सुनानी चाहिए। इससे उनमें अच्छे भाव व संस्कार जन्म लेते हैं। भागवताचार्य ने कहा कि भरत का अर्थ जीवन में त्याग है, जिस राज के लिए केकैई ने दुनिया का अपयश अपने सिर पर लिया। वो राज भरत ने मन की भांति त्याग दिया। अपने हक का त्याग करना ही रामायण है और दूसरे का हक छीनना ही महाभारत है। भरत, श्रीराम को लाने के लिए गुरु वशिष्ट सहित समस्त प्रजा माता कौशल्या, सुमित्रा सहित वन में जाते हैं, लेकिन श्रीराम ने मर्यादा का आभास कराकर चरण पादुका को देकर अयोध्या में वापस भेजा। उन्होंने कहा कि इस संसार में प्राणी दो रस्सियों में बंधा है, ये अहमता व ममता है। अहमता शरीर को मैं मान लेती है और ममता शरीर के संबंधियों को मानती है। कारण है मन, जब इस मन को संसार की तरफ ले जाओगे तो मोह का कारण बनेगा और जब इसे भगवान की तरफ ले जाओगे तो मुक्ति का साधन बनेगा। इस दौरान श्रद्धालु भाव-विभोर होकर कथा का श्रवण करते रहें कथा के विश्राम पर आरती के बाद प्रसाद का वितरण किया गया। मुख्य यजमान शिव कुमार त्रिपाठी एडवोकेट श्री मती शशि त्रिपाठी भगवान प्रसाद त्रिपाठी संजय त्रिपाठी डां सुधाकर त्रिपाठी प्रभाकर त्रिपाठी करूणाकर त्रिपाठी भास्कर त्रिपाठी बृजेश कुमार त्रिपाठी वैभव त्रिपाठी अभिराम शांतनु अंश अद्विक वत्सल अनिर्वाण त्रिपाठी आदि लोग उपस्थित रहे।

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Laxmi Kant Pathak Senior Journalist | State Secretary, U.P. Working Journalists Union (Regd.)