अपनी जाती में विवाह करने के शास्त्रीय पक्ष जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से
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अग्नि पुराण में विवाह से जुडी कई बातें बताई गयी है और वर्णो के विषय में बताया हुआ है। सोचने वाली बात है की २०२३ में हम विवाह के शास्त्रीय पक्ष की बात क्यों कर रहे है ? पहले एक उदाहरण देना चाहूंगी - मान लीजिये की आपके घर में एक छोटा बच्चा है और आप उसको जीवन के सुरुवाती सिख सिखाते है तो कई हिदायते देते है - जैसे की किसी अनजान आदमी से बात मत करना, कोई अकेले कही ले जाएं तो वहां नहीं जाना, आग में हाथ मत देना, किसी का अपमान मत करना। हर कोई अपने बच्चों को ये सुरुवाती शिक्षा देते है। कितने लोग इन हिदायतों को नहीं मानने के आने वाले परिणाम के बारे में बताते है।
हिदायत किसी अनजान आदमी से बात मत करना -बात करोगे तो वो आपकी दो बात मानेंगे और दो अपनी बात भी मनवाएंगे, फिर आपको कुछ खिलाएंगे भी और साथ ले जायेंगे भी, चिकनी चुपड़ी बातों में आप आ भी जायेंगे और आपको पता भी नहीं चलेगा वो आपको कब बेच देंगे और आप रस्ते में भीख मानेंगे। आप में से कोई भी माता पिता उनको ये कभी नहीं बताते है की ये बच्चे जो उठा लिए जाते है कभी भी इन्हे इनके घर वालो को लौटाया नहीं जाता है, इनके भाग्य में या तो भीख मांगना लिखा होता है या होम में रहना।
इतना बताने का उद्देश्य ये है की बड़े जब छोटो को गाइडलाइन्स देते है तो बोल देते है -' ये मत करो , वो मत करो ', पर पीछे की रामायण वो ही जानते है, न ये बताना संभव है न वो उस उम्र में समझने लायक होते है।
ठीक इसी प्रकार हमारे ऋषियों ने हिदायते तो दी है परन्तु इन हिदायतों के पीछे की कथा की व्याख्या नहीं की है। इनमे से एक है अपनी जाती में विवाह करना। आज का मानव लॉजिकल पक्षों पर ज्यादा जोर देते है न की शास्त्रीय बातो को। जब एक स्त्री एक परिवार से दूसरे परिवार में जाती है तो वो नहीं जानती है वहां के रहन सहन के बारे में , घर के लोगो के बात व्यवहार के बारे में , परंपरा से चले आ रहे तीज - त्यौहार के बारे में। पहले लड़की शादी करके जब ससुराल जाती थी तो वो कुल देवता,कुल देवी, गोत्र, तीज त्योहार , श्राद्ध, पितर ये सब की जानकारी अपनी सास से सिख लेती थी पर आज सब अलग रहते है और कोई किसी की नहीं सुनते, साथ ही परंपरा से चली आ रही बातों को कई लोग मान्यता नहीं देते है।
इंटरकास्ट शादियों में सबसे बड़ी दिक्कत आती है पौराणिक परंपरा और नियमों को मानने में। लड़को को वैसे भी इन विषयो में कम जानकारी होती है और ऐसे में लड़की दूसरे जाती, धर्म परंपरा से होने से अक्सर ये देखा गया है की ससुराल की परंपरा नहीं निभा कर वो अपने पीहर वाले नियमों का ही पालन करती है।
आज संघटित नहीं रहने के कारण हम अपनी परम्पराओ से दूर होते जा रहे है। सिर्फ अच्छा खाना , अच्छा पहनना , अच्छा घूमना और बच्चों को बड़े स्कूल में पढ़ना ही महत्वपूर्ण नहीं है। अपनी परम्परोओं का हमारे जीवन पर जाना अंजना प्रभाव है ये बात ऋषि मह्रिषी जानते थे तभी वो इन नियमो को बनाये थे।
एक हिदायत सब ने सूनी ही होगी - " किसी से बेफिजूल बात मत करो , बेकार, लम्बी बातें मत करो किसी से "। इस हिदायत को नहीं सुनने वाले लोग प्यार, मोहब्बत में पड़कर अनजान लोगो के साथ भाग भी जाते है , शादी भी कर लेते है और आप कई किस्से भी सुनते है जिसमे उनके खून भी हो जाते है। सूत्रधार है, जरुरत से ज्यादा बात करना। सोशल मीडिया चैट में सबसे बड़ा खतरा ये होता है की आप सब कुछ सामने वाले की जुबानी सुनते है और उसी के आधार पर अपनी धारणाये बनाते है पर ये एक तरफ़ा जानकारी है , इसकी पुस्टी होनी चाहिए की बात में कितनी सच्चाई है।
अगर आप चाहते है की आपका बच्चा ऐसे किसी विध्वंसक सम्बन्ध में न पड़ जाये तो उनके सोशल मीडिया में अपरिचित लोगो से बात करने से रोकने के लिए जो भी ठोस कदम उठाना हो वो उठाये। सिर्फ हिदायत न दे आगे की पूरी रामायण भी बताये। कई संपन्न घरो की लड़किया अपने ड्राइवर, या नौकर या टूशन टीचर के साथ भाग जाती है। बाद में लोग बोलते है इसने उसको फसा लिया।
नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है ये अजीब ओ गरीब मैच का कारण ज्यादा बात करना है। किसी से भी ज्यादा बात करिये देखिये वो आपके दिमाग में चलने लगता है। सावधानी और बचाओ इसी बात में है की खुद को रोका जाएं , खुद को टोका जाएं , हो सकता है की सामने वाला अच्छा हो और अगर अच्छा नहीं हुआ तो क्या आप अपने जीवन का जोखिम उठाने के लिए तईयार है?
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