IPRS की 55वीं वर्षगांठ: 'साउंडस्केप्स ऑफ़ इंडिया' के ज़रिये विविध संस्कृतियों को जोड़ने की पहल

Sep 11, 2024 - 19:24
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IPRS की 55वीं वर्षगांठ: 'साउंडस्केप्स ऑफ़ इंडिया' के ज़रिये विविध संस्कृतियों को जोड़ने की पहल
नई दिल्ली (आरएनआई) इंडियन परफॉर्मिंग राइट सोसाइटी लिमिटेड, IPRS ने भारत के उभरते संगीतकारों को दुनिया के मंच पर आगे बढ़ाने के उद्देश्य से म्यूज़ीकनेक्ट इंडिया के साथ मिलकर अपने आप में बिल्कुल अनोखे एवं ऐतिहासिक कार्यक्रम की मेजबानी की। IPRS ने बीते पांच दशकों से अधिक समय की अपनी विरासत को संजोकर रखते हुए भारतीय संगीतकारों के अधिकारों की हिफाज़त के साथ-साथ उनकी प्रगति के लिए हर संभव कोशिश की है। अब उन्होंने 'साउंडस्केप्स ऑफ़ इंडिया: गेटवे टू द वर्ल्ड' के माध्यम से देश के हर संगीतकार को दुनिया के मंच पर आगे बढ़ाने के लिए सीढ़ी की तरह काम किया है। भारतीय संगीतकारों के लिए विश्व स्तर पर उभर रहे अवसरों को सामने लाने के उद्देश्य से ही इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।
यह कार्यक्रम मुख्य रूप से दो घटकों: यानी एक सम्मेलन और भारत के 16 बेमिसाल बैंडों की प्रस्तुति पर केंद्रित था, जिसके बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए भारतीय गीतकार-पटकथा लेखक-निर्देशक एवं IPRS बोर्ड के सदस्य, श्री मयूर पुरी ने कहा, "साउंडस्केप्स ऑफ़ इंडिया का अनुभव वाकई हैरत में डाल देने वाला था, जो महान संगीत रचनाकारों की ज़िंदगी के प्रेरणादायक सफ़र से अवगत कराने वाला, और म्यूजिक बिजनेस के बारे में बेहद मूल्यवान जानकारी से भरा हुआ था।" संगीत जगत को एकजुट करने वाले इस तीन दिवसीय आयोजन में भारतीय संगीत की प्रतिभाओं, उद्योग जगत के दिग्गजों, इस क्षेत्र के विशेषज्ञों तथा म्यूजिक इंडस्ट्री को नई राह दिखाने वाले रचनाकारों का एक बेजोड़ संगम देखने को मिला।
इस आयोजन में रेनफॉरेस्ट वर्ल्ड म्यूजिक फेस्टिवल (सरवाक, मलेशिया), प्लेटाइम फेस्टिवल (मंगोलिया), वर्ल्ड म्यूजिक फेस्टिवल (ब्रातिस्लावा), वीज़ा फॉर म्यूजिक (मोरक्को), सिगेट फेस्टिवल और ले मोंडे डांस मोन विलेज (हंगरी) सहित 13 से ज़्यादा वर्ल्ड म्यूजिक फेस्टिवल की ओर से 11 प्रतिनिधियों ने अपनी मौजूदगी दर्ज की। इस कार्यक्रम ने भारतीय संगीतकारों को दुनिया भर में अपनी पहचान बनाने और विश्व स्तर पर सम्मानित म्यूजिक फेस्टिवल की ओर से मौजूद अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों के सामने अपना हुनर दिखाने का नायाब और अनमोल अवसर प्रदान किया।
हमारे अपने पॉप स्टार और भारत के गोल्डन मैन, दलेर मेहंदी ने बड़े ही भव्य तरीके से आयोजित इस कार्यक्रम का उद्घाटन द्वारा किया। उन्होंने ही सबसे पहले इस कार्यक्रम को संबोधित किया और इस दौरान अपनी ज़िंदगी के संघर्षों के साथ-साथ सफलता पाने के लिए की गई मेहनत के बारे में बताया।
इस कार्यक्रम में भारतीय संगीत, कानून, मीडिया, इंटरनेशनल फेस्टिवल सहित विभिन्न क्षेत्रों के एक दर्जन से अधिक विशेषज्ञों ने चर्चा में योगदान दिया, और इसी वजह से इस आयोजन का हर लम्हा लाभदायक साबित हुआ। उन्होंने वर्तमान में मौजूद चुनौतियों को उजागर करने के साथ-साथ प्रगति और सीमा पार सहयोग के तरीकों के बारे में भी विचार प्रस्तुत किये। यह सम्मेलन देश और दुनिया की म्यूजिक इंडस्ट्री से जुड़े कई महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श का एक अवसर था, जिसमें “वैश्विक संगीत मंच पर भारत की उपस्थिति को बढ़ाना”, “आईपी अधिकारों का उपयोग करना”, “डिजिटल रेजोनेंस”, और इसी तरह के कई अलग-अलग विषयों को शामिल किया गया।
इस मौके पर म्यूज़ीकनेक्ट एशिया के संस्थापक अध्यक्ष, एवं म्यूज़ीकनेक्ट इंडिया के संस्थापक निदेशक, तथा ग्लोबल म्यूजिक मार्केट नेटवर्क के उपाध्यक्ष, श्री कौशिक दत्ता ने बताया कि, "भारतीय संगीत जगत में काफी विविधता है। लोगों को बॉलीवुड म्यूजिक के बारे में मालूम है और धीरे-धीरे इस संस्कृति का व्यावसायिक हिस्सा धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है, लेकिन दूसरी ओर लोक, पारंपरिक और स्वतंत्र संगीत काफी समृद्ध और विविधतापूर्ण हैं, और दुनिया के लोग यह जानने में असमर्थ हैं कि इनमें सबसे बेहतर कौन है।"
इस अवसर पर ICCR के उप महानिदेशक, श्री अभय कुमार भी उपस्थित थे, जिन्होंने ICCR के 74 वर्ष: भारतीय संगीत को वैश्विक मंच पर ऊँचाइयों तक पहुँचाने में इसकी भूमिका के बारे में गहन चर्चा की। श्री कौशिक दत्ता ने जिस समस्या का ज़िक्र किया था, उस पर श्री अभय कुमार ने जवाब देते हुए कहा, "भारतीय संगीत को दुनिया के सामने लाने में हमने बेहद अहम और निर्णायक भूमिका निभाई है। हमने 100,000 से अधिक गीतों को दुनिया के बाकी हिस्सों तक पहुँचाया है। लेकिन आज के दौर में, यह संख्या इतनी ज़्यादा हो गई है कि सरकार अब अकेले यह काम नहीं कर सकती। कलाकारों को सहयोग देने के लिए निजी संस्थाएँ क्यों नहीं गठित की जा सकती है? मेरा मानना ​​है कि निजी और सरकारी संगठनों के बीच साझेदारी ही सबसे सही रास्ता हो सकता है।"

इसके बाद के दो दिन और भी अधिक रोमांचक थे, और इस दौरान अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों के साथ-साथ उपस्थित सभी लोगों ने भारतीय संगीत की मौलिकता और विविधता का भरपूर आनंद लिया। सावधानीपूर्वक तैयार किए गए 16 बैंडों ने जबरदस्त उत्साह और पूरी निपुणता के साथ भारत के अलग-अलग हिस्सों के मधुर संगीत को प्रस्तुत किया, जिनमें भारतीय शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत, हिप-हॉप, जैज़, स्विंग, इत्यादि शामिल थे।
इस अवसर पर चर्चा को आगे बढ़ते हुए, श्री कौशिक दत्ता ने कहा, "कुछ मायनों में भ्रमण कर रहे कुछ कलाकारों की प्रतिभा बेमिसाल है, लेकिन दूसरी ओर, अभी और भी बहुत कुछ खोजा जाना बाकी है। 'साउंडस्केप्स ऑफ़ इंडिया' एक ऐसा आयोजन है जो न केवल कलाकारों के लिए नज़रों से ओझल संभावनाओं के दरवाजे खोल रहा है, बल्कि यह दुनिया भर के प्रतिनिधियों के लिए एक अवसर भी पैदा कर रहा है कि वे अधिकाधिक संगीत को एकाग्रचित्त होकर सुनें, जो उन्हें कभी-कभी सुनने को मिलता है।"
लेकिन क्या बेहतरीन म्यूजिक तैयार करना और उसे पेश करना ही काफी है? IPRS के सीआईओ, श्री सुरहित भट्टाचार्य ने अधिकारों और रॉयल्टी से जुड़ी समस्याओं, खासकर डिजिटल दुनिया में इन समस्याओं को संबोधित करते हुए कहा, "हम सभी निजी तौर पर बेहतरीन काम कर रहे हैं, लेकिन अब हम सभी के लिए एकजुट होने का समय आ गया है। बहुत से संगीतकार अभी भी इसके बारे में नहीं जानते हैं, लेकिन संगीत मेटा डेटा से जुड़ा हुआ है। आज यह बहुत ज़्यादा सुलभ है और पहचान कर पाना कठिन है। इसलिए हमें आधार की तरह ISWC और IPI नंबर जैसे कोड की ज़रूरत है, जो आपकी हर जगह पहचान का जरिया हैं। यदि आपके पास IPI नंबर है और आपका गाना दुनिया में कहीं भी बजता है तो यह आपको ट्रैक कर लेता है। आपको बस शुरुआत करने के लिए IPRS के साथ रजिस्टर करना है।"
आगे बढ़ते हुए, इस कार्यक्रम से यह बात भी जाहिर हुई कि दुनिया की म्यूजिक इंडस्ट्री में भारत धीरे-धीरे एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है। श्री मयूर पुरी ने बताया कि, "साल 2024 में पूरी दुनिया में म्यूजिक फेस्टिवल के बाज़ार का आकार 2,258.2 मिलियन डॉलर है, और उम्मीद की जा रही है कि साल 2031 तक इसमें 24% की CAGR से बढ़ोतरी होगी। इसके अलावा, पूरी दुनिया के रेवेन्यू में अकेले एशिया-पेसिफिक बाज़ार की हिस्सेदारी 23% है, जिसके साल 2031 तक 26% की CAGR {कॉग्निटिव मार्केट रिसर्च के अनुसार} से बढ़ने की उम्मीद है।"
लेकिन इस तरह के फेस्टिवल के साथ सस्टेनेबल तरीके से प्रयास करना और संस्कृति की हिफाज़त करना कठिन है। यहीं पर सरवाक पर्यटन बोर्ड के सीईओ, शारज़ादे दातु एचजे सल्लेह असकोर ने सामने आकर संगीत, ज़िम्मेदार पर्यटन और सस्टेनेबिलिटी के बीच बेहतर तालमेल के बारे में बात की। उन्होंने रेनफॉरेस्ट म्यूजिक फेस्टिवल का ज़िक्र करते हुए बताया कि, किस प्रकार उन्होंने सांस्कृतिक पवित्रता से समझौता किए बिना फेस्टिवल में ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों की मौजूदगी के बीच संतुलन कायम किया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा, "कार्यक्रम में हज़ारों लोगों की मौजूदगी के बावजूद, कार्यक्रम के बाद शायद ही कहीं कूड़ा-कचरा फैला होता है। हमें बहुत ज़्यादा लोग नहीं चाहिए। हमें सिर्फ गुणवत्ता से मतलब है। हम नीयत पर मिलने वाले रिटर्न, यानी बेहतर ROI पर ध्यान देते हैं, क्योंकि RWMF सिर्फ़ संगीत का सम्मान नहीं करता है बल्कि सस्टेनेबल तरीकों के साथ पर्यटन को भी बढ़ावा देता है। हम मानते हैं कि संस्कृतियों का मिलन होता है और संगीत प्रतिध्वनित होता है। और इसी वजह से कला के लिए हमारा संकल्प सिर्फ फेस्टिवल के दायरे में सीमित नहीं है, बल्कि यह इससे परे है।"
एक कलाकार होने और अपनी रचनाओं को दुनिया के सामने लाने के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से पर वापस लौटते हुए, शारज़ादे ने कहा, "सबसे अहम बात यह है कि, हम जो हैं, उसके प्रति हमें हमेशा वफ़ादार रहना चाहिए। दुनिया लगातार आपको बदलने की कोशिश करेगी, लेकिन जब आपमें मौलिकता होगी तभी आप तभी लेखक बन सकते हैं।"
सियोल म्यूजिक वीक, ग्वांगजू बसकिंग वर्ल्ड कप और उल्सान जैज़ फेस्टिवल के संस्थापक एवं महानिदेशक, दक्षिण कोरिया के जंग हुन ली ने उनके वक्तव्य का समर्थन करते हुए कहा, “आपको हर समय मुख्यधारा में रहने की ज़रूरत नहीं है, वैकल्पिक संगीत के लिए भी जगह होनी चाहिए।” उनकी यह बात भारतीय संगीत और उस विरासत के लिए पूरी तरह उपयुक्त है, जिसे हम बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
अंत में, श्री मयूर पुरी ने IPRS और इस आयोजन के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, “IPRS में हमें इस बात पर बहुत गर्व है कि हम इस विशाल कार्य को इतनी कुशलता से पूरा करने में सफल रहे। IPRS क्रिएटिवशाला, लर्न एंड अर्न वर्कशॉप के अलावा#CreditTheCreators,#HerMusicIPRSऔर अब साउंडस्केप्स जैसे कैंपेन के माध्यम से क्रिएटर्स के अधिकारों की हिफाज़त करने और म्यूजिक बिजनेस को बढ़ाने वाला ध्वजवाहक बन गया है। इस बात में कोई हैरानी नहीं है कि, IPRS आज भारत की इकलौती ऐसी कंपनी है जिस पर संगीत निर्माताओं के साथ-साथ म्यूजिक इंडस्ट्री के भागीदार भी पूरा भरोसा करते हैं। हमने समय-समय पर, संस्था के यशस्वी अध्यक्ष श्री जावेद अख़्तर साहब के दूरदर्शी मार्गदर्शन में बिजनेस के साथ-साथ समुदाय की सेवा के लिए एक नई मिसाल कायम की है। मुझे पूरा यकीन है कि साउंडस्केप्स ऑफ़ इंडिया म्यूजिक फेस्टिवल तथा लाइव कार्यक्रमों को समझने और इन्हें आगे बढ़ाने में एक नया अध्याय लिखेगा, जो म्यूजिक इंडस्ट्री के कार्यक्षेत्र का सबसे बुनियादी हिस्सा है।”
श्री कौशिक दत्ता ने आभार जताते हुए कहा, "अंत में, मैं IPRS को धन्यवाद देना चाहूँगा कि उन्होंने लीक से हटकर दुनिया के म्यूजिक मार्केट तक अपनी पैठ बनाई है।” IPRS ने भारतीय संगीतकारों के लिए स्थानीय और वैश्विक मंचों के द्वार खोलने की दिशा में पहला कदम उठाया है। अब उन्होंने इस गति को बरकरार रखने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा है कि, भारतीय संगीत को दुनिया के हर कोने में सुना और लोग इसका भरपूर आनंद लें। उन्हें उम्मीद है कि इस तरह की चर्चा आगे भी जारी रहेगी और रचनात्मक समाधानों के लिए रास्ता खुलेगा, जिससे हमारे संगीतकारों को विविधतापूर्ण और गहन संगीत के साथ दुनिया में कामयाबी का परचम लहराने में मदद मिलेगी।

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