'IFS पहले उच्च जाति की सेवा थी, अब हो रही लोकतांत्रिक' : मणिशंकर
लेखक कल्लोल भट्टाचार्य की 'नेहरूज फर्स्ट रिक्रूट्स' किताब के लॉन्च के मौके पर एक कार्यक्रम हुआ। यहां अय्यर ने खुद को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का अंतिम आईएफएस भर्ती बताया।
नई दिल्ली (आरएनआई) कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व भारतीय राजनयिक मणिशंकर अय्यर हाल ही में पाकिस्तान की तारीफ कर खूब चर्चाओं में रहे थे। अब उन्होंने भारतीय विदेश सेवा को लेकर एक बयान दिया है। अय्यर ने कहा कि आईएफएस पहले उच्च जाति की सेवा थी, जिसमें 'मैकाले की औलाद' शामिल थी। हालांकि, अब यह अधिक लोकतांत्रिक होती जा रही है। वहीं, 1962 में हुए चीन-भारत के युद्ध पर भी टिप्पणी की, जिससे अब सियासी गलियारे में हंगामा हो गया है।
लेखक कल्लोल भट्टाचार्य की 'नेहरूज फर्स्ट रिक्रूट्स' किताब के लॉन्च के मौके पर एक कार्यक्रम हुआ। यहां अय्यर ने खुद को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का अंतिम आईएफएस भर्ती बताया। साथ ही मंगलवार को कहा कि देश ने पहली पीढ़ी की भर्तियों के दौरान खराबी को दूर कर दिया है।
कार्यक्रम के दौरान अय्यर ने 1962 में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध पर कहा कि अक्तूबर 1962 में चीनियों ने कथित तौर पर भारत पर आक्रमण किया। हालांकि बयान में कथित लगाने पर विवाद खड़ा हो गया, जिसके बाद उन्होंने माफी मांगी। अय्यर ने कहा कि फॉरेन कॉरेस्पोंडेंट्स क्लब में 'चीनी आक्रमण' से पहले गलती से 'कथित' शब्द का इस्तेमाल करने के लिए वह माफी मांगते हैं।
विवाद के बीच कांग्रेस ने मणिशंकर अय्यर के बयान से पल्ला झाड़ लिया है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, 'उनकी (अय्यर की) उम्र के लिए भत्ता दिया जाना चाहिए। कांग्रेस ने खुद को उनकी मूल शब्दावली से दूर कर लिया है। 20 अक्तूबर 1962 को शुरू हुआ भारत पर चीनी आक्रमण वास्तविक था। मई 2020 की शुरुआत में लद्दाख में चीनी घुसपैठ हुई थी, जिसमें हमारे 20 सैनिक शहीद हो गए थे और हालात बिगड़ गए थे।'
दिग्गज नेता अय्यर ने अपने आईएफएस के अनुभव के बारे में भी बताया। आईएफएस पर अय्यर ने कहा, 'मेरी पीढ़ी तक और यहां तक कि 21 वीं सदी में भी आईएफएस एक उच्च जाति की सेवा हुआ करती थी। यह 'मैकाले की औलाद' के लिए सेवा थी। अब यह अधिक लोकतांत्रिक हो रहा है और इसमें हिंदी बोलने वालों की संख्या बहुत है। हम विदेश सेवा में अपने देश की चमक ला रहे हैं और मुझे लगता है कि यह बहुत अच्छी बात है।'
मैकालेवाद का तात्पर्य ब्रिटिश उपनिवेशों में अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली आरम्भ करने की नीति से है। यह शब्द ब्रिटिश राजनेता थॉमस बबिंगटन मैकाले (1800-1859) के नाम से लिया गया है, जिसने गवर्नर-जनरल की परिषद में सेवा की और भारत में उच्च शिक्षा के लिए अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मैकाले की शैक्षिक नीतियां अत्यधिक विवादास्पद थीं, और आज भी विवादास्पद बनी हुई हैं। लॉर्ड थॉमस बबिंगटन मैकाले को भारत में अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है।
83 वर्षीय ने एक आईएफएस अधिकारी का उदाहरण दिया, जिससे वह इस्तांबुल की अपनी एक यात्रा के दौरान मिले थे। अधिकारी शुरू में केवल हिंदी भाषा का जानकार था, बाद में उन्होंने एक वर्ष के भीतर कई भाषाओं को सीख लिया था। कांग्रेस के दिग्गज नेता अय्यर ने कहा, 'मैं इस्तांबुल की यात्रा पर एक नई भर्ती से मिला था, जो केवल हिंदी में मुझसे बात कर सकता था। लेकिन जब तक मैं अगले वर्ष फिर से इस्तांबुल पहुंचा, तो वही अधिकारी अंग्रेजी बोलते हुए मिले थे और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें तुर्की भी बोलनी आ गई थी। इसलिए, हम विदेश सेवा में अपने देश की चमक ला रहे हैं और मुझे लगता है कि यह बहुत अच्छी बात है।'
अय्यर 1963 में आईएफएस में शामिल हुए थे और विदेश मंत्रालय में 1982 से 1983 तक संयुक्त सचिव के रूप में कार्य किया। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि कैसे विदेश सेवा अब पहले से काफी बदल गई है।
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