72 घंटे में दो इंस्पेक्टरों ने की आत्महत्या
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ, असम राइफल्स और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड में जवानों व अधिकारियों द्वारा आत्महत्या करने के मामले कम नहीं हो पा रहे हैं। गत पांच वर्ष में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 654 जवानों ने आत्महत्या कर ली है।
देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल 'सीआरपीएफ' में 72 घंटे के भीतर दो इंस्पेक्टरों ने आत्महत्या कर ली है। इनमें से एक इंस्पेक्टर की बॉडी पंखे से झूलती हुई मिली तो दूसरे ने अपनी राइफल से खुद को गोली मार ली। असम में सीआरपीएफ की 20 बटालियन के हेडक्वॉर्टर कैम्पस में इंस्पेक्टर चित्तरंजन बारो का शव पंखे से लटका हुआ मिला। उस वक्त इंस्पेक्टर के हाथ और पांव बंधे हुए थे। दोनों ही मामलों की जांच हो रही है। सीआरपीएफ में पिछले पांच वर्ष के दौरान 230 कर्मी आत्महत्या कर चुके हैं। अगर सभी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की बात की जाए तो पांच वर्ष के दौरान 654 जवानों ने आत्महत्या कर ली है।
सूत्रों के मुताबिक, पहली घटना 15 अगस्त को हुई थी। इंस्पेक्टर चित्तरंजन बारो (45 वर्ष) मूल रूप के असम के कामरूप जिले के रहने वाले थे। अभी उनकी सेवा को 19 साल पूरे हुए थे। सुबह सात बजे उन्होंने अपना जीवन समाप्त कर लिया। वे रोल कॉल में अनुपस्थित थे। इसके बाद हवलदार जीके भारद्वाज को उनके क्वार्टर पर भेजा गया। क्वार्टर का दरवाजा बंद था। खिड़की से देखा गया तो चित्तरंजन बारो, पंखे से लगे फंदे पर झूल रहे थे। हैरानी की बात है कि इंस्पेक्टर के हाथ और पांव बंधे हुए थे। उनके गले में जो रस्सी थी, उसी से उनके हाथ बंधे हुए थे। पांव, किसी दूसरे कपड़े से बंधे हुए मिले। अधिकारियों को इस घटना से अवगत कराने के बाद चित्तरंजन बारो की पत्नी मोनिका बारो को सूचित किया गया। असम पुलिस ने इस मामले में केस दर्ज किया है। सूत्रों का कहना है, कुछ समय से इंस्पेक्टर चित्तरंजन, ड्यूटी को लेकर तनाव में थे। सी 20 बटालियन के साथ अटैच चित्तरंजन 3 जुलाई को बिना सूचना दिए कहीं चले गए थे। इसके बाद वे अपनी पत्नी के साथ पांच जुलाई को वापस लौटे। मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्हें सात जुलाई से पांच अगस्त तक छुट्टी दे दी गई। वे दोबारा से सात अगस्त को अपनी पत्नी के साथ बटालियन में लौटे। आठ अगस्त को उनकी पत्नी वापस चली गई। सूत्र बताते हैं कि इंस्पेक्टर चित्तरंजन तनाव में थे। तीन दिन अनुपस्थित रहने के मामले की प्रारंभिक जांच चल रही है। दूसरी घटना 17 अगस्त को छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ कोबरा 210 बटालियन में हुई। यहां पर इंस्पेक्टर शफी अख्तर ने अपनी राइफल से खुद को गोली मार ली। गंभीर अवस्था में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उनका जीवन नहीं बचाया जा सका। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ, असम राइफल्स और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड में जवानों व अधिकारियों द्वारा आत्महत्या करने के मामले कम नहीं हो पा रहे हैं। गत पांच वर्ष में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 654 जवानों ने आत्महत्या कर ली है। आत्महत्या करने वालों में CRPF के 230, बीएसएफ के 174, सीआईएसएफ के 89, एसएसबी के 64, आईटीबीपी के 51, असम राइफल के 43 और एनएसजी के 3 जवान शामिल हैं। बजट सत्र के दौरान गृह मंत्रालय की संसदीय समिति ने अपनी 242 वीं रिपोर्ट में कहा था कि आत्महत्या के केस, बल की 'वर्किंग कंडीशन' पर असर डालते हैं। सेवा नियमों में सुधार की गुंजाइश है। जवानों को प्रोत्साहन दें। रोटेशन पॉलिसी के तहत पोस्टिंग दी जाए। लंबे समय तक कठोर तैनाती न दें। ट्रांसफर पॉलिसी ऐसी बनाई जाए कि जवानों को अपनी पसंद का ड्यूटी स्थल मिल जाए। अगर ऐसे उपाय किए जाते हैं तो नौकरी छोड़कर जाने वालों की संख्या कम हो सकती है। अगर पिछले पांच वर्ष की बात करें तो सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ और असम राइफल्स में 50155 कर्मियों ने जॉब को अलविदा कह दिया है। संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश भी की है कि सीएपीएफ में वर्किंग कंडीशन को बेहतर बनाया जाए। खाली पदों को शीघ्रता से भरा जाए। संसद सत्र में इस विषय को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था, इस बात का प्रयास चल रहा है कि सीएपीएफ कार्मिक अपने परिवारों के साथ यथासंभव प्रतिवर्ष 100 दिन बिता सकें। इन बलों में आत्महत्याओं और भ्रातृहत्याओं को रोकने के लिए जोखिम के प्रासंगिक घटकों एवं प्रासंगिक जोखिम समूहों की पहचान करने तथा उपचारात्मक उपायों से संबंधित सुझाव देने के लिए एक कार्यबल का गठन किया गया है। कार्यबल की रिपोर्ट तैयार हो रही है। सीएपीएफ में तबादले और छुट्टी को लेकर पारदर्शी नीतियां बनाई जा रही हैं। कठिन क्षेत्रों में सेवा करने के पश्चात यथासंभव उसकी पसंदीदा तैनाती पर विचार किया जाता है। दूसरी ओर, कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स मार्टियर्स वेलफेयर एसोसिएशन' का कहना है, इन जवानों को घर की परेशानी नहीं है। सरकार इस मामले में झूठ बोल रही है। इन्हें ड्यूटी पर क्या परेशानी है, इस बारे में सरकार कोई बात नहीं करती। आतंक, नक्सल, चुनावी ड्यूटी, आपदा, वीआईपी सिक्योरिटी और अन्य मोर्चों पर इन बलों के जवान तैनात हैं। इसके बावजूद उन्हें सिविल फोर्स बता दिया जाता है। जवानों को पुरानी पेंशन से वंचित रखा जा रहा है। समय पर प्रमोशन या रैंक न मिलना भी जवानों को तनाव देता है। विभिन्न जगहों पर राशन में भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं। सीएपीएफ में कई जगहों पर काम का बोझ ज्यादा है। एक कंपनी में जवानों की तय संख्या कभी भी पूरी नहीं रहती। मुश्किल से साठ सत्तर जवान ही ड्यूटी पर रहते हैं। ऐसे में उनके ड्यूटी के घंटे बढ़ जाते हैं। जवान ठीक से सो नहीं पाते हैं। वे अपनी समस्या किसी के सामने रखते हैं, तो वहां ठीक तरह से सुनवाई नहीं हो पाती। ये बातें जवानों को तनाव की ओर ले जाती हैं। कुछ स्थानों पर बैरक एवं दूसरी सुविधाओं की कमी नजर आती है। कई दफा सीनियर की डांट फटकार भी जवान को आत्महत्या तक ले जाती है। नतीजा, जवान तनाव में रहने लगते हैं।
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