37 हजार एलियन प्रजातियों से इंसानों-प्रकृति को सबसे ज्यादा खतरा
रिपोर्ट में बताया गया है कि जैव विविधता के वैश्विक नुकसान, जीवों के शोषण, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, जमीन और समुद्र के इस्तेमाल में बदलाव के लिए विदेशी प्रजातियां भी एक अहम कारक हैं।
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वॉशिंगटन। (आरएनआई) एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि विदेशी प्रजातियों (जो प्रजाति स्थानीय नहीं है और विभिन्न माध्यमों से नई जगह पहुंची है) से पृथ्वी की जैव विविधता को भारी नुकसान पहुंचाया है। हालात ये हैं कि इन विदेशी प्रजातियों की वजह से दुनिया के पेड़-पौधों और जानवरों की 60 प्रतिशत प्रजातियां विलुप्ति हो चुकी हैं। यह रिपोर्ट एक अंतर सरकारी संस्था 'इंटरगवर्नमेंटल प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज' (IPBES) द्वारा प्रकाशित की गई है। इस रिपोर्ट को 'एसेसमेंट रिपोर्ट ऑन इनवेसिव एलियन स्पीसीज एंड देयर कंट्रोल' नाम दिया गया है।
दुनिया में अभी तक 37 हजार विदेशी प्रजातियों के बारे में पता चला है। इनमें पेड़-पौधों और जानवरों दोनों की प्रजातियां शामिल हैं। इनमें से 3500 से ज्यादा विदेशी प्रजातियां ज्यादा आक्रामक पाई गई हैं। यह रिपोर्ट सोमवार को जारी की गई। रिपोर्ट में बताया गया है कि जैव विविधता के वैश्विक नुकसान, जीवों के शोषण, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, जमीन और समुद्र के इस्तेमाल में बदलाव के लिए विदेशी प्रजातियां भी एक अहम कारक हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशी प्रजातियां सदियों से दुनिया के सभी क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रही हैं लेकिन हाल के सालों में इसमें अभूतपूर्व तरीके से तेजी आई है। इसकी वजह इंसानों के बहुत ज्यादा एक जगह से दूसरी जगह यात्रा करने, व्यापार और वैश्विक अर्थव्यवस्था के विस्तार प्रमुख कारण हैं।
दुनिया में 6 फीसदी पेड़-पौधे, 22 प्रतिशत अकशेरुकी जीव, 14 प्रतिशत कशेरुकी जीव, 11 प्रतिशत सूक्ष्म जीव विदेशी हैं और प्रकृति और इंसानों के लिए खतरनाक हैं। जलकुंभी दुनिया की सबसे व्यापक आक्रामक विदेशी प्रजाति है। इसके अलावा लैंटाना, फूलदार झाड़ी और काला चूहा भी व्यापक रूप से दुनिया में फैली विदेशी प्रजातियां हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 1970 के बाद वैश्विक व्यापार और मानव यात्रा में बढ़ोतरी की वजह से विदेशी प्रजातियों की वार्षिक लागत बढ़कर चार गुना हो गई है। 2019 में, आक्रामक विदेशी प्रजातियों से वैश्विक अर्थव्यवस्था को करीब 423 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ है। आने वाले समय में विदेशी प्रजातियों के आक्रमण में तेजी आने की आशंका है। तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन इसमें तेजी ला सकते हैं।
उदाहरण के लिए यूरोपीय तटीय केकड़ा न्यू इंग्लैंड में शेलफिस को प्रभावित कर रहा है। वहीं कैरेबियन फाल्स मसल्स, देशी क्लैम और सीपों को नष्ट कर रहा है, जिससे केरल में मछली पालन को भारी नुकसान हो रहा है। माना जाता है कि कैरेबियन फाल्स मसल्स मूल रूप से दक्षिण और मध्य अमेरिका के अटलांटिक और प्रशांत महासागर के तट पर पाया जाता था लेकिन ऐसा माना जाता है कि पानी के जहाजों के जरिए यह भारत पहुंचा और बाद में मछली पकड़ने वाले छोटे जहाजों के जरिए केरल और अन्य जगह फैल गया।
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