14 साल बाद भी मरीजों को अधिकार नहीं, सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जनस्वास्थ्य अभियान
क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 देशभर में अस्पतालों के पंजीकरण और विनियमन से जुड़ा एक अधिनियम है जो संविधान के अनुच्छेद 47 के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए बनाया गया। इसके तहत अस्पतालों की सेवाओं और सुविधाओं के न्यूनतम मानक तय किए गए हैं। प्रत्येक अस्पताल को आपातकालीन स्थिति में मरीजों को इलाज मुहैया कराना होता है।
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नई दिल्ली (आरएनआई) सरकार की अनदेखी के चलते बीते 14 साल से मरीजों को उनका अधिकार नहीं मिल पाया है। साल 2010 में लागू क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट (सीईए) अभी तक 12 राज्यों में लागू है लेकिन वहां भी निजी अस्पतालों का प्रभावी तरीके से नियमन नहीं हुआ है। अस्पतालों के शुल्क के नियमन की मांग को लेकर जन स्वास्थ्य अभियान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।
अभियान के सह संयोजक डॉ. अभय शुक्ला ने बताया कि भारत में अभी तक निजी अस्पतालों पर संपूर्ण नियमन लागू नहीं है। इसका सीधा असर मरीजों के अधिकारों पर पड़ रहा है। अस्पतालों में लाखों रुपये के बिल, रुपये न देने पर मृतक के शव को न सौंपना और शुल्क में पारदर्शिता न होने से जुड़े मामले अक्सर सामने आते हैं। मरीजों को इससे राहत दिलाने के लिए क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट (सीईए) लागू किया गया लेकिन अभी तक अरुणांचल प्रदेश, असम, बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मिजोरम, राजस्थान, सिक्किम, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में इसे लागू किया है।
क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 देशभर में अस्पतालों के पंजीकरण और विनियमन से जुड़ा एक अधिनियम है जो संविधान के अनुच्छेद 47 के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए बनाया गया। इसके तहत अस्पतालों की सेवाओं और सुविधाओं के न्यूनतम मानक तय किए गए हैं। प्रत्येक अस्पताल को आपातकालीन स्थिति में मरीजों को इलाज मुहैया कराना होता है।
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