हिंदी दिवस पर साहित्य परिषद की गोष्ठी जय हिंदी जय भारती-डॉ बुनकर
इस अवसर पर अभिनदंन मड़वरिया, सूबेदार धर्मवीर भारतीय, सुविज्ञ प्रताप सिंह ने हिंदी भाषा को समर्पित कविता का पाठ किया। गोष्ठी में रंगेश श्रीवास्तव, सतेंद्र सिसोदिया, व्ही.पी. सिंह जादोन, विरलेय सिसोदिया, रचयिता, अनिकेत, अलका सहित बड़ी संख्या में श्रोतागण उपस्थित रहे। अंत में आभार सूबेदार धर्मवीर भारतीय ने व्यक्त किया।
गुना। (आरएनआई) हिंदी दिवस पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद, गुना व चेतना साहित्य कला परिषद गुना के संयुक्त तत्वाधान में सरस काव्यगोष्ठी का आयोजन रेलवे संघ भवन, रेल परिसर, गुना में किया गया। हिंदी के पूर्व प्राध्यापक डॉ एल एन बुनकर की अध्यक्षता, शंकर राव मोरे के मुख्य आतिथ्य व संजय खरे सहज के विशेष आतिथ्य में गोष्ठी सम्पन्न हुई। गोष्ठी का संचालन करते हुए ऋषिकेश भार्गव ने 14 सितंबर 1949 को एकमत से हिंदी के राजभाषा के रूप में स्वीकार्यता के ऐतिहासिक पहलू को बताया। आज हिंदी हमारे देश मे ही नही बल्कि विश्व की संपर्क भाषा के रुप में स्थापित होने लगी है। अब वह दिन दूर नही जब हिंदी देश की राष्ट्र भाषा बनेगी। गोष्ठी का शुभारंभ डॉ रमा सिंह के गाये हिंदी गीत से हुई। जिसमें हिंदी के स्वरूप का वर्णन किया गया।
दिया तले अंधेरा को बताते हुए कवि नरेंद्र भार्गव पद्म ने आने गीतों की प्रस्तुति दी। सलाउद्दीन शिकवा ने बताया कि सनातन ही है जो सत्य है अजर है अमर है। शायर प्रेम सिंह प्रेम ने सनातन के विरुद्ध चल रहे कुचक्र को शायरी से जवाब दिया। शायर डॉ अशोक गोयल ने अपने शेरों से जिंदगी की, जज्बात की इबारत को बड़ी शिद्दत से उकेरा।
आशुकवि उमाशकर भार्गव ने हिंदी दिवस को समर्पित कविता पाठ किया। रवि शर्मा बंजारा ने तरन्नुम में अपनी गजल को रखा। बाबू खां निडर ने हिंदी की महत्ता को दर्शाती कविता का पाठ किया। वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार विष्णु साथी ने हिंदी को माँ की संज्ञा देते हुए गीत गाया।
विशिष्ट अतिथि संजय खरे ने इंसानियत को परिभाषित करती गजल पढ़ी। मुख्य अतिथि शंकर राव मोरे ने रामायण पर आधारित हिंदी गीत की प्रस्तुति दी। गोष्ठी के अध्यक्ष डॉ लक्ष्मी नारायण बुनकर ने अपने वक्तव्य में उपस्थित साहित्यकारों को हिन्दी के सरल स्वरूप में लिखने का आव्हान किया। कहा कि ऐसा लिखो जो सरलता से जनमानस को समझ आ सके तभी इस लेखन का उद्देश्य सार्थक होगा। आपने हिंदी की आरती शीर्षक से जय हिंदी जय भारती,जय हिंदी जय भारती।
हम तो तेरे ही गुण गायें,और उतारें आरती ।
प्रस्तुत की।
इस अवसर पर अभिनदंन मड़वरिया, सूबेदार धर्मवीर भारतीय, सुविज्ञ प्रताप सिंह ने हिंदी भाषा को समर्पित कविता का पाठ किया। गोष्ठी में रंगेश श्रीवास्तव, सतेंद्र सिसोदिया, व्ही.पी. सिंह जादोन, विरलेय सिसोदिया, रचयिता, अनिकेत, अलका सहित बड़ी संख्या में श्रोतागण उपस्थित रहे। अंत में आभार सूबेदार धर्मवीर भारतीय ने व्यक्त किया।
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