सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की 14 साल से उड़ रहीं धज्जियां, बोरवेल पर दिए गए निर्देशों की हो रही अनदेखी
ये निर्देश तब जारी किए गए थे जब तत्कालीन सीजेआई के जी बालकृष्णन की अगुवाई वाली एक पीठ ने 13 फरवरी, 2009 को देश में इस तरह की दुर्घटनाओं के बारे में अपने संज्ञान में लाने वाली एक पत्र याचिका पर स्वत: संज्ञान लिया था।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने बोरवेल और ट्यूबेल में गिरने को लेकर साल 2010 में दिशा-निर्देश दिए थे। मगर आज 14 साल से अधिक समय बाद भी लगातार हो रहीं घटनाएं यह दिखाती हैं कि शीर्ष अदालत के आदेश के अनुपालन में कितनी लापरवाही बरती जा रही है। साथ ही जागरूकता पैदा करने की कितनी जरूरत है।
हाल ही में इस तरह की दुर्घटनाएं होने के बाद यह मुद्दा फिर से सामने आ गया है। इससे हताश और नाटकीय बचाव अभियान फिर शुरू हो गया है।
हाल ही में, एक तीन साल की बच्ची चेतना राजस्थान के कोटपुतली-बहरोड़ जिले में एक खुले बोरवेल में गिर गई थी। उसे 150 फीट गहरे बोरवेल से बचाने के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ को तैनात किया गया था। इसके अलावा, नौ दिसंबर को पांच साल का आर्यन राजस्थान के दौसा में खेलते समय 150 फुट गहरे बोरवेल में गिर गया था और 55 घंटे के बचाव अभियान के बाद उसे बेहोश निकाला गया था और अस्पताल पहुंचने पर उसे मृत घोषित कर दिया गया था।
ऐसी त्रासदियों को रोकने के उद्देश्य से 11 फरवरी, 2010 को शीर्ष अदालत द्वारा जारी व्यापक दिशानिर्देशों के बावजूद ये घटनाएं हुई हैं।
11 फरवरी 2010 को शीर्ष अदालत द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में निर्माण के दौरान कुएं के चारों ओर कांटेदार तार की बाड़ लगाना, कुएं के ऊपर बोल्ट के साथ तय स्टील प्लेट कवर का उपयोग करना और नीचे से जमीनी स्तर तक बोरवेल को भरना शामिल था।
ये निर्देश तब जारी किए गए थे जब तत्कालीन सीजेआई के जी बालकृष्णन की अगुवाई वाली एक पीठ ने 13 फरवरी, 2009 को देश में इस तरह की दुर्घटनाओं के बारे में अपने संज्ञान में लाने वाली एक पत्र याचिका पर स्वत: संज्ञान लिया था। शीर्ष अदालत ने अधिकारियों से यह भी कहा था कि इस आदेश का व्यापक प्रचार-प्रसार करें। उस आदेश में कहा गया था, इस अदालत के संज्ञान में लाया गया है कि कई मामलों में बच्चे बोरवेल और ट्यूबवेल या बेकार कुओं में गिर गए हैं। ये रिपोर्ट विभिन्न राज्यों से आ रही हैं। हमने स्वत: पहल की और शीर्ष अदालत ने 11 फरवरी 2010 को अपने आदेश में कहा था कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने के लिए विभिन्न राज्यों को नोटिस जारी किया है।
अदालत ने निर्देश दिया था कि सभी ड्रिलिंग एजेंसियों, सरकारी, अर्ध-सरकारी या निजी, का पंजीकरण अनिवार्य होना चाहिए। कुएं के पास निर्माण के समय निम्नलिखित विवरण के साथ एक साइनबोर्ड का निर्माण: (ए) कुएं के निर्माण या पुनर्वास के समय ड्रिलिंग एजेंसी का पूरा पता, (बी) उपयोगकर्ता एजेंसी या मालिक का पूरा पता होना चाहिए।
तीन फरवरी, 2020 को खुले हुए बोरवेल और ट्यूबवेल में बच्चों के गिरने के मामलों के साथ शीर्ष अदालत ने अधिवक्ता जी एस मणि द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की थी, जिन्होंने इस तरह की दुर्घटनाओं को रोकने में विफल रहने के लिए अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने अपने 2010 के आदेश के अनुपालन पर केंद्र और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जवाब मांगा है। शीर्ष अदालत की वेबसाइट के अनुसार रिट याचिका को दो साल से अधिक के अंतराल के बाद 13 जुलाई को सूचीबद्ध किया जाना है।
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