सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: वैवाहिक अधिकारों की बहाली, पत्नी को भरण पोषण देने से मना करने के लिए पर्याप्त नहीं
झारखंड हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता पत्नी की याचिका मंजूर कर ली है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश पारित करना और पत्नी की ओर से उसका पालन न करना, अपने आप में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत उसे भरण-पोषण देने से मना करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
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नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति के कहने पर वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश पारित करना और पत्नी की ओर से उसका पालन न करना, अपने आप में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत उसे भरण-पोषण देने से मना करने के लिए पर्याप्त नहीं है। सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा, पति के वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश और पत्नी के उसका पालन न करना, सीधे तौर पर उसके भरण-पोषण के अधिकार या सीआरपीसी की धारा 125 (4) के तहत अयोग्यता का निर्धारण नहीं करेगा।
झारखंड हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपीलकर्ता पत्नी की याचिका को स्वीकार करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि यह व्यक्तिगत मामले के तथ्यों पर निर्भर करेगा और उपलब्ध सामग्री व साक्ष्य के आधार पर यह तय करना होगा कि क्या पत्नी के पास इस तरह के आदेश के बावजूद अपने पति के साथ रहने से इन्कार करने के लिए अभी भी वैध और पर्याप्त कारण है।
साथ ही शीर्ष अदालत ने इस सवाल पर गौर किया कि क्या पत्नी की ओर से वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश का पालन न करना उसे भरण-पोषण से वंचित करने के लिए पर्याप्त होगा। क्योंकि सीआरपीसी की धारा 125(4) के अनुसार, यदि पत्नी पर्याप्त कारण के बिना पति के साथ रहने से इन्कार करती है तो वह पति से भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है। पीठ ने इस मुद्दे की जांच की और पाया कि कई उच्च न्यायालयों ने इस पर विचार किया लेकिन कोई सुसंगत दृष्टिकोण नहीं था और उनकी राय अलग-अलग और विरोधाभासी थी।
पीठ ने कहा कि दोनों कार्यवाही पूरी तरह से स्वतंत्र हैं और प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भी जुड़ी हुई नहीं हैं। इसमें पहला मामला वैवाहिक अधिकारों की बहाली से जुड़ा और दूसरा, सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण से जुड़ा है। धारा 125 के तहत कार्यवाही वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए कार्यवाही से उत्पन्न नहीं होती है। पीठ ने कहा, इस संबंध में कोई सख्त नियम नहीं हो सकता है और यह हमेशा प्रत्येक विशेष मामले में प्राप्त विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर होना चाहिए।
इस मामले में हाईकोर्ट ने माना था कि पत्नी भरण-पोषण की हकदार नहीं है, क्योंकि वह वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश के बावजूद पर्याप्त कारण के बिना पति के घर नहीं लौटी थी। साथ ही उसने अपील के माध्यम से चुनौती देने का विकल्प भी नहीं चुना था। हालांकि, पीठ ने कहा कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए आदेश पारित करना महिला के खिलाफ नहीं माना जा सकता। इसने कहा, हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 125(4) को लागू करने में गंभीर गलती की। अदालत ने अपीलकर्ता को 10,000 रुपये मासिक भरण-पोषण के भुगतान के पारिवारिक न्यायालय के आदेश को बहाल कर दिया, जिसमें मानसिक और शारीरिक यातना, एलपीजी और शौचालय का उपयोग करने से मना करना और दहेज की मांग सहित विभिन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया था।
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