सुप्रीम कोर्ट का UAPA संशोधनों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार, हाईकोर्ट भेजा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने यूएपीए 2019 के संशोधनों के खिलाफ दायर याचिकाओं को दिल्ली हाईकोर्ट भेजने का निर्णय लिया। कोर्ट ने कहा कि पहले इसे हाईकोर्ट द्वारा हल किया जाए। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से सुनवाई की मांग की थी।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने उन याचिकाओं को सुनने से इनकार कर दिया, जो गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के संशोधन के खिलाफ दायर की गई थीं। इन संशोधनों के तहत राज्य को व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने और उसकी संपत्ति की जब्द करने का अधिकार दिया गया है।
चीफ जस्टिस (सीजेआई) संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने इस मामले को दिल्ली हाईकोर्ट को भेजने का निर्णय लिया। चीफ जस्टिस (सीजेआई) संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने इस मामले को दिल्ली हाईकोर्ट को भेजने का निर्णय लिया। कोर्ट ने कहा, हम पहले इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकते। ऐसे मामलों में कई जटिल समस्याएं होती हैं और कभी-कभी याचिकाकर्ता या सरकार की तरफ स कुछ मुद्दे छूट जाते हैं, फिर हमें इसे बड़ी बेंच के पास भेजना पड़ता है। इसलिए, इसे पहले हाईकोर्ट द्वारा हल किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने 6 दिसंबर 2019 को यूएपीए संशोधन की सांविधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। बेंच ने कहा कि अन्य हाईकोर्ट भी यूएपीए संशोधनों के खिलाफ दायर याचिकाओं की जांच कर सकते हैं।
याचिकाएं सजल अवस्थी, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) और अमिताभ पांडे की ओर से दायर की गई थीं। सीजेआई ने का कि इस तरह के मामलों में अक्सर जटिल कानूनी दिक्कते पैदा होती हैं। उचित होगा कि हाईकोर्ट पहले इसे देखे। याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सी.यू. सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से मामले पर सुनवाई की मांग की थी, क्योंकि कोर्ट ने पांच साल पहले नोटिस जारी किया था। उन्होंने कहा, हम सभी सेवानिवृत्त वरिष्ठ नौकरशाह हैं। हमने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। हमें विभिन्न हाईकोर्ट में प्रतिनिधित्व हासिल करने में असुविधा होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने उनकी बात को स्वीकार करते हुए मामले को दिल्ली हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने का फैसला लिया। अवस्थी ने अपनी याचिका में कहा कि संशोधन प्रावधान नागरिकों के समानता का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जीवन व स्वतंत्रता का अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। उन्होंने कहा कि यूएपीए 2019 सरकार को आतंकवद के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर असहमति के अधिकार पर अप्रत्यक्ष रूप से रोक लगाने का अधिकार देता है, जो एक लोकतांत्रिक समाज के विकास के लिए हानिकारक है।
एपीसीआर ने अपनी अलग जनहित याचिका में कहा कि ये संशोधन संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत छवि और गरिमा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं, क्योंकि बिना उचित प्रक्रिया के किसी को आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। याचिका में यह भी कहा गया कि किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करना केवल सरकार के विश्वास पर आधारित है, जो तर्कसंगत, न्यायसंगत और उचित नहीं है। याचिका में मांग की गई कि यूएपीए की धारा 35 और 36 को असंवैधानिक घोषित किया जाए।
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