सुप्रीम आदेश- NIA जांच में अदालती हस्तक्षेप नहीं, UAPA के लिए तीन माह में और कोर्ट बनाए सरकार
सुप्रीम कोर्ट ने बंगलूरू दंगों से जुड़े एक अहम मुकदमे में बड़ा आदेश पारित किया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की जांच में कोर्ट की तरफ हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। इसके अलावा कोर्ट ने तीन महीने के भीतर यूएपीए कानून के तहत मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का निर्देश भी दिया।
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नई दिल्ली (आरएनआई) कर्नाटक से जुड़े एक मुकदमे पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की जांच में अदालत हस्तक्षेप नहीं करेगी। इस टिप्पणी के साथ शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार और कर्नाटक हाईकोर्ट को यह निर्देश भी दिया कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (UAPA) के तहत दर्ज होने वाले मामलों पर त्वरित सुनवाई के लिए तीन महीने में और अदालतों का गठन किया जाए। तीन माह के भीतर कोर्ट बनाने का निर्देश देते हुए अदालत ने कहा कि कर्नाटक में यूएपीए मामलों की सुनवाई करने वाली अदालतों की कमी के कारण मामले में सुनवाई शुरू होने में अत्यधिक देरी हुई है।
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट और राज्य में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को तय समयसीमा के भीतर अदालतों की स्थापना का निर्देश दिया और कहा कि मामलों का तेजी से निष्पादन हो सके, इसलिए ऐसा 3 महीने की अवधि के भीतर किया जाएगा।
शीर्ष अदालत में जस्टिस बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र मिश्रा की खंडपीठ ने गुरुवार को पारित अपने अहम फैसले में कहा, सुप्रीम कोर्ट 2020 के बंगलूरू दंगों की एनआईए जांच में हस्तक्षेप नहीं करेगी। इस मुकदमे में एसडीपीआई (सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया) से जुड़े शब्बर खान समेत कई आरोपियों ने जमानत भी मांगी, अदालत ने जमानत देने से भी इनकार कर दिया।
शब्बर के खिलाफ आरोप है कि उन्होंने भीड़ के साथ मिलकर अगस्त, 2020 में मोटरसाइकिल को आग लगाई। तत्कालीन कांग्रेस विधायक अखंड श्रीवास मूर्ति के आवास और केजी हल्ली और डीजे हल्ली के पुलिस स्टेशनों के आसपास जमकर हिंसक झड़पें हुईं थीं।
जांच के बाद पुलिस ने 198 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। इनमें से 138 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र भी दाखिल हो चुका है। 138 में से 25 आरोपियों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
करीब पांच साल पहले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म- फेसबुक पर पैगंबर मुहम्मद के बारे में कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी की गई थी। इसके बाद बंगलूरू में जमकर हिंसा-उपद्रव हुआ था। दंगा भड़कने के बाद पूरे प्रकरण की जांच एनआईए को सौंपी गई। इस केंद्रीय एजेंसी ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत आरोप पत्र दायर किया था। इस मामले का एक रोचक तथ्य यह भी है कि दंगों के समय कर्नाटक में भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार थी। मई 2018 में जनता दल सेकुलर के साथ गठबंधन कर बनी इस सरकार के मुखिया पहले बीएस येदियुरप्पा थे, बाद में थोड़े समय के लिए एचडी कुमारस्वामी सीएम बने। सरकार के अंतिम एक साल बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री रहे थे।
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