सावन के आखिरी शुक्रवार को क्या करे जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्राजी से
अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देता है वर लक्ष्मी व्रत
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(आरएनआई) सावन महीने में आखिरी शुक्रवार को वरलक्ष्मी का व्रत रखा जाता है। इस साल यह व्रत २५ अगस्त २०२३ को है। वरलक्ष्मी व्रत धन की देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। यह व्रत सभी के लिए वरदान प्राप्त करने वाला माना गया है। इस व्रत और पूजन से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और व्यक्ति को धन-संपत्ति, वैभव, संतान, सुख, सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह पर्व मुख्य रूप से दक्षिण भारतीय राज्यों में मनाया जाता है। वरलक्ष्मी व्रत के दिन महिलाएं अपने पति, बच्चों और परिवार की मंगल कामना के लिए दिनभर उपवास रहकर मां लक्ष्मी की पूजा आराधना करती हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं वरलक्ष्मी व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में...
इस साल यह व्रत २५ अगस्त २०२३ को है। वरलक्ष्मी व्रत धन की देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। यह व्रत सभी के लिए वरदान प्राप्त करने वाला माना गया है। इस व्रत और पूजन से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और व्यक्ति को धन-संपत्ति, वैभव, संतान, सुख, सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
वरलक्ष्मी व्रत २०२३ पूजा मुहूर्त
यदि देवी वरलक्ष्मी की पूजा निश्चित लग्न के दौरान की जाए तो यह लंबे समय तक चलने वाली समृद्धि प्रदान करती है। २५ अगस्त को वरलक्ष्मी व्रत वाले दिन पूजा के लिए चार शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। इनमे से कोई भी उपयुक्त समय चुना जा सकता है। हालांकि शाम का समय यानी प्रदोष काल देवी लक्ष्मी की पूजा करने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।
पहला मुहूर्त: सिंह लग्न में- सुबह ०५ बजकर ५५ मिनट से ०७ बजकर ४२ मिनट तक
दूसरा मुहूर्त: वृश्चिक लग्न में- दोपहर १२ बजकर १७ मिनट से दोपहर ०२ मिनट से ३६ मिनट तक
तीसरा मुहूर्त: कुंभ लग्न में- शाम ०६ बजकर २२ मिनट से शाम ०७ बजकर ५० मिनट तक
चौथा मुहूर्त: वृषभ लग्न में- रात १० बजकर ५० मिनट से देर रात १२ बजकर ४५ मिनट तक
वरलक्ष्मी व्रत २०२३ दो शुभ योग
२५ अगस्त को दो शुभ योग बन का निर्माण हो रहा है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग प्रात: ०५ बजकर ५५ मिनट से सुबह ०९ बजकर १४ मिनट तक रहेगा। वहीं रवि योग सुबह ०९ बजकर १४ मिनट से २६ अगस्त शनिवार को सुबह ०५ बजकर ५६ मिनट तक रहेगा।
वरलक्ष्मी पूजा विधि वरलक्ष्मी व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई की जाती है।
पूजा स्थल को सजाया जाता है और गंगाजल से सभी जगहों को शुद्ध किया जाता है और व्रत का संकल्प लिया जाता है।
लोग अपने घर के बाहर रंगोली बनाते हैं। साथ ही मां वरलक्ष्मी की प्रतिमा या मूर्ति को नए कपड़े पहनाए जाते हैं और उनका श्रृंगार किया जाता है।
यह पूजा दीपावली की ही तरह की जाती है, इसलिए मां लक्ष्मी की मूर्ति के पास भगवान गणेश की प्रतिमा जरूर रखी जाती है।
इसके बाद कलश और अक्षत से वरलक्ष्मी का स्वागत किया जाता है।
विधि-विधान से पूजा की जाती है। इसके बाद मां को भोग लगाकर प्रसाद का वितरण किया जाता है।
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