सामाजिक न्याय की पिच पर पीएम मोदी की नई सोशल इंजीनियरिंग
भाजपा भविष्य में इन चार जातियों की नई सोशल इंजीनियरिंग के साथ कैसे आगे बढ़ेगी, इसकी झलक वित्त मंत्री के भाषण से महसूस की जा सकती है। सीतारमण ने कहा कि इन्हीं चार जातियों का सशक्तीकरण और कल्याण देश को आगे बढ़ाएगा। इन्हीं चार का कल्याण सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है।
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नई दिल्ली (आरएनआई) बीते साल पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने विपक्ष की जाति जनगणना के जवाब में सामाजिक न्याय की पिच पर ही नई सोशल इंजीनियरिंग तैयार करने का संदेश दिया था। तब उन्होंने कहा था कि उनके लिए देश में महिला, युवा, किसान और गरीब के रूप में चार ही जातियां हैं। अंतरिम बजट के प्रावधान और वित्त मंत्री का भाषण बताते हैं कि भाजपा का चार सौ पार के दांव और नारे की नींव यही चार जातियां हैं।
भाजपा भविष्य में इन चार जातियों की नई सोशल इंजीनियरिंग के साथ कैसे आगे बढ़ेगी, इसकी झलक वित्त मंत्री के भाषण से महसूस की जा सकती है। सीतारमण ने कहा कि इन्हीं चार जातियों का सशक्तीकरण और कल्याण देश को आगे बढ़ाएगा। इन्हीं चार का कल्याण सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। इनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए सरकारी सहायता देना ही सही मायने में सामाजिक न्याय है। हमारा सामाजिक न्याय राजनीतिक नारा नहीं बल्कि एक प्रभाव और आवश्यक शासन मॉडल भी है।
इन चार जातियों के सोशल इंजीनियरिंग सियासत के हर खांचे में फिट बैठती है। इनमें सियासत के जातिगत बेडिय़ों को तोडऩे की क्षमता है। जनसंख्या के लिहाज से यह सबसे बड़ा वर्ग है। ऐसा वर्ग जो जाति, वर्ग और धर्म से परे है। आधी आबादी महिलाओं की है, जबकि किसान और गरीब भी बड़ी संख्या में हैं। इन चार जातियों के सहारे भाजपा खुद के संाप्रदायिक होने के आरोपों की धार कुंद कर सकती है, इसके अलावा इसके सहारे भाजपा अपने मुख्य नारे सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास को भी न्याय संगत ठहरा सकती है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और मोदी सरकार की यह नई सोशल इजीनियरिंग सफल रही है। भाजपा को हिंदीपट्टी के तीन राज्यों छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में बड़ी सफलता हाथ लगी। हालांकि इस नई सोशल इंजीनियरिंग की असली परीक्षा लोकसभा चुनाव में होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि जाति को महत्व देने वाले बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड जैसे राज्यों में गरीब, किसान, युवा और महिला को अपनी चार जातियां बताने वाले पीएम के इस नए दांव का क्या असर पड़ता है। भाजपा ने इस नए सामाजिक समीकरण को सफल बनाने के लिए अलग-अलग जातियों को साधने की अलग-अलग और विस्तृत रणनीति तैयार की है। इसके लिए पीएम मोदी खुद मोर्चा संभालेंगे।
जाति जनगणना के जवाब में पीएम मोदी के इस पहल को बीते साल पांच राज्यों के चुनाव में व्यापक सफलता मिली। इसके बाद ही पार्टी ने इन चार जातियों की नई सोशल इंजीनियरिंग पर मजबूती के साथ आगे बढ़ने का निर्णय लिया। इसी नई सोशल इंजीनियरिंग को मजबूती देने के लिए पहले नारी शक्ति वंदन विधेयक पारित किया गया। इसके बाद 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज की समय सीमा पांच साल बढ़ा दी गई। अब बजट में भी इन्हीं चार जातियों से केंद्रित कई अहम घोषणा की गई है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा की योजना इन जातियों से जुड़ी सरकार की उपलब्धियों को व्यापक स्तर पर भुनाने का है। मसलन महिलाओं से जुड़े नारी शक्ति वंदन कानून, लखपति दीदी योजना, आंगनबाड़ी-आशा वर्करों से जुड़ी योजना, किसान सम्मान निधि योजना, मुफ्त अनाज, आवास जैसी योजनाओं से जुड़ी उपलब्धियों को भुनाने के लिए पार्टी ने बड़ी रणनीति तैयार की है।
हिंदी पट्टी से जुड़े राज्यों में राजनीतिक दल जाति समूहों की राजनीति करते हैं। दो-तीन मुख्य जातियों को साध कर दूसरे वर्ग का जोड़ने की कवायद करते हैं। यह सिलसिला दशकों से चला आ रहा है। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो हिंदी पट्टी में राजनीति की नई रवायत का आगाज होगा। इससे सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले विपक्षी क्षेत्रीय दलों के लिए चुनावों में चुनौतियां बढ़ जाएंगी। चूंकि आगामी चुनाव के लिए कांग्रेस ने भी पुराने सामाजिक न्याय की राजनीति की लीक पर ही आगे बढ़ने का फैसला किया है, इसलिए भाजपा की नई सोशल इंजीनियरिंग की सफलता पहले से ही कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रही पार्टी के लिए मुसीबतों का नया दौर शुरू करेगी।
जाति गणना की वकालत कर रहे विपक्षी दलों की चुनौतियों के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी ने महिला, किसान, युवा और गरीबों को एक जाति सूत्र में पिरो कर राजनीतिक रणनीति तैयार कर दी है। इसी रणनीति की बदौलत हिन्दी पट्टी की तस्वीर बदलने का लक्ष्य तैयार कर लिया है। आस्था और सामाजिक सद्भाव की जरिए लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की लकीर भी खींच दी है।
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